शब्द–सम्पदा एवं शब्द के प्रकार
प्रस्तावना
भाषा मानव जीवन की आत्मा है और ‘शब्द’ भाषा की आत्मा। शब्दों के बिना किसी भी विचार, भावना या अनुभूति की अभिव्यक्ति संभव नहीं है। शब्द ही वह माध्यम हैं जिनसे मनुष्य अपने मनोभावों को दूसरों तक पहुँचाता है। अतः यह कहना अनुचित न होगा कि शब्द ही विचार, अनुभूति और अभिव्यक्ति का सार हैं। जब किसी भाषा के शब्दों का भंडार समृद्ध होता है, तो उसकी अभिव्यक्ति क्षमता भी उतनी ही प्रबल होती है। यही कारण है कि हिंदी भाषा की शब्द–सम्पदा अत्यंत विस्तृत और विविधतापूर्ण है। संस्कृत, अपभ्रंश, तद्भव, तत्सम, विदेशी भाषाओं, बोलियों, क्षेत्रीय भाषाओं और लोकभाषाओं के शब्दों से हिंदी की शब्द–सम्पदा आज समृद्ध और सशक्त रूप में सामने आई है।
शब्द का अर्थ
‘शब्द’ का अर्थ है — वह ध्वनि या अक्षर–समूह जो किसी अर्थ को व्यक्त करता हो।
‘शब्द’ शब्द संस्कृत धातु ‘शब्दु’ से बना है, जिसका अर्थ है ‘ध्वनि करना’ या ‘आवाज़ निकालना’। व्याकरण की दृष्टि से वह ध्वनि या अक्षर–समूह जो किसी अर्थ का द्योतक हो, शब्द कहलाता है।
उदाहरण:
‘गाय’ शब्द एक पशु का बोध कराता है।
‘जल’ शब्द एक द्रव पदार्थ का बोध कराता है।
अर्थात् शब्द वह इकाई है जो अर्थ को प्रकट करती है।
आचार्य पाणिनि के अनुसार —
“स्वर व्यंजनयोः संयोगः शब्दः।”
अर्थात् स्वर और व्यंजन के मेल से जो ध्वनि उत्पन्न होती है, वही शब्द कहलाता है।
शब्द–सम्पदा का अर्थ
‘शब्द–सम्पदा’ का अर्थ है किसी भाषा में उपलब्ध शब्दों का भंडार। जिस भाषा में जितने अधिक शब्द होंगे, वह भाषा उतनी ही अभिव्यक्तिपूर्ण और वैज्ञानिक होगी। हिंदी की शब्द–सम्पदा में आज संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, अरबी, फारसी, अंग्रेज़ी, उर्दू, मराठी, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी आदि भाषाओं के शब्द शामिल हैं। यही विविधता हिंदी को समृद्ध और सर्वग्राही बनाती है।
उदाहरणार्थ —
संस्कृत से आए शब्द: धर्म, कर्म, मानव, शांति, श्रद्धा, नीति।
अरबी–फारसी से आए शब्द: किताब, अदालत, हुकूमत, इम्तहान।
अंग्रेज़ी से आए शब्द: ट्रेन, स्कूल, डॉक्टर, कंप्यूटर।
शब्द की उत्पत्ति के आधार पर प्रकार
हिंदी में शब्दों को उनकी उत्पत्ति के आधार पर चार प्रमुख वर्गों में बाँटा गया है —
1. तत्सम शब्द
वे शब्द जो सीधे संस्कृत से लिए गए हैं और अपने मूल रूप में प्रयुक्त होते हैं।
उदाहरण: धर्म, कर्म, जन, प्रेम, ज्ञान, मित्र, बालक, सूर्य, पुस्तक, देवता आदि।
विशेषताएँ:
संस्कृत रूप में यथावत प्रयुक्त।
इनमें किसी प्रकार का ध्वनि–परिवर्तन नहीं होता।
प्रायः साहित्य, धर्म और विद्या के क्षेत्र में प्रयुक्त होते हैं।
2. तद्भव शब्द
वे शब्द जो प्राकृत या अपभ्रंश से विकसित होकर संस्कृत के किसी शब्द से उत्पन्न हुए हैं, परंतु ध्वनि–परिवर्तन से भिन्न रूप में प्रयुक्त होते हैं।
