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सोमवार, 25 अगस्त 2025

आधुनिकतावाद और हिंदी साहित्य,आधुनिकतावाद क्या है? इसकी विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए तथा हिंदी साहित्य में आधुनिकतावाद का स्वरूप बताइए।

आधुनिकतावाद क्या है? इसकी विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए तथा हिंदी साहित्य में आधुनिकतावाद का स्वरूप बताइए।


भूमिका :

साहित्य समाज का दर्पण है। समाज जैसे-जैसे बदलता है, साहित्य भी बदलता रहता है। हिंदी साहित्य में समय-समय पर अनेक आंदोलन हुए जिन्होंने साहित्य को नई दिशा दी। छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद आदि धाराओं के बाद हिंदी साहित्य में आधुनिकतावाद का उदय हुआ। आधुनिकतावाद एक ऐसी साहित्यिक प्रवृत्ति है जो पारंपरिक मूल्यों से आगे बढ़कर व्यक्ति की स्वतंत्रता, अस्तित्व, आत्मसंघर्ष, अस्मिता और बदलती सामाजिक परिस्थितियों को केंद्र में रखती है। यह पश्चिम से प्रभावित अवश्य है, किन्तु हिंदी साहित्य में इसका स्वरूप भारतीय सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संदर्भों में विकसित हुआ।

आधुनिकतावाद की परिभाषा :

‘आधुनिकतावाद’ शब्द की व्याख्या करते हुए आलोचक नामवर सिंह लिखते हैं—
“आधुनिकता का अर्थ केवल नयापन नहीं है, बल्कि यह एक संवेदनात्मक दृष्टि है जिसमें व्यक्ति की अस्मिता, अकेलापन और जीवन का यथार्थ विशेष रूप से उभरता है।”

आधुनिकतावाद की विशेषताएँ :

1. व्यक्ति केंद्रिता –
आधुनिकतावादी साहित्य में व्यक्ति का अकेलापन, उसकी समस्याएँ और जीवन-संघर्ष प्रमुख होते हैं। समाज से अधिक महत्व व्यक्ति की चेतना को दिया जाता है।


2. अस्तित्ववाद की छाया –
जीवन के अर्थहीनता, निरर्थकता और अनिश्चितता की अनुभूति को अस्तित्ववाद कहा जाता है। आधुनिकतावादी रचनाओं में यह भावना स्पष्ट रूप से मिलती है।


3. निराशा और अकेलापन –
आधुनिक जीवन की भागदौड़, मशीन संस्कृति और उपभोक्तावाद के कारण व्यक्ति भीतर से अकेला और निराश होता जा रहा है। यह स्थिति साहित्य में भी अभिव्यक्त हुई।


4. भोगवाद और यथार्थवाद –
पारंपरिक आदर्शवाद की जगह आधुनिक साहित्य में यथार्थ और भोगवादी दृष्टि हावी होती है।


5. नई संवेदना और भाषा –
आधुनिक कवियों और लेखकों ने पारंपरिक काव्यभाषा को तोड़कर अधिक बोलचाल की, व्यंजनात्मक और सांकेतिक भाषा का प्रयोग किया।


6. परंपरा से विद्रोह –
आधुनिकतावाद पारंपरिक मान्यताओं, रूढ़ियों और बंधनों को तोड़कर नवीनता की ओर बढ़ता है।


7. शहरी जीवन का चित्रण –
आधुनिकतावाद में ग्रामीण परिवेश के स्थान पर शहर, महानगर और उनकी समस्याएँ प्रमुख रूप से चित्रित की गईं।


8. नारी चेतना और अस्मिता –
आधुनिकतावादी साहित्य में नारी की स्वतंत्रता, उसकी अस्मिता और अस्तित्व की खोज पर विशेष बल दिया गया।


9. मनोविश्लेषण की प्रवृत्ति –
फ्रायड के मनोविश्लेषण सिद्धांत से प्रभावित होकर आधुनिकतावादी रचनाओं में अवचेतन और अचेतन मन की गहराइयों का चित्रण हुआ।


