मीराबाई का जीवन परिचय
कृष्ण भक्त कवि सूरदास के पश्चात मीराबाई का उच्च स्थान प्राप्त है मीराबाई के जन्म तथा मृत्यु के संबंध में बहुत सारे मतभेद पाए जाते हैं।
जन्म -
उनका जन्म सन 1498 कुड़की मारवाड़ राजस्थान में हुआ।
मृत्यु-उनकी मृत्यु 1540 ईस्वी में वृंदावन में ही हुई।
मीराबाई का बाल्यकाल
मीराबाई राठौर रतन सिंह की इकलौती पुत्री थी उनका बालाघाल बड़े ही राजसी ठाठ बाट में बीता ।
उनकी माता जी श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहने वाली एक धार्मिक स्त्री थी। इनकी माताजी का असर ही श्री मीराबाई जी पर पड़ा। बचपन से ही श्रीकृष्ण को उन्होंने अपना पति मान लिया था।
विवाह
मेरा भाई जी का विवाह महाराणा सांगा के पुत्र कुंवर भोजराज से हुआ था।बाल्यकाल से श्री कृष्ण को अपने पति रूप में देखती थी इसलिए राजा भोज राज से उनकी ज्यादा नहीं बन पाई थी।
दुर्भाग्यवश आठ 10 वर्षों के उपरांत ही उनके पति की मृत्यु हो गई थी।
विधवा मीरा पर किए गए अत्याचार
पति की मृत्यु के बाद मीराबाई का मन अपने ससुराल में बिल्कुल नहीं लगता था उसका देवर उस उसको श्री रूप में पाना चाहता था लेकिन मीरा का मन राजसी ठाठ ,राजसी चहल-पहल में नहीं रमता था।
उसने मंदिरों में जाना शुरू कर दिया और साधु-संतों संतो की संगति में रहने लगी।मीरा ने कृष्ण को अपना पति मान लिया था और उनके विरह के ही पद वह गाती थी इस तारा बजात थी
।
देवर ने उन्हें जहर का प्याला तो कभी सर्प की टोकरी भेजी लेकिन श्रीकृष्ण की इतनी कृपा उनके ऊपर थी कि जहर का प्याला अमृत में बदल गया सब की टोकरी फूलों की माला से भर गई।
देवर के अनेक कष्ट दिए जाने पर भी मीरा अपनी भक्ति मार्ग से टस से मस नहीं हुई और कृष्ण का कीर्तन करते-करते कृष्णमयी हो गई।
रचनाएं
मीराबाई अधिक शिक्षित नहीं थी परंतु साधु संतों की संगति में रहने के कारण उनका अनुभव और ज्ञान बहुत व्यापक बन गया था।
उन्होंने अपने प्रियतम श्री कृष्ण के प्रेम की मस्ती में झूमते और नाचते हुए जो कुछ मुख से निकाला वही एक मधुर गीत बन गया।
इन की प्रसिद्ध रचनाएं
नरसी का मायरा
राग गोविंद
राग सोरठ
इनकी रचनाओं की मुख्य विशेषताएं
मीरा की भक्ति कांता भाव की माधुर्य पूर्ण भक्ति थी।
इनके गीतों में भगवान के आत्म समर्पण की भावना विद्यमान है।
वेदना की तीव्र अनुभूति के कारण उनका प्रत्येक गीत हृदय पर सीधा प्रभाव डालता है।
सामाजिक रूढ़ियों का विरोध होते हुए भी इनकी कविता में भारतीय इतिहास और संस्कृति की सुंदर झलक दिखाई देती है।
मीराबाई भारतीय संस्कृति के अनुसार पहली क्रांतिकारी महिला थी।
जिन्होंने समाज की रूढ़ियों को छोड़कर अपने मन के अनुसार स्वतंत्र जीवन जीने का मन बनाया।
मीरा की भाषा
मीरा जी की भाषा राजस्थानी मिश्रित लोक भाषा थी।
जो लोकप्रिय होते होते साहित्यिक भाषा बन गई।
मीरा के बिरह गीत गीत की शैली में है।
मीरा की कृष्ण के प्रति अनन्य तथा समर्पण भावना का वर्णन इसमें दिखाई देता है।
रूपक अनुप्रास पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार ओं का सुंदर चित्रण है।
इनके पदों में संगीतात्मकता का गुण है।
तुकांत छंद की छटा दिखाई देती है।
वियोग श्रृंगार रस की प्रधानता है।
भाषा में राजस्थानी लोक शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है।
करुण रस का प्रयोग है।
भाषा के कुछ उदाहरण
मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई
असुवन जल सीजी सीजी प्रेम बेलि बोई
अब तो बेली चली गई आनंद फल होयी
पग घुंघरू बांध मीरा नाची
मैं तो मेरे नारायण हूं आप ही हो गई साची
विष का प्याला राणा भेजा पी वत मीरा हंसी
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनाशी