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बुधवार, 30 सितंबर 2020

हिंदी प्रचार प्रसार में सिनेमा का योगदान

हिंदी भाषा व सिनेमा जगत
सिने जगत के अनेक नायक नायिका, गीतकारों, कहानीकारों और निर्देश को‌‌ को हिंदी के माध्यम से ही पहचान मिली है ।
यही कारण है कि गैर हिंदी भाषी कलाकार भी हिंदी की ओर आए हैं ।
समय और समाज के उभरते सच को पर्दे पर पूरी अर्थवेता में धारणा करने वाले यह लोग दिखावे के लिए भले ही अंग्रेजी के गुलाम होलेकिन बुनियादी और जमीनी हकीकत यही है कि इनकी पूंजी, इनके प्रतिष्ठित रुतबा,प्रतिष्ठा का एकमात्र निमित हिंदी भाषा ही है ।
लाखों करोड़ों दिलों की धड़कन पर राज करने वाले यह सितारे फिल्म और भाषा के सबसे बड़े प्रतिनिधि हैं।

छोटा पर्दा हो या बड़ा पर्दा दोनों ने ही आम जनता के घरों में अपना मुकाम बनाया है ।
हिंदी आम जनता की जीवन शैली बन गई ।
हमारे अध्ययन ग्रंथों रामायण और महाभारत को जब हिंदी में प्रस्तुत किया गया तो सड़कों का कोलाहल सन्नाटे में बदल गया।
 बुनियाद और हम लोग जैसे सीरियल शुरू हुए ,सॉप ओपेरा का दौर हो या सास बहू धारावाहिक का ।
यह सभी हिंदी की रचनात्मकता और उर्वरता के प्रमाण हैं कौन बनेगा करोड़पति से करोड़पति चाहे जो बने हो पर सदी के महानायक की हिंदी हर दिल की धड़कन और हर धड़कन की भाषा बन गई ।
सुर और संगीत की प्रतियोगिताओं में कर्नाटक ,गुजरात ,महाराष्ट्र, असम, सिक्किम जैसे गैर हिंदी क्षेत्रों के कलाकारों ने हिंदी गीतों के माध्यम से अपनी पहचान बनाई।
 गंभीर डिस्कवरी चैनल हो या बच्चों को रिझाने लुभाने वाला टॉम एंड जेरी कार्यक्रम हो करें इनकी हिंदी उच्चारण की मिठास और गुणवत्ता अद्भुत प्रभावशाली है।
 धर्म संस्कृति कला कौशल ज्ञान विज्ञान सभी कार्यक्रम हिंदी की संप्रेषण का यह प्रमाण है।

गोस्वामी तुलसीदास कृत कवितावली उत्तरकांड से

गोस्वामी तुलसीदास कवितावली उत्तर कांड से का सारांश


गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के भक्ति काल की सगुण धारा की राम शाखा के मुकुट शिरोमणि माने जाते हैं।

इन्होंने अपनी महान रचना रामचरितमानस के द्वारा केवल राम काव्य को ही समृद्ध नहीं किया बल्कि मानस के द्वारा तत्कालीन समाज का भी मार्गदर्शन किया।
 तुलसीदास जी एक भगत होने के साथ-साथ एक लोक नायक भी थे।
तुलसीदास जी ने कवितावली ब्रज भाषा में लिखी है।
 यह कविता में उन्होंने अपने समय का यथार्थ चिंतन कर चित्रण किया है ।
कवि का कथन है कि समाज में किसान, बनिए ,भिखारी नौकर ,चाकर ,चोर सभी की स्थिति अत्यंत दयनीय है ।उच्च वर्ग और निम्न वर्ग धर्म अधर्म का सहारा ले रहा है।
प्रत्येक कार्य करने को मजबूर है।
 लोग अपने पेट की खातिर अपने बेटा बेटी को बेच रही है पेट की आग संसार की सबसे बड़ी पीड़ा है।
 समाज में व्याप्त भुखमरी सबसे सोचनीय दशा है।
 मनुष्य को लाचार बना देता है। 
समाज में किसान के पास करने के लिए खेती नहीं, भिखारी को भीख नहीं मिलती, व्यापारी के पास व्यापार नहीं है नौकरों के पास करने के लिए कोई भी कार्य नहीं है ।
समाज में चारों और बेकारी, भुखमरी, गरीबी और अधर्म का बोलबाला है ।
अब तो ऐसी अवस्था में  दीन दुखियों की रक्षा करने वाले सिर्फ और सिर्फ श्री राम हैं।
 श्री राम की कृपा से ही यह सब दुख दर्द दूर हो सकते हैं ।अंत में कवि ने समाज में फैली जाती पाती और छुआछूत का भी खंडन किया है और श्री राम के द्वारा ही राम राज्य की स्थापना की जाने की कामना की।
काव्य सौंदर्य
समाज का यथार्थ अंकन हुआ है।
कवित्त छंद का प्रयोग हुआ है।
तत्सम प्रधान ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है
अभिधा शब्द शैली का प्रयोग है।
बीमा योजना सुंदर एवं सटीक है।
अनुप्रास पद मैत्री अलंकारों की छटा है।