10. सांकेतिकता और बिंब प्रयोग –
कवियों ने भावनाओं को सीधे न कहकर प्रतीक और बिंबों के माध्यम से अभिव्यक्त किया।


हिंदी साहित्य में आधुनिकतावाद :

हिंदी साहित्य में आधुनिकतावाद लगभग सन् 1960 के बाद प्रमुख रूप से उभरकर आया। प्रयोगवाद और नई कविता के बाद यह आंदोलन हिंदी कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक और आलोचना में व्यापक रूप से दिखाई देता है।

(क) कविता में आधुनिकतावाद

नई कविता (अज्ञेय, शमशेर बहादुर सिंह, मुक्तिबोध, केदारनाथ सिंह आदि) ने आधुनिकतावादी चेतना को गहराई से व्यक्त किया।

अज्ञेय की कविताओं में आत्मसंघर्ष और अस्तित्व की तलाश है।

मुक्तिबोध की कविताओं में समाज की विसंगतियों और व्यक्ति की बेचैनी का गहन चित्रण है।

शमशेर बहादुर सिंह की कविता संवेदनात्मक आधुनिकता का उत्कृष्ट उदाहरण है।

(ख) कहानी में आधुनिकतावाद

1960 के बाद की कहानियों को ‘नई कहानी’ कहा गया।

इसमें व्यक्ति के अकेलेपन, पारिवारिक विघटन, दाम्पत्य संबंधों की दरारें और शहरी जीवन की जटिलताएँ चित्रित हुईं।

मोहन राकेश, राजेंद्र यादव, कमलेश्वर आदि ने आधुनिकतावादी चेतना से युक्त कहानियाँ लिखीं।


(ग) उपन्यास में आधुनिकतावाद

‘नई उपन्यास धारा’ में व्यक्ति की अंतर्दृष्टि, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और अस्मिता पर बल दिया गया।

मोहन राकेश का ‘आषाढ़ का एक दिन’ आधुनिक चेतना से जुड़ा नाटक है।
उपन्यासों में निर्मल वर्मा, श्रीलाल शुक्ल (राग दरबारी में विडंबना), राही मासूम रज़ा, कमलेश्वर आदि के लेखन में आधुनिक जीवन का यथार्थ अभिव्यक्त हुआ।

(घ) नाटक और रंगमंच में आधुनिकतावाद

मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, लक्ष्मीनारायण लाल आदि के नाटकों में व्यक्ति की चेतना और समय की जटिलताएँ स्पष्ट रूप से मिलती हैं।
मोहन राकेश के नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ और ‘आधे-अधूरे’ आधुनिक नाट्य साहित्य के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।

(ङ) आलोचना में आधुनिकतावाद

नामवर सिंह, विजयदेव नारायण साही, रामविलास शर्मा आदि आलोचकों ने आधुनिक साहित्य की नई दृष्टि को स्पष्ट किया

आधुनिकतावाद की सीमाएँ :

1. अधिक व्यक्तिवाद और निराशा के कारण यह सामाजिक सरोकारों से कटने लगा।

2. जटिल और प्रतीकात्मक भाषा ने इसे आम पाठक से दूर कर दिया।

3. पश्चिमी प्रभाव के कारण कभी-कभी भारतीय संस्कृति से असंगति दिखाई देती है।

निष्कर्ष :

आधुनिकतावाद हिंदी साहित्य की वह धारा है जिसने व्यक्ति की अस्मिता, जीवन के यथार्थ और अस्तित्व के संघर्ष को साहित्य का विषय बनाया। यह साहित्य की नई संवेदना है जो बदलते समय और समाज के साथ-साथ साहित्य को भी नई दिशा प्रदान करती है। हिंदी साहित्य में आधुनिकतावाद ने कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक और आलोचना सभी विधाओं को गहरे स्तर पर प्रभावित किया है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि आधुनिकतावाद हिंदी साहित्य की एक सशक्त प्रवृत्ति है, जिसने साहित्य को वर्तमान यथार्थ और मानवीय अस्तित्व की गहराइयों से जोड़ा।

विनोद कुमार शुक्ल स्नेही

 *विनोद कुमार शुक्ल को इस साल का सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा* 

