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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

पुरस्कार कहानी समीक्षा

पुरस्कार कहानी समीक्षा
भूमिका-
पुरस्कार कहानी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित मधुलिका के आक्रोश, चीत्कार, मानवीय दुर्बल आता हूं वह अंतर्द्वंद की कहानी है। 
भावात्मक अंतर्द्वंद कर्तव्य और रोमानी वातावरण की कहानी लिखने वाले प्रसाद जी ने इस कहानी में उनके प्रमुख कहानीकार के रूप में वह मुखरित हुए हैं।


तत्वों के आधार पर पुरस्कार कहानी की समीक्षा
किसी भी कहानी की समीक्षा के अंतर्गत निम्नलिखित तत्व शामिल होते हैं।
1. कथानक
2. चरित्र चित्रण
3. संवाद
4. प्रारंभ व अंत, देशकाल व वातावरण
5. भाषा शैली
6. उद्देश्य
कथानक-पुरस्कार कहानी का कथानक विस्तृत है और सूत्र बिखरे हुए हैं।कहानी का आरंभ कौशल राज्य की कृषि उत्सव से होता है और मधुलिका के प्रेमा लाभ से कथानक आगे बढ़ता है अरुण का आक्रमण की तैयारी करना और फिर मधुलिका का राजा की ओर चले जाना जिज्ञासा मनोवृति को बड़ी तीव्रता से जगाता है कहानी का चरम सीमा तक अंत एक साथ ही हो जाते हैं जब मधुलिका कहती है कि मुझे प्राण प्राण दंड मिले और बंदी वह अपने प्रेमी अरुण के पास जाकर खड़ी हो जाती है।
2. पुरस्कार कहानी में प्रमुख पात्र अरुण और मधुलिका हैं लेकिन राजा का चरित्र भी कहीं-कहीं उभर कर सामने आया है सौंदर्यप्रिय प्रसाद जी के सभी पात्र सुंदर कोमल ह्रदय व भाव ुु
3. संवाद योजना-प्रसाद जी की संवाद योजना काव्यात्मक ,प्रभावपूर्ण, मार्मिक और पात्रों के चरित्र को उजागर करने वाली होती है।इन संवादों के माध्यम से अरुण और मधुलिका दोनों का चरित्र उभरता है ।मधुलिका की करुणा और दया और उनके मन की सरलता और मधुलिका के प्रति उसके हृदय में जो प्रेम है ,वह अपने मन तक सीमित नहीं रख पाता बल्कि बता देता है।
4. भाषा शैली-प्रसाद जी की कहानियों की भाषा संस्कृत निष्ठ खड़ी बोली हिंदी है और प्रभाव सिल्वर काव्यात्मक है उनकी भाषा मे लालित्य शैली में सजीव तथा रोचकता होती है मुहावरों का कम बहुत कम प्रयोग है उनकी सैलरी ग्रामीण में होकर चित्रात्मक शैली है।

5. देश काल और वातावरण-देश काल और वातावरण से अभिप्राय कहानी के समय व स्थान व परंपराओं के वर्णन से है।प्रसाद जी ने को संदेश की देशकाल व वातावरण को जीवंत बना दिया है कौशल की कृषि उत्सव करते हुए कहानी का आरंभ होता है मधुलिका के प्राण दंड मान लेने के बाद इस कहानी का मार्मिक अंत भी होता है।
6. उद्देश्य-पुरस्कार कहानी में लेखक ने प्रेम के व्यक्तिगत एवं सामाजिक रूप का चित्रण किया है प्रेम मानव जीवन का वह भाव है जो जीवन प्रकृति राष्ट्र आदि में विविध रूपों में प्रकट होता है।
पुरस्कार कहानी का उद्देश्य निम्नलिखित है-
1. कर्तव्य और भावना का द्वंद और अंततः भावना पर कर्त्तव्य की विजय
2. कर्तव्य और प्रेम दोनों का निर्वाह आवश्यक।
3. राष्ट्रप्रेम राष्ट्रीय संगठन
4. सांस्कृतिक परंपराओं की रक्षा
निष्कर्ष-कहानी के सभी तत्वों के आधार पर समीक्षा करने के बाद यह बात स्पष्ट होती है कि पुरस्कार कहानी जयशंकर प्रसाद की एक श्रेष्ठ कहानी है कहानी के सभी गुण इसमें विद्यमान है।

सूरदास का वात्सल्य वर्णन अद्भुत है। स्पष्ट करें।

सूरदास का वात्सल्य वर्णन-
भूमिका-सूरदास भक्ति कालीन कृष्ण भगत कवियों में सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। अष्टछाप के कवियों में सूरदास कवि वल्लभाचार्य के शिष्य हैं।कृष्ण भक्ति काव्य के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। हिना के तीन प्रमाणिक ग्रंथ हैं।
1. सूरसागर
2. सुरसारावली
3. साहित्य लहरी
तीनों ही रचनाएं भक्ति पर आधारित हैं। कृष्ण भक्ति का इतना सुंदर वर्णन इन में किया गया है ।सगुण भक्ति पर जोर दिया गया है। भ्रमरगीत अत्यंत उत्कृष्ट एवं मर्मस्पर्शी बन पड़ा है। श्रृंगार और वात्सल्य चित्रण इन का अनूठा है। इसलिए इन्हें वात्सल्य सम्राट भी कहा जाता है।
वात्सल्य सम्राट सूरदास-
1. सूरदास को पुरुष होते हुए भी मां का हृदय प्राप्त था।
2. वे वात्सल्य भाव का कोना कोना जा झांक थे।
3. सूरदास ने वात्सल्य भाव को अत्यंत सूक्ष्मता से चित्रित किया है।
4.सूरदास द्वारा कृष्ण की बाल सुलभ गतिविधियों पर ध्यान पूर्वक व प्रसन्न चित्त माता यशोदा का ऐसा चित्रण किया है जो एक आंख वाला इंसान भी नहीं कर पाता इसलिए इनके नेत्रहीन होने पर भी विद्वानों में यह विवादित विषय बना रहा है।
5.को दृष्टि से बचाने के लिए मां का कान के पीछे काला तिलक लगाना इस प्रकार की सूक्ष्म से सूक्ष्म गतिविधियों का आरोपण सूरदास जी द्वारा किया गया है।
निष्कर्ष-सूरदास जी का स्थान हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण है माता के ह्रदय की सूक्ष्म से अति सूक्ष्म चेतना का वर्णन उन्होंने किया है इसीलिए उन्हें वात्सल्य सम्राट भी कहा गया है सूरदास का वात्सल्य वर्णन बहुत ही अद्भुत व अनोखा प्रतीत होता है इसीलिए कहा भी गया है-
यशोदा हरि पालने झुलावे।

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

मानक भाषा व विशेषताएं

मानक भाषा व विशेषताएं। 
भूमिका-
मानक का अर्थ होता है एक निश्चित पैमाने के अनुसार घटित होना मानक भाषा की शब्दावली ,उसका व्याकरण, उसके उच्चारण का स्वरूप निश्चित और स्वरूप जाता है और इसका प्रचार और विस्तार पूरे भाषा क्षेत्र में एक जैसा लागू हो जाता है।
मानक हिंदी के चार प्रमुख तत्व होते हैं-
1 ऐतिहासिकता
2. मानकीकरण
3 जीवंतता
4. स्वायत्तता
मानक हिंदीीी की प्रमुख विशेषताएं
1. वह व्याकरण सम्मत होती है।
2. नए शब्दों के ग्रहण और समर्थन में न्याय संगत व निर्माण में समर्थ होती है।
3.वह परिनिष्ठित विशिष्ट प्रकार्यात्मक स्तर पर होती है। 4. वह सर्वमान्य होती है।
5.इसमें क्षेत्रीय तथा स्थानीय प्रयोगों से बचने की प्रवृत्ति होती है।
6. भाषा में एकरूपता होती है।
7. वह हमारे सांस्कृतिक, शैक्षिक ,प्रशासनिक, संवैधानिक क्षेत्रों का कार्य संपादित करने में सक्षम होती है
8. वह सुस्पष्ट सुनिश्चित ओर से निर्धारित होती है।
9. इसके संप्रेक्षण में कोई भ्रांति नहीं होती।
10. इसमें त्रुटियों को सहज रूप से स्वीकार करने की शक्ति होती है।
निष्कर्ष-
मानक हिंदी का अर्थ हिंदी भाषा की शब्दावली उसकी व्याकरण उसके उच्चारण और निश्चित स्वरूप होना है इसके प्रचार-प्रसार विस्तार तथा सांस्कृतिक शैक्षिक प्रशासनिक से मैदानी कार्यों में सक्षम होना ही इसका मानकीकरण है।

महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दावली

महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दावली

हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत निबंध-देवदारू सार प्रमुख बिंदु

हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत निबंध देवदारू सार व प्रमुख बिंदु
भूमिका,-देवदारू आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी रचित एक भावात्मक निबंध है ।इस निबंध के माध्यम से देवदारु का अनुपम चित्र हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उपस्थित किया है।  






