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शनिवार, 7 नवंबर 2020

प्रयोजनमूलक हिंदी की अवधारणा

प्रयोजनमूलक हिंदी की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए
प्रयोजनमूलक हिंदी की क्या आवश्यकता है




प्रयोजनमूलक हिंदी का महत्व
भाषा का एकमात्र प्रमुख कार्य मानव के भाव अथवा विचारों का संप्रेषण करना है ।
इस कार्य को संपन्न करने के लिए भाषा शब्द और अर्थ के जिस आवरण को धारण करती है ।
वह बहुआयामी और बहु प्रयोजन आत्मक है ।
कहने का तात्पर्य यह है कि प्रयोजनमूलक  भाषा को कहा जाता है जिसका प्रयोग विशेष प्रयोजन को समक्ष रखकर किया जाता है।

प्रयोजनमूलक हिंदी की परिभाषा

 हिंदी भाषा मूल्य तय एक सुनिश्चित ध्वनि समूह ,रूप ,संरचना के वाक्य विन्यास का सांचा लिए रहती है किंतु जैसे-जैसे आवश्यकतानुसार भाषा का विकास और प्रचार होता है वैसे वैसे उसके प्रकार्यात्मक प्रयोजनों के दायरे भी बढ़ने लगते हैं।

हिंदी भाषा में भी प्रयोजन का दायरा बदलते ही उसकी भाषिक इकाई का संदर्भ अर्थ और प्रकार यह एकदम भिन्न हो जाता है ।
उदाहरण के लिए रस शब्द का प्रयोग भी देख लीजिए वनस्पति शास्त्र के संदर्भ में इसका अर्थ नींबू का रस
 आम का रस
 गन्ने का रस
 होता है ।
किंतु काव्यशास्त्र के दायरे में आते ही उसका
 वीर रस 
श्रृंगार रस 
हास्य रस
 करुण रस 
इत्यादि हो जाता है ।
यही शब्द आयुर्वेद में किसी वस्तु का सार तत्व हो जाता है ।


हिंदी अथवा मानक भाषा के प्रयोजनमलक अनुप्रयोग में एक विशेष शब्द चयनऔर अर्थ पाया कि सूक्ष्म अंतर व्यक्त करने वाली रेखाओं के प्रति सरसता की उपेक्षा रहती है ।


प्रयोजनमूलक हिंदी के विविध रूपों क्षेत्रों और आयामों की संदर्भित सार्थकता की मूल दूरी की रचना प्रक्रिया है ।

यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि संरचना प्रक्रिया की तनिक सभ्यता किस प्रकार भाषिक प्रयोजन को भिन्न बना देती है जैसे 
तरणि -सूर्य 
तरणी -नौका 
शब्द समान होते हुए भी एकदम भिन्न।


 प्रयोजन क्षेत्र और संदर्भ के संवाहक स्पष्ट है कि प्रयोजनमूलक हिंदी और उसकी संरचना प्रक्रिया के संबंध से पता चलता है कि उसका प्रयोग किसी विशेष कार्य के लिए किया जाता है तथा प्रशासनिक स्तर पर विभिन्न कार्यालयों में विभिन्न प्रयोजनों के लिए होने वाला प्रयोग एक विशेष प्रकार के शब्द चयन व वाक्य विन्यास मांगता है जो पत्रकारिता प्रयोजन हेतु अपनाए गए भिन्न प्रकार के शब्दों के वाक्य विन्यास की अपेक्षा रखता है इस प्रकार के कार्य करने में हिंदी भाषा पूर्ण है।

कंप्यूटर स्वरूप और महत्व

कंप्यूटर स्वरूप और महत्व
प्रयोजनमूलक हिंदी
b.a. द्वितीय वर्ष
सेमेस्टर तृतीय
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1.
कंप्यूटर क्या है?
कंप्यूटर एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक युक्तियां मशीन है जो दिए गए निर्देश अनुसार निर्देशन समूह के आधार पर सूचनाओं को संप्रेषित करती है  ।

2.कंप्यूटर को मुख्यतः कितने भागों में बांटा जाता है
‌‌ कंप्यूटर को मुख्यतः दो भागों में बांटा जाता है
 हार्डवेयर
 सॉफ्टवेयर

