गिल्लू महादेवी वर्मा विरचित एक करूणासिक्त संस्मरण है ।
इस संस्मरण में उन्होंने अपने जीव जगत परिवार के एक सदस्य गिल्लू गिलहरी के अपने परिवार में आगमन तथा उसकी समाधि की संस्मरणात्मक कहानी है।
लेखिका को अपने बगीचे में लगी सोनजुही में नई पीले कली खिलने पर अनायास ही गिल्लू गिलहरी की यादें आ जाती है 1 दिन सुबह लेखिका ने देखा था कि उसके घर के बरामदे में रखे गमलों पर दो काव्य चोट मार रहे हैं गमलों के बीच एक नन्ही गिलहरी फंसी हुई है जिससे उनको उन्ह अपनी चोट मारकर घायल कर दिया है और अब वह जीव मरणासन्न हालत में गमले से चिपका हुआ है लेखिका को हालांकि बताया गया है कि कबो की चोट से घायल है इस गिलहरी को बचाना मुश्किल है फिर भी लेखिका ने अपनी प्राणी प्रेम के चलते उसे बचाने का उपक्रम किया उसके घाव को साफ करके उसने पेनिसिलिन का मरहम लगाया लेखिका की मेहनत रंग लाई तीसरे दिन वह इतना अच्छा हो गया कि लेखिका की उंगली अपने पंजों से पकड़ने लगा तीन चार मार्च के बाद उसके शरीर के रोए जब बेदार पूछे और चंचल चमकीली आंखें सबको आश्चर्य में डालने लगी लेखिका ने उसका नाम गिल्लू रख दिया फूल रखिए को उसका घर बना दिया गया घर में वह 2 वर्ष तक रहा वह उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए उसके पैर तक आकर फिर से पर्दे पर जाया करता था कभी-कभी ले उसे पकड़कर इसके अलावा भूख लगने पर वह देता था वसंत आया बाहर की गिलहरी आगे खिड़की की जाली के पास आकर जब करने लगी तो लेखिका ने उसे कुछ समय के लिए मुक्त करना आवश्यक समझा उसने जाली की झीलें लगाकर जाली का एक कोना खोल दिया इस रास्ते से गिल्लू बाहर जा सकता था गिल्लू लेखिका के पैर के पास बैठ जाया करता था तथा कभी-कभी पैर से सिर तक और सिर से पैर तक दौड़ने लगा था दिन भर फूलों में छिपकर तो कभी पर्दे की चरणों में या सोनजुही के पत्तों में चिपका देता था। उसकी इच्छा रहती ठीक कि वह लेखिका के खाने की थाली में बैठ जाए लेखिका ने उसे बड़ी मुश्किल से अपनी थाली के पास बैठना सिखाया।
वह लेखिका की थाली से एक-एक चावल सुनकर बड़ी सावधानी से खाता था काजू उसे बहुत प्रिय थे एक बार जब लेखिका को मोटर दुर्घटना मैं हाथ होने के कारण अस्पताल में रहना पड़ा तब पीछे से वह इतना उद्विग्न हुआ कि उसने अपने प्रिय काजू भी नहीं खाए गर्मियों के दिनों में गिल्लू दोपहर के समय बाहर नहीं जाता था मैं ही वह अपने झूले में बैठता था अभी तू लेखिका के पास रखी सुराही पर लेटा रहता था सुखी गिलहरी की जीवन अवधि 2 वर्ष से अधिक नहीं होती है अतः 2 वर्ष के होते ही गिल्लू की अंतिम बेला भी निकट पहुंची थी एक दिन उसने कुछ नहीं खाया मैं बाहर गया रात को लिखेगा के पास आकर उसके हाथ से चिपक गया लेखिका ने उसके पंजों को ठंडा देखकर जलाया तथा उसे क्षमता देने का प्रयास किया परंतु अगले दिन सुबह की प्रथम किरण के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया लेखिका नहीं उसे सोनजुही की लता के नीचे दिल की समाधि दी संवत है इसी कारण लेखिका को सोनजुही की लता अत्यंत प्रिय है।
गिल्लू संस्मरण के मुख्य बातें
1.लेखिका महादेवी वर्मा ने गिल्लू सोनजूही बेल के अनन्य संबंध तथा दोनों के प्रति अपने आकर्षण को व्यक्त किया है।
2.महादेवी जी ने स्पष्ट किया है कि कौवा एक ऐसा पक्षी है जो मनुष्य को शुभ संदेश देता है और आपने कटु आवाज के कारण मनुष्य की अवमानना भी सहन करता है।
3.महादेवी वर्मा जी ने गिल्लू संस्करण में बताया है कि मनुष्य का किसी प्राणी के प्रति प्रेम उसे मनुष्य के प्रति समर्पित कर देता है।
4.गिल्लू गिलहरी की समझदारी पर तथा उसकी दैनिक दिनचर्या पर इस संस्मरण में प्रकाश डाला गया है।
5.लेखिका में जिलों की भोजन संबंधी आदतों का उल्लेख किया है और बताया है कि गिल्लू को काजू बहुत अच्छे लगते थे।
6. संस्मरण के अंत में गिल्लू के मरने के लिए पूर्व की पीड़ा दाई स्थिति का बड़ा मार्मिक चित्रण किया गया है।
7. लेखिका ने गिल्लू गिलहरी की अंतिम क्रिया का वर्णन किया है तथा सोनजुही की बेल के नीचे उसकी समाधि बनाना अद्भुत ,अपूर्व वर्णन है।
8.जहां भाषा शैली की बात करें तो महादेवी वर्मा ने अपने संस्मरण ो में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का वर्णन किया है ।
9.उनकी भाषा भावा अनुकूल, पात्रा अनुकूल तथा धारापवाह है।
10. उनकी भाषा में तत्सम, तद्भव शब्दों की अधिकता अवश्य नजर आती हैं वाक्य विन्यास कुछ जटिल है परंतु सहजऔर रोचक है ।
11.उनके संस्मरण में प्रसाद व माधुरी गुण की अधिकता है।
स्पर्श ,नाथ , दृश्य जैसे बिंबों का प्रयोग करती हैं।
12. उनका यह संस्मरण भावात्मक है।
13.शब्द शक्ति की अगर बात करें तो इसमें अभिधा शब्द शक्ति का प्रयोग हुआ है ।
14.गिल्लू संस्मरण का वर्ण विषय एक प्राणी प्रेम से है ।
15.इसकी शैली वर्णनात्मक शैली है शब्द भंडार बहुत व्यापक है ।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गिल्लू संस्मरण की भाषा से सकते कार्यात्मक तथा धारापवाह है।
महादेवी वर्मा के संस्मरण में विषय जैसी विविधता दिखाई देती है जो अन्यत्र दुर्लभ है उन्होंने अपने संस्कारों में मानवीय पात्रों को ही नहीं मान वेतन प्राणियों को भी अभीष्ट अस्थान दिया है उन्होंने अपने संपर्क में आए दिन ही ऐसा ही व्यक्तियों के तरीके प्राय अपने जी परिवार के हर सदस्य चाहे वह सोना हिरनी हो नीलकंठ मोर हो गौरा गाय हो नीलू कुत्ता हो या गिल्लू गिलहरी हो हर प्राणी के जीवन का संसदात्मक उल्लेख किया है उनके संस्मरण संकेतों पर भी खरे उतरे हैं वास्तव में महादेवी जी ने संस्मरण साहित्य में अपूर्व योगदान दिया है उनके प्रवर्तक योगदान के लिए चिर ऋणी रहेंगे।