 हिन्दी के प्रसिद्ध कवि और लेखक छत्तीसगढ़ के विनोद कुमार शुक्ल को इस साल का सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा।
 इसकी घोषणा नई दिल्ली में की गई। 
श्री शुक्ल राजधानी रायपुर में रहते हैं और उनका जन्म एक जनवरी 1947 को राजनांदगांव में हुआ।

वे पिछले पचास सालों से साहित्य लेखन में जुटे हुए हैं।
 उनका पहला कविता संग्रह ‘‘लगभग *जयहिन्द  1971 में प्रकाशित हुआ था। 
उनके उपन्यास ‘‘नौकर की कमीज‘‘, ‘‘खिलेगा तो देखेंगे‘‘ और ‘‘दीवार में एक खिड़की‘‘ हिन्दी के सबसे बेहतरीन उपन्यासों में माने जाते हैं। 
 उनकी कहानियों का संग्रह *‘‘पेड़ पर कमरा‘‘ और ‘‘महाविद्यालय‘‘ भी चर्चा में* रहा है। उनकी कविताओं में ‘‘वह आदमी चला गया, नया गरम कोर्ट पहनकर‘‘, ‘‘आकाश धरती को खटखटाता है‘‘ और ‘‘कविता से लंबी कविता‘‘ बेहद लोकप्रिय हुई है।

बुधवार, 20 अगस्त 2025

हिंदी नवजागरण में भारतेंदु हरिश्चंद्र का योगदान

✨ प्रश्न 2 : हिंदी नवजागरण में भारतेंदु हरिश्चंद्र की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
भूमिका

हिंदी नवजागरण का सबसे बड़ा और प्रभावशाली नाम भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850–1885) है। उन्हें ‘आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक’ और ‘हिंदी नवजागरण का जनक’ कहा जाता है। उन्होंने मात्र 35 वर्ष के जीवन में हिंदी को राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक सुधार का सशक्त माध्यम बना दिया। उनके साहित्य और पत्रकारिता ने हिंदी समाज को नई दिशा दी और नवजागरण की चेतना को स्थायी रूप दिया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र की भूमिका (मुख्य बिंदु)

1. भाषा और साहित्य का परिष्कार

भारतेंदु ने खड़ी बोली हिंदी को साहित्यिक रूप देकर उसे आधुनिक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।

संस्कृत और उर्दू शब्दों का संतुलन रखते हुए सरल, सहज और जनप्रिय हिंदी को प्रतिष्ठित किया।

2. पत्रकारिता का योगदान

कवि वचन सुधा, हरिश्चंद्र चंद्रिका और भारत मित्र जैसी पत्रिकाओं के माध्यम से जनचेतना का प्रसार।

पत्रकारिता को सामाजिक सुधार और राष्ट्रवादी विचारधारा से जोड़ा।
3. सामाजिक सुधारक के रूप में

जातिगत भेदभाव, अशिक्षा और स्त्रियों की दयनीय स्थिति पर प्रहार।

भारत दुर्दशा नाटक में तत्कालीन भारत की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण।

उन्होंने लिखा –
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय के शूल॥”


4. राष्ट्रवाद का उद्घोष

भारतेंदु ने स्वदेश प्रेम और राष्ट्रीयता को अपनी रचनाओं में केंद्रीय स्थान दिया।

विदेशी वस्त्र और संस्कृति की अंधी नकल के विरुद्ध स्वर उठाया।

उनके साहित्य ने स्वतंत्रता आंदोलन की भावनाओं को बल प्रदान किया।


5. साहित्यिक विधाओं का विकास

नाटक, कविता, निबंध, यात्रा-वृत्तांत, अनुवाद, आलोचना – सभी विधाओं में लेखन।

अंधेर नगरी नाटक आज भी समाज में राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार का तीखा व्यंग्य है।