3.हार्डवेयर किसे कहते हैं?
 कंप्यूटर और कंप्यूटर से जुड़े हुए सभी यंत्रों व उपकरणों को हार्डवेयर कहते हैं उदाहरण के लिए मॉनिटर कीबोर्ड आदि।
4.सॉफ्टवेयर किसे कहते हैं
कंप्यूटर के संचालन के लिए जिन प्रोग्रामों की आवश्यकता होती है उन्हें सॉफ्टवेयर कहते हैं।
जैसे
एम एस एक्सेल
 एम एक्सल
सॉफ्टवेयर एमएस वर्ड

5.कंप्यूटर का जन्मदाता किसे माना जाता है
कंप्यूटर का जन्मदाता चार्ल्स बैबेज को माना जाता है।

6.कंप्यूटर भाषा मुख्यता कितने भागों में बांटी जाती है
 कंप्यूटर भाषा मुख्यतः दो भागों में बांटी जाती है।
 लो लेवल लैंग्वेज
हाई लेवल लैंग्वेज
7.एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के निर्माण में किस भाषा का प्रयोग किया जाता है
एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के निर्माण में हाई लेवल की भाषा का प्रयोग किया जाता है। 

8.हाई लेवल लैंग्वेज कौन-कौन सी होती हैं
हाई लेवल languages
BASIC
COBOL
FORTRAN
ALGOL
C
PASCAL

9.कंप्यूटर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग कौन सा होता है
या
कंप्यूटर का दिमाग किसे कहा जाता है
सीपीयू

10.बेसिक की का पूरा नाम क्या है
Beginner's all purpose symbolic instructions code

11.
कंप्यूटर के कितने प्रकार होते हैं?
कंप्यूटर के मुख्यतः तीन प्रकार होते हैं
एनालॉग कंप्यूटर
डिजिटल कंप्यूटर
हाइब्रिड कंप्यूटर
12. डिजिटल कंप्यूटर किस सिद्धांत पर आधारित है?
डिजिटल कंप्यूटर गणना प्रणाली पर आधारित होता है।



पत्र व पत्र के प्रकार

b.a. तृतीय वर्ष 
पांचवा सेमेस्टर
पत्र लेखन
प्रयोजनमूलक हिंदी
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी।

1.पत्र किसे कहते हैं?
पत्र एक माध्यम है जो किसी व्यक्ति को अपना संदेश किसी दूसरे व्यक्ति तक लिखित रूप में पहुंचाने का कार्य करता है।

2.पत्र के कितने प्रकार होते हैं?
पत्र के दो प्रकार होते हैं।
1. औपचारिक पत्र
2. अनौपचारिक पत्र

3.पत्र भेजने वाले को क्या कहा जाता है?
   प्रेषक

4.व्यवहारिक पत्र किसे कहते हैं?
जो पत्र सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं व्यापारियों मंत्रियों या संपादकों आदि को लिखे जाते हैं उन्हें व्यवहारिक पत्र कहती हैं।

5.आवेदन पत्र किसे कहते हैं?
जो पत्र नौकरी प्राप्त करने के लिए लिखे जाते हैं उन्हें आवेदन पत्र कहती हैं।

6.निमंत्रण पत्र किसे कहते हैं?
जो पत्र विवाह शादी पार्टी जन्मदिवस आदि किसी आयुर्वेद आयोजन पर किसी को भुलाने के लिए लिखे जाते हैं उसे निमंत्रण पत्र कहती हैं।

7.कार्यालय पत्र किसे कहते हैं?
जो पत्र एक कार्यालय द्वारा किसी दूसरे कार्यालय को लिखे जाते हैं उन्हें कार्यालय पत्र या ऑफिशियल लेटर कह जाती हैं।

8.कार्यालय पत्र में सबसे ऊपर क्या लिखा जाता है?
कार्यालय पत्रों में सबसे ऊपर पत्र संख्या लिखने अनिवार्य होती है।