उदाहरण:
तत्सम: अग्नि → तद्भव: आग
तत्सम: नागर → तद्भव: नाई
तत्सम: मस्तिष्क → तद्भव: माथा
विशेषताएँ:
इनका संबंध बोलचाल की भाषा से है।
सामान्य प्रयोग में सरल और मधुर प्रतीत होते हैं।
जनभाषा में व्यापक रूप से प्रचलित हैं।
3. देशज शब्द
वे शब्द जो न तो संस्कृत से आए हैं और न किसी विदेशी भाषा से, बल्कि लोकभाषाओं या बोलियों से उत्पन्न हुए हैं।
उदाहरण: चूल्हा, गट्ठर, कुप्पी, झोला, बटुआ, लोटा, छप्पर, टोकरी आदि।
विशेषताएँ:
ये शब्द लोकजीवन की गंध लिए होते हैं।
बोली और लोकभाषा से संबद्ध होते हैं।
लोककाव्य और लोकगीतों में प्रचुर मात्रा में मिलते हैं।
4. विदेशी शब्द
वे शब्द जो विदेशी भाषाओं जैसे अरबी, फारसी, अंग्रेज़ी, पुर्तगाली आदि से आए हैं।
उदाहरण: किताब (अरबी), दरवाज़ा (फारसी), स्कूल (अंग्रेज़ी), आलू (पुर्तगाली)।
विशेषताएँ:
भारत में विदेशी शासन और सांस्कृतिक संपर्क के परिणामस्वरूप आए।
ये शब्द अब हिंदी के अंग बन चुके हैं।
आधुनिक जीवन, विज्ञान, तकनीकी, व्यापार आदि में इनका प्रयोग सामान्य है।
शब्द के अर्थ के आधार पर प्रकार
अर्थ के आधार पर शब्दों के कई प्रकार माने गए हैं, जैसे —
1. समानार्थक (Synonyms)
वे शब्द जो एक ही अर्थ को व्यक्त करते हैं।
उदाहरण: जल – पानी – नीर – वारि।
महत्त्व: ये भाषा को सुंदर और अभिव्यक्तिपूर्ण बनाते हैं।
2. विलोम शब्द (Antonyms)
जो शब्द एक-दूसरे के विपरीत अर्थ व्यक्त करते हैं।
उदाहरण: सत्य–असत्य, दिन–रात, जीवन–मृत्यु, सुख–दुःख।
3. अनेकार्थक शब्द (Polysemous Words)
जो शब्द एक से अधिक अर्थों में प्रयुक्त होते हैं।
उदाहरण:
‘माला’ – फूलों की माला, अक्षरों की माला।
‘मुख’ – चेहरा, किसी वस्तु का आगे का भाग।
4. श्रुतिसमभिन्नार्थक (Homonyms)
जो शब्द एक जैसे सुनाई देते हैं पर अर्थ भिन्न होते हैं।
उदाहरण:
‘कल’ – बीता हुआ दिन / आने वाला दिन / यंत्र।
‘फल’ – परिणाम / खाने योग्य वस्तु।
5. पर्यायवाची शब्द
एक ही वस्तु या व्यक्ति के लिए विभिन्न शब्द।
उदाहरण:
सूर्य – भानु, रवि, आदित्य, दिनकर।
चंद्रमा – शशि, सोम, रजनीकर।
6. संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्द वर्ग
व्याकरण की दृष्टि से शब्दों को संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रिया–विशेषण, अव्यय, संबंधबोधक आदि में भी बाँटा गया है। यह वर्गीकरण भाषा की संरचना समझने में सहायक होता है।
शब्द–सम्पदा के निर्माण के स्रोत
हिंदी की शब्द–सम्पदा अनेक स्रोतों से निर्मित हुई है —
1. संस्कृत भाषा:
हिंदी का मूल स्रोत संस्कृत है। लगभग 70% शब्द संस्कृत मूल के हैं।
2. प्राकृत और अपभ्रंश:
संस्कृत से विकसित प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं ने हिंदी को सहज और बोलचाल के शब्द दिए।
3. देशी बोलियाँ:
ब्रज, अवधी, बुंदेली, हरियाणवी, मैथिली, भोजपुरी आदि से अनेक शब्द हिंदी में आए हैं।