सोमवार, 14 सितंबर 2020

विज्ञापन माध्यम के गुण

जन माध्यमों को मांग  विक्रय वृद्धि का श्रेष्ठ साधन माना जाता है जिनका उपयोग देश के दूरस्थ भावों तथा विदेश में मैं जनसाधारण तक पहुंचाने के लिए किया जाता है छोटी व्यवसायिक फलों के संदर्भ में भी कुछ विशेष प्रकार के माध्यम में जैसे पर्चियां पोस्टर तथा विज्ञापन पत्तियों के उपयोग में व्यक्तिगत संपर्क की अपेक्षा अधिक लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। विज्ञापन को प्रभावशाली ढंग से लक्षित उपभोक्ता तक पहुंचाने के लिए एक अनुकूल माध्यम का चयन भी अति आवश्यक है।
अनुकूल विज्ञापन माध्यम का चयन करते समय मुख्यतः दो विशेष बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
1.उपभोक्ता की पहचान
2. विज्ञापन के लिए आवंटित राशि
प्रभावशाली विज्ञापन अभियान के लिए विज्ञापन करता को अपने लक्षित उपभोक्ता की पहचान होने के बाद उस विशेष लक्षित उपभोक्ता को उपलब्ध विभिन्न विज्ञापन माध्यमों का विश्लेषण किया जाता है सर्वाधिक अनुकूल व प्रभावी विज्ञापन माध्यम का चयन अपने विज्ञापन के लिए कर लिया जाता है।
किसी विज्ञापन के संप्रेक्षण के लिए माध्यम विशेष का चयन करने से पहले निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार करना चाहिए।
1. माध्यम की भौगोलिक पहुंच जैसे 
अंतरराष्ट्रीय
राष्ट्रीय 
क्षेत्रीय अथवा स्थानीय
2. विशिष्ट वर्ग
जैसे
महिला
बच्चे
व्यवसायियों
अधिकारियों
आदि तक पहुंचने की क्षमता
3.माध्यम की उत्पादन गुण
4. कितने लंबे समय तक विज्ञापन ग्राहकों के सामने टिका रह सकेगा।
आदर्श विज्ञापन माध्यम के गुण
1.पहुंच-माध्यम ऐसा होना चाहिए से अधिक संख्या में लक्ष्य तक पहुंचा जा सके।
2. सस्ता-माध्यम लागत की दृष्टि से अपेक्षाकृत सस्ता होना चाहिए आदर्श माध्यमिक वह होता है जो समय के अनुसार कम से कम लागत में अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंच सके।
3. लचीला-माध्यम को पर्याप्त मात्रा में लचीला भी होना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर संदेश के आकार विन्यास, रंग आदि में परिवर्तन किया जा सके।
4. संदेश-माध्यम ऐसा होना चाहिए जिससे संदेश को वास्तविक अर्थों में श्रोता या उपभोक्ता तक पहुंचाया जा सके 5. उपभोक्ता को भ्रमित करने वाला विज्ञापन नहीं होना चाहिए।
6. पुनरावृति के अवसर-विज्ञापन माध्यम में कुछ निश्चित समय अंतराल पर संदेश को दोहराने की क्षमता भी होनी चाहिए।