9.कार्यालय पत्रों में पत्र संख्या क्यों लिखी जाती है?
कार्यालय पत्र पत्र संख्या अनिवार्य रूप से लिखी जाती है ताकि यह ध्यान रहे कि कौन सा पत्र क्रमांक किस तिथि को किस विभाग को भेजा गया था।
10.परिपत्र किसे कहते हैं?
यदि कोई पत्र सभी संबंधित या अधीनस्थ कार्यालयों या राज्य को प्रेषित किया जाता है उसे परिपत्र कहती हैं जैसे केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को भेजा गया पत्र जैसे शिक्षा महानिदेशालय पंचकूला द्वारा कॉलेज को भेजा गया पत्र परिपत्र कहलाता है।

11.नियुक्ति पत्र किसे कहते हैं?
जब किसी पत्र के माध्यम से किसी की नियुक्ति की सूचना दी जाती है उसे नियुक्ति पत्र कहा जाता है उसमें भी विज्ञापन संख्या पदों की संख्या तथा नौकरी तेज से संबंधित नियमों के बारे में लिखा जाता है उसमें डेट ऑफ जॉइनिंग आदि भी बताई जाती हैं।

12=अधिसूचना किसे कहते हैं?
भारतीय सूचना पत्रों में प्रकाशित होने वाले सरकारी नियम आदेश अधिकार या नियुक्तियों के विषय में विज्ञापित समाचार को अधिसूचना कहते हैं।

13.प्रेस विज्ञप्ति किसे कहते हैं?
प्रशासन द्वारा मिली महत्वपूर्ण सूचना या बाद सूचना को आम लोगों के बीच प्रसार प्रचार हेतु उसे समाचार पत्र में प्रकाशित करवाने को ही प्रेस विज्ञप्ति कहती हैं।

14.अनुस्मारक किसे कहते हैं? 

किसी सरकारी विभाग के कार्यालय को पूर्व में भेजे किसी पत्र के संदर्भ में प्रतिउत्तर ने पानी पर उत्तर पाने के लिए जो समरण पत्र भेजा जाता है उसे अनुस्मारक कहते हैं।
15. औपचारिक व अनौपचारिक पत्रों में क्या अंतर है?
औपचारिक पत्र-
यह पत्र किसी सरकारी या गैर सरकारी अर्ध सरकारी संस्थाओं संपादकों मंत्रियों व्यापारियों आधी को लिखे जाती हैं इनमें औपचारिकताएं करनी आवश्यक होती हैं
अनौपचारिक पत्र
यह वह पत्र हैं जिनमें औपचारिकताओं की आवश्यकता नहीं होती यह अपने ही सगे संबंधियों को लेकर जाती हैं इनमें अपने दिल के तमाम भावनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान की जाती है पत्थर पड़ने वाला और लिखने वाला आधिकारिक रूप से आपस में भावों से परिचित होता है।

मीराबाई के पद

मीराबाई के पद व्याख्या सहित

b.a. प्रथम वर्ष 
सेमेस्टर प्रथम

आज मैं यहां मीराबाई के 4 पदों का वर्णन करूंगी।

किसी भी पद की व्याख्या करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातों को जानना अनिवार्य है।

सबसे पहले शब्दों के अर्थों में हमें ध्यान देना होता है।

इसके बाद प्रसंग लिखते हैं जो बताता है कि यह पद कहां से लिया गया है इसमें किस चीज का प्रतिपाद्य किया गया है।

इसके बाद व्याख्या की जाती है व्याख्या में पद का मूल भाव शामिल किया जाता है।

सरल शब्दों में व्याख्या होने के बाद विशेष लिखा जाता है विशेष में भी दो प्रकार होते हैं।
1.  कला पक्ष
2. भाव पक्ष
कला पक्ष में हम उसकी भाषा, उसमें कौन सा अलंकार है ?कौन सा रस है उसकी शैली कौन सी है ?किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया गया है ?आदि 
8/7बिंदुओं के माध्यम से प्रदर्शित करते हैं।
प्रमुख शब्दार्थ-
परस-स्पर्श
ज्वाला- अग्नि
सरण-आश्रय लेना
शुभग-सुंदर
प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक मध्यकालीन काव्य कुंज से संकलित कृष्ण प्रेमिका मीराबाई के पद से लिया गया है। इस पद में मीराबाई प्रभु श्री कृष्ण के चरणों की वंदना करते हुए कहती है कि--
व्याख्या-हे मेरे मन तू श्री कृष्ण के चरणों का स्पर्श कर तू उसकी ही शरण का आश्रय ग्रहण कर प्रभु के चरण सुंदर कमल के समान कोमल हैं ।
यह संसार के सभी प्रकार के कष्टों को नष्ट करने वाले हैं चाहे वह दुख दैहिक ,दैविक या भौतिक ही क्यों ना हो।

