समकालीन हिंदी कविता का विकास
भूमिका
साहित्य में समाज कल्याण की भावना अंतर नहीं है साहित्य का सृजन अध्यात्मिक और कार्यात्मक रूपों में होता है स्वतंत्रता पूर्व हिंदी कविता का लेखन
भारतेंदुवादी
िद्ववेदी वादी
छायावादी और प्रगतिवादी धाराओं में हुआ सदन तक प्रयोगवादी और नई कविता की धाराएं विकसित हुई आजादी से पूर्व कविताओं का स्वर राष्ट्रीय स्वतंत्रता और सांस्कृतिक उत्थान था । स्वतंत्रता से पूर्व भारत की जनता के सुनहरी स्वप्न थे ।आजादी के बाद भारत का उज्जवल भविष्य होगा और रामराज्य जैसी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण होगा।
सन 1947 में भारत आजाद हुआ लेकिन रामराज्य का स्वप्न साकार नहीं हुआ तथा उनकी स्थिति उत्पन्न हो गई ।
राजनीतिक उथल-पुथल 1965 के युद्ध में करारी हार सामाजिक ,आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक समस्याएं खाद्यान्नों की कमी ,जनता और कवियों में विक्षोभ और असंतोष पनपने लगा।
हिंदी कविता के चित्र में सहज कविता ,विचार कविता अकविता
भूखी पीढ़ियों की कविता
युयुत्सा वादी
कविता
नवगीत
आदि अनेक काव्य आंदोलन हुए सर्वाधिक प्रचलित समकालीन कविता सन 1960 के बाद की हिंदी कविता को साठोत्तरी कविता
नई कविता
समकालीन कविता
सातवें ,आठवें दशक की कविता, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की कविता
अनेक नाम दिए गए ।
समकालीन कविता नाम सबसे ज्यादा उपयुक्त महसूस हुआ समकालीन साहित्यकारों को अपने युग की राजनीतिक सामाजिक ,धार्मिक ,आर्थिक ,सांस्कृतिक अनुभूतियों का प्रत्यक्ष बोध होता है ।क्योंकि वह उस समय में जीता है और वह अपने युग की अच्छी बुरी घटना परिस्थितियों से परिचित रहता है यही समकालीन ता का घोतक है ।
समकालीन हिंदी कविता में जीवन और जगत की विसंगतियां बोलबाला था ।
कुरूपता अंतर यथार्थ चित्रण हुआ है ।
सन 1960 के बाद का समय जीवन मूल्यों की दृष्टि से पत्रों मुखी रहा है।
अवमूल्यन के इस युग में कविताओं के स्वरों में भी बड़ा परिवर्तन हुआ है ।
जिसकी अभिव्यक्ति व्यंग्यात्मक और विद्रोह आत्मक रूप में हुई है ।
समकालीन हिंदी कविता में आदर्श की झलक यत्र तत्र दृष्टिगोचर होती है।
इस कविता में घोर यथार्थ का चित्रण है
समकालीन हिंदी कविता भी सामाजिक यथार्थ की अभिव्यंजना है यह कविता सामाजिक चिंतन कृत रमता और प्रपंच को मुखरित करने के लिए मध्यवर्ग की तरह से जिंदगी तथा उसकी कुरूपता के यथार्थ का सूक्ष्मता से चित्रण करती है।
सन 1960 के पश्चात सामाजिक संबंधों वाली कविता में व्यंग्य विक्षोभ विद्रोह का स्वर प्रबल रूप से दृष्टिगोचर होता है।
समकालीन कविता में भारतीय संवेदना की ज्वलंत अनुभूति है ।
वास्तव में इस कविता ने व्यक्ति और समाज के शत्रु पर तनाव अंतर्विरोध और विरोध वासियों को संपूर्ण संवेदनशीलता के रूप में अभिव्यक्ति प्रदान की है समकालीन कविता अपने युग की निष्क्रियता निराशा उत्पीड़न के माध्यम से अपना मार्ग खोजने का प्रयत्न में तल्लीन है ।
आज के समाज के लोग मुखौटा धारी हो गई पाखंड धोखाधड़ी भ्रष्टाचार में लिप्त हो गई और अपनी पूर्ववर्ती सामाजिक सांस्कृतिक विरासत को भूलकर झूठी शान ओ शौकत में जीने लगी है समाज में लोग मिठाई और कपट जारी हो गए हैं ।