माध्यमों का मूल्यांकन
वर्तमान में उपलब्ध है किसी भी विज्ञापन माध्यम मैं आदर्श माध्यम के सभी गुण विद्यमान नहीं है किसी भी माध्यम से पहुंच तो बहुत अधिक है लेकिन वह अत्यधिक महंगा है प्रत्येक माध्यम से छात्रों में आदर्श है तो उसमें कुछ दोष भी विज्ञापन माध्यम का चयन करते समय काफी सतर्क रहना चाहिए और सभी उपलब्धियों का मूल्यांकन कर लेना चाहिए।
समय की मांग के अनुसार अनुसार सभी विज्ञापनों का अलग-अलग प्रयोग करना चाहिए ।
जैसे 
समाचार पत्र
 पत्रिकाएं 
रेडियो 
टेलीविजन
 फिल्म
सोशल मीडिया फेसबुक
 टि्वटर 
इंस्टाग्राम 
युटुब

मंगलवार, 1 सितंबर 2020

कोरोना संकट में सफलता के सूत्र

कोरोना संकट में सफलता प्राप्ति हेतु अवश्यक सूत्र
भाग्य भी एक अवसर है तो कोरोना भी अवसर है।
luck -labour under correct knowledge
2  .नियमित  सही  अध्ययन
3. असफलता की जिम्मेदारी लेना।


4.मेरी मुलाकात अक्सर ऐसे लोगों से होती है जो जीवन में सफल नहीं होते हैं निराशा में डूबे रहते हैं मैं अपनी तरफ से यही सलाह देता हूं कि कभी निराश ना हो। निरंतर प्रयास करना ना छोड़े।
5. करो ना संकट में संभावनाओं की तलाश करें।
6.कोई भी सेलिब्रिटी या बड़ा व्यक्ति एक दिन में महान नहीं बनता उसके पीछे बहुत सारे प्रयास क होते हैं।
7.इंसान की प्रवृत्ति है कि वह हर हाल में अपने आप को श्रेष्ठ समझते हैं अपनी गलतियों को जल्दी से स्वीकार करना ही नहीं चाहता जब सफल होता है तब सारा श्रेय खुद लेना चाहता है और असफल होने पर है सफलता की जिम्मेदारी को स्वीकार करने की बजाय अपनी तकदीर को ही खराब बताते अच्छी बात यह होगी कि हम सही दिशा में पूरी लगन से मेहनत करें सफलता एक दिन जरूर आएगी।
8. कुछ सफल लोग किस्मत का नाम देते हैं वास्तव में वह एक अवसर होता है अवसर हमें जी हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं जिसे हम भाग्य किस मतलब का नाम देते हैं वह वास्तव में अवसर होता है जो सभी के जीवन में कभी न कभी उसे जरूर प्राप्त होता है।
9.काम की बात यह है कि अब इस कोरोनावायरस गर नकारात्मक रूप से लेंगे तो यह संभावना की बजाय आपको संकट दिखाई देगा नहीं तो यह आपके लिए संभावना बन जाए यह डिपेंड आप पर ही करता है सफलता के इंतजार में पूरी जिंदगी आप बैठे रह जाएंगे अगर किस्मत के भरोसे रहेंगे तो।
10. चीन की एक कहावत मुझे याद आती है की हजारों कदमों की यात्रा सिर्फ एक ही कदम से शुरू होती है।
11.कहने का अभिप्राय यह है कि अगर किस्मत के भरोसे बैठोगे तो बहुत सारे अवसरों को हवा दोगे करो ना कॉल में संभावनाएं तलाशी ए अपनी क्षमताओं और संसाधनों के अनुसार अनुसार कठोर परिश्रम करना शुरू कर दीजिये सफलता अवश्य मिलेगी ।
धन्यवाद

सोमवार, 20 जुलाई 2020

Mirabai sambandhit prashnon ke Uttar/मीराबाई संबंधित प्रश्नों के उत्तर

1. 
1.मीरा का जन्म कब हुआ?
मीरा का जन्म 1498 में कुडकी मारवाड़ राजस्थान में हुआ।

2.मीरा की मृत्यु कब हुई
मीरा की मृत्यु 1540 में वृंदावन में हुई।

3.मीरा के इष्ट देव कौन थे?
मीरा के इष्ट देव श्री कृष्ण थे।

4.
मीराबाई को श्री कृष्ण का कौन सा रूप भाता था?
मीराबाई को श्री कृष्ण का पति रूप भाता था।