मुख्य बिंदु व सार स्वरूप
1.देवदारु का अर्थ देवप्लस तरु है ज्ञानी एक वृक्ष ही नहीं देवता भी है लेखक ने इसे वृक्ष में देवता दोनों ही माना है।
2.मानव को देवदारू की तरह अपने स्थान पर अचल अटल खड़ा रहना चाहिए ।कठिन से कठिन परिस्थिति में रुकना नहीं चाहिए अगर झुकना हो तो उसे सारा लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए।
,,3.मनुष्य को समाज के साथ आत्मसात करके चलना चाहिए ।अलग का अर्थ है- जो न लगे।
जो सबको लगे -अर्थ
एक को लगे बाकी को ना लगे -अनर्थ
4. लगाव तो बुद्धि का नाम है जिसमें मैं पन है अहंकार है।
5.काल्पनिक बातों से डरना नहीं चाहिए ।भूत से ना डरे ,यह केवल मानसिक वहम है ।मन में आत्मविश्वास जागृत करो ,देवदारू की तरह विवेकशील बनो । ओझाओ अलविदा करो परंपराओं और रूढ़िवादिता से ऊपर उठो।
6.मानव जाति में नहीं उसके व्यक्तित्व से पहचानो क्योंकि इंदिरा गांधी की पहचान नेहरू से नहीं उसके अपने राजनीतिक जीवन तथा कूट नीतियों से थी।
7.देवदारू की तरह मृत्यु लोक से जीवन शक्ति ग्रहण करो ,रस प्राप्त करो ।जियो और जीने दो।
8.देवदारू की भांति ऊंचे उठने का पर्याय का प्रयास करो और इसका उचित मार्ग है ध्यान ,धारणा ,समाधि। निष्कर्ष-
इस प्रकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने मानवता से संबंधित देवदारु निबंध लिखा है जिसमें मानव को देवदारू की भांति अचल ,अटल परिस्थितियों को सामने  करने वाला ,काल्पनिक बातों से डरने वाला नहीं ,विवेकशील ध्यान धारणा समाधि को अपनाने वाला माना है।

बुधवार, 8 अप्रैल 2020

पारिभाषिक शब्दावली निर्धारण में समस्याएं

पारिभाषिक शब्दावली निर्माण में समस्याएं
भूमिका-भारत विशाल देश है देश की स्वतंत्रता के बाद जन्मी नई परिस्थितियों नई समस्याओं उत्तर नई जरूरतों ने पारिभाषिक शब्दावली की आवश्यकता को गंभीरता से उपस्थित किया है।
पारिभाषिक शब्दावली निर्धारण में समस्याएं
१. एक केंद्रीय अभिकरण का अभाव होना।
२. सरकार की निश्चित नीति में होना।
३. सरकारी तौर पर गंभीरता व निष्पक्षता की कमी होना।।
४. देश के प्रबुद्ध वर्ग में उदासीनता।
५. तर्क अपेक्षा भावना को अधिक महत्व देना।
६. भाषा के क्षेत्र में भी राजनीतिक दांव पर जो का होना।
७. बौद्धिक विकास में डूबकर भाषा को भावात्मक एकता का आधार न मानने की भूल करना। 
निष्कर्ष-
आज आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम अपनी परिभाषिक शब्दावली का निर्धारण ठीक से नहीं कर पा रही हैं पारिभाषिक शब्दावली की महत्व को देखते हुए हिंदी पारिभाषिक शब्दावली को सुदृढ़ करने के लिए प्रबुद्ध वर्ग को अपना योगदान देना वांछनीय है।

हिंदी भाषा की विशेषताएं एवं महत्व

हिंदी भाषा की विशेषता एवं महत्व
भूमिका-हिंदी भारत देश की राष्ट्रभाषा के साथ-साथ संविधान के अनुच्छेद 344 के अनुसार संघ की राजभाषा भी है जो देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।
प्रमुख विशेषताएं-
१.हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है इसमें जो बोला जाता है वही लिखा जाता है।
२. हिंदी भाषा का शब्द भंडार विपुल मात्रा में है।
३. हिंदी भाषा ज्ञान विज्ञान की शिक्षा देने में समर्थ है।
४.हिंदी भाषा में विपुल साहित्य उपलब्ध है जैसे आदिकाल ,भक्तिकाल ,आधुनिक काल ,रीति काल भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, उपन्यास ,आत्मकथा ,जीवनी, रेखाचित्र और संस्मरण इत्यादि।
५.यह भाषा भारत की राष्ट्रीय एकता का सशक्त माध्यम है।
६.बोलने वाले लोगों की संख्या के हिसाब से यह विश्व की तीसरे नंबर की भाषा है।
७. हिंदी भाषा के बिना पूरा राष्ट्र गूंगा है।
८. हिंदी देश की आवश्यकता है तथा जनसाधारण की भाषा है।
९.कितने ही लेखक ऐस हुए हैं जो विभिन्न वैज्ञानिक क्षेत्रों से संबंधित है लेकिन भाव अभिव्यक्ति में हिंदी सही मानते हैं।