मुंह में राम-राम और बगल में छुरी वारी लोकोक्ति आज के सामाजिक जीवन के यथार्थ को प्रकट करती से दिखाई देती है।
समकालीन कवि दोगले चेहरे का उद्घाटन करते हैं ।
भ्रष्टाचार की पोल खोलते हैं सामाजिक और नैतिक पतन पर तीव्र प्रहार करते हैं मुल्लों के विघटन पर खेद प्रकट करते हैं तथा आदर्शों के पतन पर करुण क्रंदन करते हैं।
वे सत्य के पक्षधर हैं और धोखाधड़ी के घोर विरोधी हैं यह कविता जीवन और जगत के विशाल रूप में दिखती है जिसमें वह आतंक व धूटन के साथ साथ जीवन के सुंदर और आदर्शों का भी चित्रण मिलता है ।
समकालीन हिंदी कविता में अज्ञेय ,शमशेर बहादुर सिंह
नागार्जुन
केदारनाथ अग्रवाल
भवानी प्रसाद मिश्र
त्रिलोचन
मुक्तिबोध
गिरिजाकुमार माथुर
भारत भूषण अग्रवाल
नरेश मेहता
रामदरश मिश्र
धर्मवीर भारती
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
कुंवर नारायण
रघुवीर सहाय
कीर्ति चौधरी
राजमल चौधरी ।
दुष्यंत कुमार
केदारनाथ सिंह
कुमार विकल
धूमिल
कैलाश वाजपेई
चंद्रकांत देवताले
विनोद कुमार
शुक्ल
रामचंद्र शाह
सौमित्र मोहन
गंगा प्रसाद
विमल प्रयाग
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
वेणुगोपाल
लीलाधर जगूड़ी
बलदेव वंशी
आलोक धन्वा
मंगलेश डबराल
ज्ञानेंद्रपति
उदय प्रकाश
असद जैदी
अनामिका
अर्चना वर्मा
सविता सिंह
निर्मला
गगन गिल
प्रेम रंजन
अनिमेष
नीलेश
रघुवंशी आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है समकालीन हिंदी कविता में गीत, लोकगीत ,गजल ,लंबी कविताएं भी लिखी गई है।
मक्षभारत युग युगांतर में ग्राम प्रधान रहा है ।
आधुनिक काल में नगरीकरण के परिपेक्ष्य में ग्रामीण समाज का विघटन हो रहा है गांव उजड़ रहे हैं।
और नगर महानगर हो रहे हैं ।
समकालीन कविताओं का विचार है कि ग्रामीण जीवन की आंचलिकता ।
लोक संस्कृति और पर्यावरण का संरक्षण हो इसीलिए वह महानगरीय प्रदूषण और संवेदनहीनता के प्रति भी चिंतित हैं संयुक्त परिवार अभी भी केवल ग्रामीण अंचलों में सुरक्षित है नगरीकरण और पाश्चात्य चमक-दमक वाली संस्कृति के कारण संयुक्त परिवारों का तेजी से विघटन हो रहा है ।
पारस्परिक भाईचारा सामाजिक सौहार्द स्वार्थपरता के कारण कम होता जा रहा है समकालीन कवि समाज को सचेत कर रहे हैं समकालीन कवि नारी विमर्श दलित विमर्श वनवासी विमर्श और बाल विमर्श के प्रति भी सजग हैं।
स्वतंत्रता से पूर्व भारतीय राजनीति आदर्श त्याग तपस्या और बलिदान पर आधारित थी स्वतंत्रता के पश्चात आदर्श यथार्थ में बदल गई त्याग तपस्या विलासिता में बदल गई बलिदान स्वार्थ में बदल गया समकालीन हिंदी कविता में कवियों ने राजनीति की कुरूपता पूरा प्राधिकरण का यथार्थ चित्रण किया है इस कविता में न्यायपालिका में सफलता कवियों ने सजीव चित्रण किया है न्याय में देरी का अर्थ नए का गला घोटना राजनीति में सत्ता और संपत्ति का गठबंधन हो गया है जो संपत्ति साली है वही शक्तिशाली हो जाते हैं जो बलवान हैं वे शक्तिशाली हो जाते हैं धन बल और भुजबल का खेल बढ़ रहा है यही राजनीति का उचित रूप है समकालीन कवियों ने अत्याचार अनाचार व्यभिचार अन्याय सांप्रदायिकता अनुशासनहीनता मूल्य हीनता राजनीति को अपनी कविता का वर्ण विषय मानकर अपने साहस और दायित्व बोध का परिचय दिया है ।