5.श्याम चाकरी क्यों करना चाहती थी वह श्री कृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या करती थी?
श्याम को रिझाने के लिए वह शाम की चाकरी अर्थात नौकरी करना चाहती थी वह पूरा समय शाम चरणों में ही बिता देने के कारण उसकी नौकरी करने के लिए तैयार थी। श्री कृष्ण को रिझाने के लिए वह उन्हें जोगिया ,रमैया ,हरि ,अविनाशी गिरधर ,गोपाल ,दीनानाथ ,यम उदाहरण ,पतित पावन, नंद नंदन ,बलवीर ,गिरधारी गिरधारी, ठाकुर ,प्रतिपाला ,प्रेम प्रिया रानी, पूर्व जन्म रो साथी आदि शब्दों से उन्हें विभूषत करती थी।
।जैसे एक विवाहिता स्त्री अपने पति की सेवा के लिए पूरा दिन कार्य करती रहती है उसी प्रकार मीराबाई बिहार एक वह कार्य करती थी।

6.मीराबाई का बचपन किस प्रकार बीता था?
मीराबाई का बचपन राजसी ठाठ बाट से बीता था।

7.कई बार प्रश्न पूछा जाता है क्या मीराबाई राशि परिवार से थी।
उत्तर हां ,मीराबाई एक राजसी परिवार से थी उनके पिता राठौर सिंह महार महाराज थे राठौर रतन सिंह। कई रियास   तो के महाराज थे।
8.मीराबाई के अनुसार कृष्ण वृंदावन में क्या-क्या करती थी?
मीराबाई के अनुसार कृष्ण वृंदावन में गोपियों को रीझते थे , गो को चरते थे। गोवर्धन पर्वत की होली पर उठाकर ग्राम वासियों की रक्षा करते थे। अपनी बांसुरी बजा कर सभी को मंत्रमुग्ध कर देते थे।

9.पदों की कवियत्री का नाम बताइए
  पद की कवयित्री मीराबाई जी

10.मीराबाई अपना सर्वस्व किसे मानती थी
 मीराबाई श्री कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती थी।

11.मीराबाई  किस काल की कवयित्री मानी जाती हैं?
   मीराबाई भक्ति कालीन कवयित्री मानी जाती हैं।    

12.मीराबाई कृष्ण से क्या प्रार्थना करती हैं?
  मीराबाई कृष्ण से अपने उद्धार करने की प्रार्थना करती हैं     ताकि उस से मुक्ति मिल सके तथा दर्शन की अभिलाषा        वह रखती है।

13.मीराबाई की से देखकर प्रसन्न होती हैं तथा किसे देख       कर रो पड़ती है?
मीरा बाई प्रभु भगत को देखकर प्रसन्न होती हैं और जगत को देख कर रो उठती हैं।

14.मीरा का हृदय सदैव दुख से भरा क्यों रहता है?
  मीरा का ह्रदय दुख से सदैव इसलिए भरा रहता है क्योंकि   वह मोहमाया में लिप्त प्राणियों की दशा को देखकर सोच   विचार में पड़ जाती हैं तथा अंदर ही अंदर घुलती रहती हैं।


15.लोक लाज होने से क्या अभिप्राय है?
विवाहिता होने के बावजूद श्री कृष्ण को अपना पति मान कर उसके सामने नाचना परिवार की मर्यादा के विरुद्ध है संसार से दूर से एक स्त्री द्वारा संतो के पास बैठकर सत्संग करना भी उस समय के समाज में मान्य नहीं था इसी कारण उनके संबंधी और समाज के लोगों का मानना था कि मीरा ने लोक लाज को खो दिया है।

16.मीरा ने सहज मिले अविनाशी क्यों कहा है?
मीरा का मानना है कि जो समाज से भी ना डरे समाज के द्वारा दी गई यात्राओं का निडरता से सामना करते हुए भगवान के प्रति अनन्य प्रेम करते हैं वह अविनाशी प्रभु उन्हें अपने भक्तों को बड़ी सरलता से ही प्राप्त हो जाते हैं कृष्ण के प्रेम से प्रसन्न होकर सहजता व आसानी से प्राप्त हो गए हैं।