4. विदेशी भाषाएँ:
अरबी, फारसी, अंग्रेज़ी, पुर्तगाली, तुर्की आदि भाषाओं से हिंदी ने शब्द ग्रहण किए।
5. वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र:
आधुनिक युग में अंग्रेज़ी के तकनीकी शब्द जैसे ‘कंप्यूटर’, ‘मोबाइल’, ‘सॉफ्टवेयर’, ‘इंटरनेट’ आदि हिंदी शब्दावली का अंग बन चुके हैं।
शब्द–सम्पदा का सामाजिक–सांस्कृतिक महत्व
1. संस्कृति का दर्पण:
शब्द समाज और संस्कृति का प्रतिबिंब हैं। जिस समाज की संस्कृति जितनी समृद्ध होती है, उसकी भाषा की शब्द–सम्पदा भी उतनी ही विशाल होती है।
2. संवाद का माध्यम:
समृद्ध शब्दावली से व्यक्ति अपने विचारों को प्रभावशाली रूप में व्यक्त कर सकता है।
3. साहित्य सृजन की आधारशिला:
कवि, लेखक और नाटककार अपने सृजन में शब्दों के विविध रूपों का प्रयोग कर भाषा को जीवन्त बनाते हैं।
4. विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास:
नए–नए शब्द विज्ञान और तकनीकी शब्दावली में जुड़ते रहते हैं, जिससे हिंदी आधुनिक विषयों को भी सहज रूप में व्यक्त कर पाती है।
5. राष्ट्रीय एकता का प्रतीक:
विभिन्न भाषाओं और बोलियों के शब्दों का समावेश हिंदी को सर्वसमावेशी बनाता है।
हिंदी की शब्द–सम्पदा की विशिष्टताएँ
1. विविध स्रोतों से शब्द–ग्रहण की क्षमता।
2. लोकजीवन और साहित्यिक जीवन दोनों में समान रूप से उपयोगिता।
3. नए शब्दों के निर्माण की क्षमता (रचनात्मकता)।
4. भावाभिव्यक्ति की कोमलता और लचक।
5. ध्वन्यात्मक सौंदर्य और संगीतात्मकता।
शब्द–सम्पदा के संरक्षण और विकास के उपाय
1. शुद्ध भाषा–प्रयोग को प्रोत्साहन देना।
2. विदेशी शब्दों का अनावश्यक प्रयोग कम करना।
3. नए वैज्ञानिक शब्दों का हिंदी रूप में निर्माण।
4. विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शब्द–ज्ञान पर बल देना।
5. साहित्य, मीडिया और तकनीकी माध्यमों में हिंदी शब्दों का प्रयोग बढ़ाना।
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण
यदि हम ‘पानी’ शब्द को लें, तो उसके लिए हिंदी में विभिन्न शब्द मिलते हैं —
जल, नीर, वारि, अम्बु, तोय, अप, सलिल, उदक, पय, रस, तरल आदि।
इन्हीं विविध शब्दों से हिंदी की शब्द–सम्पदा का विस्तार और सौंदर्य झलकता है।
निष्कर्ष
शब्द ही भाषा की रीढ़ हैं। शब्दों की समृद्धि से ही किसी भाषा की अभिव्यक्ति–शक्ति, साहित्यिक सौंदर्य और सामाजिक उपयोगिता निर्धारित होती है। हिंदी भाषा की शब्द–सम्पदा जितनी विशाल और बहुरंगी है, उतनी ही समावेशी भी है। इसमें संस्कृत की पवित्रता, उर्दू की नज़ाकत, अंग्रेज़ी की आधुनिकता और लोकभाषाओं की सजीवता का अद्भुत समन्वय है। यही हिंदी को विश्व–स्तर पर एक समृद्ध और जीवंत भाषा बनाता है।
अतः कहा जा सकता है —
“शब्द हैं विचारों के पुष्प, और भाषा उनका सुमन–संग्रह। जब शब्द–सम्पदा समृद्ध होती है, तभी भाषा सशक्त होती है।”