6. हिंदी समाज का नेतृत्व

भारतेंदु ने हिंदी साहित्य को केवल काव्य-रस का साधन न मानकर समाज का दर्पण बनाया।

वे साहित्यकार के साथ-साथ मार्गदर्शक, विचारक और संगठनकर्ता भी थे।


भारतेंदु की विशेषताओं का मूल्यांकन

1. हिंदी साहित्य को आधुनिकता प्रदान करने वाले प्रथम साहित्यकार।

2. साहित्य और समाज के बीच सेतु का निर्माण।

3. साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीयता और लोकतांत्रिक चेतना का प्रसार।

4. साहित्यिक पत्रकारिता की सशक्त नींव रखी।

5. जीवन अल्पकालिक होते हुए भी असाधारण योगदान।




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निष्कर्ष

भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी नवजागरण के वास्तविक सूत्रधार थे। उन्होंने साहित्य, पत्रकारिता और सामाजिक नेतृत्व के माध्यम से हिंदी समाज को नई दिशा दी। उनकी रचनाओं ने न केवल हिंदी साहित्य को आधुनिक स्वरूप प्रदान किया, बल्कि समाज में सुधार और राष्ट्रीय चेतना का भी संचार किया। इसीलिए उन्हें सही अर्थों में “हिंदी नवजागरण का जनक” कहा जाता है।

नवजागरण और हिंदी साहित्य

हिंदी नवजागरण और हिंदी साहित्य

भूमिका

भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक इतिहास में उन्नीसवीं शताब्दी एक महत्वपूर्ण काल माना जाता है। इसी कालखंड में हिंदी साहित्य ने नवजागरण का अनुभव किया। यह नवजागरण केवल भाषा और साहित्य तक सीमित नहीं रहा, बल्कि समाज के हर क्षेत्र—शिक्षा, राजनीति, धर्म, सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय चेतना—पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। हिंदी साहित्य इस नवजागरण का सशक्त माध्यम बना और इसके द्वारा भारतीय समाज को नई दिशा मिली।

मुख्य बिंदु (प्वाइंट्स)

1. नवजागरण की परिभाषा

'नवजागरण' का अर्थ है – नवीन चेतना का उदय।

यूरोपीय पुनर्जागरण की तर्ज पर भारत में भी सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना का प्रसार हुआ।

हिंदी नवजागरण ने आधुनिकता, सुधार और जागरूकता की नींव रखी।

2. हिंदी नवजागरण की पृष्ठभूमि

18वीं–19वीं शताब्दी में अंग्रेजी शिक्षा, प्रिंटिंग प्रेस और सामाजिक सुधार आंदोलनों ने चेतना जगाई।

बंगाल नवजागरण का प्रभाव हिंदी क्षेत्र में दिखाई दिया।

राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे समाज सुधारकों के विचारों ने भी हिंदी समाज को प्रभावित किया।

3. हिंदी साहित्य में नवजागरण का प्रारंभ

हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत (पं. जुगल किशोर शुक्ल का उदन्त मार्तण्ड, 1826)।

भारतेंदु हरिश्चंद्र को 'हिंदी नवजागरण का जनक' कहा जाता है।

भारतेंदु युग (1870–1900) में साहित्य और समाज सुधार एक साथ जुड़े।

4. भारतेंदु हरिश्चंद्र और नवजागरण

"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल" का उद्घोष।

नाटकों, निबंधों और कविताओं के माध्यम से सामाजिक सुधार का संदेश।

साहित्य को जनजागरण का उपकरण बनाया।

5. द्विवेदी युग और राष्ट्रीय चेतना

महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका द्वारा साहित्य को नई दिशा दी।

राष्ट्रवाद, सामाजिक सुधार और स्त्री-शिक्षा के मुद्दे उठाए।

प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त जैसे साहित्यकारों का उदय।


6. हिंदी साहित्य और स्वतंत्रता आंदोलन

हिंदी साहित्य राष्ट्रीय आंदोलन की धड़कन बना।

कवियों ने जनमानस में स्वतंत्रता के प्रति भावनाएँ जगाईं।

गुप्त जी की "भारत-भारती" और प्रेमचंद की रचनाएँ इसका उदाहरण हैं।


7. सामाजिक मूल्यों का पुनरुद्धार

जातिगत भेदभाव, अशिक्षा और स्त्री-दमन के विरुद्ध आवाज उठाई गई।

साहित्य ने समाज में समानता, सहिष्णुता और स्वतंत्रता की चेतना जगाई।


8. साहित्यिक विधाओं का विकास

नाटक, कविता, निबंध, उपन्यास और कहानी का आधुनिक स्वरूप इसी दौर में विकसित हुआ।

प्रेमचंद ने यथार्थवादी कहानियों के माध्यम से समाज का सजीव चित्र प्रस्तुत किया।


9. हिंदी नवजागरण के प्रभाव

भाषा का आधुनिकीकरण।

समाज सुधार आंदोलनों को गति।

राष्ट्रवाद की भावना को बल।

आधुनिक साहित्य की समृद्ध परंपरा की स्थापना

निष्कर्ष

हिंदी नवजागरण केवल साहित्यिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना का व्यापक प्रस्फुटन था। हिंदी साहित्य ने इस नवजागरण में केंद्रीय भूमिका निभाई। भारतेंदु हरिश्चंद्र, द्विवेदी युगीन साहित्यकारों और प्रेमचंद जैसे लेखकों ने हिंदी को आधुनिक स्वरूप दिया और समाज में नई चेतना जागृत की। इस प्रकार हिंदी नवजागरण ने आधुनिक भारत के निर्माण में अमिट योगदान दिया।
संभावित प्रश्न

1. हिंदी नवजागरण से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

2. हिंदी नवजागरण में भारतेंदु हरिश्चंद्र की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।

3. द्विवेदी युग को हिंदी नवजागरण का संवाहक क्यों कहा जाता है?

4. हिंदी नवजागरण और स्वतंत्रता आंदोलन में क्या संबंध था? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

5. हिंदी नवजागरण का समाज और साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा?

सोमवार, 7 नवंबर 2022

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का साहित्यिक परिचय

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय
साहित्यिक परिचय
स्नातक तथा स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न
16 नंबर के प्रश्न में किस प्रकार से आप क्वेश्चन को तैयार कर सकते हैं।
देखें
भूमिका
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी छायावाद के चार आधार स्तंभों में से एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। आधुनिक हिंदी कविता में उनका अतुलनीय योगदान है। निराला जी एक सजग साहित्यकार थे उन्होंने अपने युग की परिस्थितियों को अत्यंत निकट से देखा समझा और उनमें सुधार करने का प्रयास किया वह एक सच्चे क्रांतिकारी कवि के रूप में प्रसिद्ध हुए।
जीवन परिचय
उनका जन्म 18 96 ईस्वी में बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में बसंत पंचमी के दिन हुआ।
 उनके पिताजी रामसहाय त्रिपाठी उन्नाव के रहने वाले थे लेकिन आजीविका कमाने के लिए वह महिषादल नामक रियासत में आकर बस गए।
 निराला जी जब 3 साल के थे ,उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। उनके पिता सख्त अनुशासन रखने वाले थे। स्वभाव के कारण उन्हें अनेक बार अपने पिता की मार खानी पड़ी।


 सन 1911 में निराला जी का मनोरमा देवी से विवाह हुआ उनसे उन्हें एक पुत्र और पुत्री मिले लेकिन जन्म देते ही वह भी स्वर्ग सिधार गई । उनका व्यक्ति व्यक्तिगत जीवन बहुत ही दुख में रहा है कहा जाता है कि अपनी पीढ़ी के वे अकेले जीवित इंसान थे बंगाल में अनेक पड़े अकाल ओक में उनके परिवार को भी अपने साथ निगल लिया था।
निराला जी को साहित्य जगत में आरंभ में अनेक विरोध का सामना करना पड़ा।