17.लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं?
लोग मीरा को बावरी इसलिए कहते हैं कि मीरा कृष्ण के प्रेम में रम कर पूरी तरह से कृष्णमयी हो गई है।विवाहिता होते हुए भी वह पांव में घुंघरू बांधकर कृष्ण के समक्ष नाचती है मीरा कृष्ण को पति रूप में स्वीकार करती है मीरा को अपने कुल की मर्यादा और लोगों की कोई परवाह नहीं है वह लोक लाज की चिंता छोड़कर संतो के पास बैठी रहती है इसी कारण लोग मीरा को बावरी कहती हैं।

18.विष का प्याला राणा भेजा, पीवत मीरा हंासी  इसमें क्या व्यंग्य छिपा हुआ है?
मीरा के कृष्ण के प्रति प्रेम को देखकर मीरा के पति राजा भोज द्वारा भी अनेक यातनाएं की गई राजा भोज के मरने के बाद भी उनके देवर ने विष का प्याला भेजा मीरा तो कृष्ण के प्रेम में लीन होकर निर्भय हो गई उसने हंसते-हंसते राणा द्वारा भेजा गया विष का प्याला पी लिया मेरा कि इसी में निहित व्यंग्य यह है कि संसार की मोह माया से ग्रसित स्वार्थी लोग कृष्ण प्रेम को नहीं जानते हैं वे मानते हैं कि शरीर की मृत्यु से अमर प्रेम समाप्त हो जाएगा जबकि वह अविनाशी कृष्ण तो निडर रहकर प्रेम करने वालों की रक्षा करते हैं तथा उन्हें सहज ही प्राप्त हो जाते हैं उनकी कृपा से अमृत में बदल जाता है।


हिंदी साहित्य में मीरा पर लिखी गई पुस्तकें

मीराबाई का जीवन परिचय/मीराबाई की संपूर्ण जानकारी

मीराबाई का जीवन परिचय
कृष्ण भक्त कवि सूरदास के पश्चात मीराबाई का उच्च स्थान प्राप्त है मीराबाई के जन्म तथा मृत्यु के संबंध में बहुत सारे मतभेद पाए जाते हैं।
जन्म -
उनका जन्म सन 1498 कुड़की मारवाड़ राजस्थान में हुआ।
मृत्यु-उनकी मृत्यु 1540 ईस्वी में वृंदावन में ही हुई।
मीराबाई का बाल्यकाल
मीराबाई राठौर रतन सिंह की इकलौती पुत्री थी उनका बालाघाल बड़े ही राजसी ठाठ बाट में बीता ।
उनकी माता जी श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहने वाली एक धार्मिक स्त्री थी। इनकी माताजी का असर ही श्री मीराबाई जी पर पड़ा। बचपन से ही श्रीकृष्ण को उन्होंने अपना पति मान लिया था।
विवाह
मेरा भाई जी का विवाह महाराणा सांगा के पुत्र कुंवर भोजराज से हुआ था।बाल्यकाल से श्री कृष्ण को अपने पति रूप में देखती थी इसलिए राजा भोज राज से उनकी ज्यादा नहीं बन पाई थी।
दुर्भाग्यवश आठ 10 वर्षों के उपरांत ही उनके पति की मृत्यु हो गई थी।
विधवा मीरा पर किए गए अत्याचार
पति की मृत्यु के बाद मीराबाई का मन अपने ससुराल में बिल्कुल नहीं लगता था उसका देवर उस उसको श्री रूप में पाना चाहता था लेकिन मीरा का मन राजसी ठाठ ,राजसी चहल-पहल में नहीं रमता था।
उसने मंदिरों में जाना शुरू कर दिया और साधु-संतों संतो की संगति में रहने लगी।मीरा ने कृष्ण को अपना पति मान लिया था और उनके विरह के ही पद वह गाती थी इस तारा बजात थी
देवर ने उन्हें जहर का प्याला तो कभी सर्प की टोकरी भेजी लेकिन श्रीकृष्ण की इतनी कृपा उनके ऊपर थी कि जहर का प्याला अमृत में बदल गया सब की टोकरी फूलों की माला से भर गई।
देवर के अनेक कष्ट दिए जाने पर भी मीरा अपनी भक्ति मार्ग से टस से मस नहीं हुई और कृष्ण का कीर्तन करते-करते कृष्णमयी हो गई।
रचनाएं
मीराबाई अधिक शिक्षित नहीं थी परंतु साधु संतों की संगति में रहने के कारण उनका अनुभव और ज्ञान बहुत व्यापक बन गया था।
उन्होंने अपने प्रियतम श्री कृष्ण के प्रेम की मस्ती में झूमते और नाचते हुए जो कुछ मुख से निकाला वही एक मधुर गीत बन गया।
इन की प्रसिद्ध रचनाएं
नरसी का मायरा
राग गोविंद
राग सोरठ
इनकी रचनाओं की मुख्य विशेषताएं
मीरा की भक्ति कांता भाव की माधुर्य पूर्ण भक्ति थी।
इनके गीतों में भगवान के आत्म समर्पण की भावना विद्यमान है।
वेदना की तीव्र अनुभूति के कारण उनका प्रत्येक गीत हृदय पर सीधा प्रभाव डालता है।
सामाजिक रूढ़ियों का विरोध होते हुए भी इनकी कविता में भारतीय इतिहास और संस्कृति की सुंदर झलक दिखाई देती है।
मीराबाई भारतीय संस्कृति के अनुसार पहली क्रांतिकारी महिला थी।
जिन्होंने समाज की रूढ़ियों को छोड़कर अपने मन के अनुसार स्वतंत्र जीवन जीने का मन बनाया।
मीरा की भाषा
मीरा जी की भाषा राजस्थानी मिश्रित लोक भाषा थी।
जो लोकप्रिय होते होते साहित्यिक भाषा बन गई।
मीरा के बिरह गीत गीत की शैली में है।
मीरा की कृष्ण के प्रति अनन्य तथा समर्पण भावना का वर्णन इसमें दिखाई देता है।
रूपक अनुप्रास पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार ओं का सुंदर चित्रण है।
इनके पदों में संगीतात्मकता का गुण है।
तुकांत छंद की छटा दिखाई देती है।
वियोग श्रृंगार रस की प्रधानता है।
भाषा में राजस्थानी लोक शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है।
करुण रस का प्रयोग है।
प्रसाद गुण विद्यमान है।

भाषा के कुछ उदाहरण

मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई


असुवन जल सीजी सीजी प्रेम बेलि बोई
अब तो बेली चली गई आनंद फल होयी


पग घुंघरू बांध मीरा नाची
मैं तो मेरे नारायण हूं आप ही हो गई साची

विष का प्याला राणा भेजा पी वत मीरा हंसी
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनाशी

गुरुवार, 16 जुलाई 2020

हिंदी साहित्य मैं उपन्यासों का विषय वर्णन

उपन्यासों का विषय वर्णन

1. निर्मला- प्रेमचंद जी
दहेज प्रथा और अनमेंल विवाह पर आधारित।

2. तितली -जयशंकर प्रसाद
ग्रामीण जीवन को केन्द्र मे रखकर नारी की कहानी।

3. सुनीता--जैनेन्द्र कुमार
विधवा विवाह पर आधारित उपन्यास।

4. परख- जैनेंद्र कुमार
विधवा विवाह पर आधारित।

5. त्यागपत्र -जैनेन्द्र कुमार
मृणाल नामक भाग्यहीन युवती के जीवन पर आधारित।

6. सुखदा--जैनेन्द्र कुमार
सुखदा के जीवन पर आधारित

7. नदी के द्वीप--अज्ञेय
यौन संबंधों को केन्द्र बनाकर जीवन की परिक्रमा दर्शाया गया है।

8. अपने अपने अजनबी --अज्ञेय
सेल्मा कैंसर से पीड़ित महिला है और योको एक नवयुवती

9. दिव्या--यशपाल 
बौद्धकाल की घटनाओं पर आधारित दलित पीड़ित नारी की करुण कथा है।

10. तिरिया चरित्तर-शिवमूर्ति 
नायिका विमल के साथ ससुर का अमानवीय व्यवहार

11. अग्निगर्भा--अमृतलाल नागर
दहेज और नारी दमन का निकृष्टतम रूप

12. बूंद और समुद्र --अमृतलाल नागर
विधवाओं की विडंबन