 उनकी अनेक रचनाएं व लेख अप्रकाशित ही लौटा दिए जाते थे ।महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उनकी जूही की कविता अनेक बार लौटाई लेकिन बार-बार जाने के बाद भी द्विवेदी जी ने उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उनकी रचना को सरस्वती पत्रिका में1916 में जूही की कली नाम से छापा। महावीर प्रसाद द्विवेदी को ही आजीवन उन्होंने अपना गुरु माना। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के प्रयासों से समन्वय के संपादक का कार्यभार संभाला इसके पश्चात 1933 में निराला जी ने मतवाला पत्रिका का संपादन किया ।
1935 में सरोज की आकस्मिक मृत्यु होने के कारण उन्होंने सरोज स्मृति नाम का एक महाकाव्य की रचना की।
 सरोज स्मृति को हिंदी का प्रथम शोक गीत भी कहा जाता है और आजीवनहिंदी की साहित्यिक सेवा करते रहे सन् 1961 में उनका निधन हुआ।
  निराला जी का व्यक्तित्व

निराला जी की विलक्षणता उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी।इसलिए विद्वानों ने उनको महाप्राण निराला कहा करते थे।निरालाआधुनिक युग के कबीर कहे जाते हैं ।
उनका कद 6 फुट से अधिक लंबा उनके व्यक्तित्व में परस्पर विरोधी तत्व भी थे ।
वे स्वाभिमानी, त्यागी, उद्दंड और मृदुल सब कुछ उनमें एक साथ विद्यमान था ।
उनकी दान शीलता  तो दंत कथाओं का विषय बन गई थी।
 अनेक बार उन्होंने सर्दी में ठिठुरते हुए लोगों को कंबल और रजाइया दी थी और स्वयं वह ठंड में कांपते रहते थे। 
सहायता और सम्मान उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी 
फक्कड़ पन के कारण हिंदी में गौरव और काव्य की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए गांधी और नेहरू जी से भी वह उलझ पड़े थे ।
उन्हें अमृत पुत्र ,महाप्राण, क्रांति दृष्टा ,दारागंज का संत और दिनों का मसीहा कहा जाता था।
 वह खाने-पीने के शौकीन और खिलाने के भी शौकीन थे।
 वे संगीत प्रेमी और उदार हृदय के व्यक्ति थे।
 गंगा प्रसाद पांडे जी कहते हैं कि आंखों में आंतरिक प्रसन्नता का प्रकाश , चरित्र में चैतन्य की आभा, सारे शरीर में पुलक सपूर्ण तथा मस्ती से भरा मन मिलकर निराला आगे बढ़ते रहते थे उनकी बेफिक्री में बोझिल साल से किसी के अनुशासन का कंपन नहीं था उनके विचारों में आत्मविश्वास झलकता था।ऊपर दिए गए पेजों के आधार पर आप अपने प्रश्न को अच्छे से लिखकर अधिक से अधिक अंक ले सकते हो। इसमें मैंने आपको एक तरीका बताया है अगर आप इसकी पीडीएफ चाहते हैं तो सेम इन्हीं पेजो की पीडीएफ का लिंक में नीचे दे दूंगी आप उस लिंक पर जाकर डाउनलोड कर सकते हैं। इसी का यूट्यूब वीडियो भी चाहिए तो उसका लिंक भी मैं आपको नीचे दे दूंगी इस ब्लॉग के लिखने का उद्देश्य मेरा इतना सा है कि जो विद्यार्थी थोड़े समय में अच्छी तैयारी करके अच्छे अंक प्राप्त करना चाहती हैं ।उनकी मदद हो सके ।

 https://youtu.be/x5riQmrV7Lo
https://drive.google.com/file/d/1sJeGGXd484Mf3AbZa8hw3-eLN6mRd-Np/view?usp=drivesdk
धन्यवाद
सुमन शर्मा 
असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी 
राजकीय महाविद्यालय सिवानी ,भिवानी (हरियाणा)

शनिवार, 16 जुलाई 2022

असाध्य वीणा की समीक्षा

अज्ञेय की कविता  असाध्य वीणा  का सारांश

भारत भूषण अग्रवाल का जीवन परिचय

भारत भूषण अग्रवाल का जीवन परिचय
उनकी साहित्यिक विशेषताएं
गीत फरोश
 सतपुड़ा के जंगल और गांव कविता का सारांश
क इस विषय से संबंधित ज्यादा जानकारी चाहते हो तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर यू टूब वीडियो देख सकते हैं।
https://youtu.be/huEYUJlNmjs