 कवियत्री मीराबाई कहती है कि प्रभु के इन चरणों का स्पर्श करके प्रहलाद ने इंद्र की पदवी को ग्रहण कर लिया यही नहीं प्रभु श्री कृष्ण के इन चरणों को स्पर्श करके ध्रुव भगत को अटल बना दिया।
प्रभु श्री कृष्ण सभी शरणागत को आश्रय देतेहैं ।
प्रभु ने इन चरणों को संपूर्ण ब्रह्मांड को भेंट किया है संसार का कोई भी व्यक्ति इस संसार में आने के बाद प्रभु के चरणों का सहारा ले सकता है ।
यह चरण अपने नख शिख( सिर से लेकर पैरों तक) अत्यंत ही सो बनिए हैं। इन्हीं चरणों में कालिया नाग को ना कर गोपियों के सामने नचाया था ।
यह वही चरण है जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था और इंद्र के घरों को चूर चूर कर दिया था ।
अंत में मीराबाई कहती हैं कि मैं तो प्रभु श्री कृष्ण के चरणों की दासी हूं जो इस अगम संसार रूपी सागर को पार उतारने वाली नौका के समान है।
विशेष -
भाव पक्ष
1. कवियत्री मीराबाई ने श्री कृष्ण के चरणों की महिमा का गुणगान किया है
2. प्रहलाद और ध्रुव भगत दोनों का उदाहरण देकर समझाया है।
कला पक्ष
राजस्थानी मिश्रित ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है
तत्सम व तद्भव शब्दावली का प्रयोग हुआ है
प्रसाद वर्मा दुर्गुण सर्वत्र व्याप्त है
अनुप्रास रूपक और उदाहरण अलंकारों का प्रयोग हुआ है
शांत रस का परिपाक है
गीती शैली का प्रयोग है।
पद नंबर दो
आप सब को सूचित किया जाता है कि प्रसंग और विशेष मुख्यतः सभी में समान रहेगा।
व्याख्या-प्रस्तुत पद में मीराबाई अपने प्रभु श्री कृष्ण की वेशभूषा तथा उनके रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि बांके बिहारी श्री कृष्ण को मेरा प्रणाम है मेरा प्रणाम वह स्वीकार करें।
इनके सुंदर मस्तक पर मोर के पंखों का मुकुट विराजमान है तिलक सुशोभित हो रहा है ।कानों में कुंडल सुशोभित हो रहे है तथा सिर पर  घुंघराले बाल हैं। इनके मधुर होठों पर बांसुरी विराजमान है ।
जिस की मधुर ध्वनि ब्रज की सभी गोपियों को मोहित कर लेती हैं ।
यह गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले बंसी बजैया मोहन आपकी इसी छवि को देखकर मैं आपकी ओर आकर्षित हो गई हूं ।
गोवर्धन पर्वत को धारण करने के कारण ही श्री कृष्ण को गिरवर धारी भी कहा जाता है मेैं उन पर मोहित हो गई है यह मोह उनके प्रेम का कारण बना है।
पद नंबर 3
व्याख्या-मीराबाई कहती है कि नंद केे पुत्र  कृष्णा्ण्णा्/
श्री कृष्ण उनकी आंखों में बस गए हैं। उन भगवान श्री कृष्ण ने अपने सिर पर मोर के पंखों से बना हुआ मुकुट धारण कर रखा है ।उनके कानों में मछली की आकृति के कुंडल सुशोभित हो रहे हैं तथा उनके मस्तक पर लाल रंग का तिलक  शोभा मान हो रहा है उनका रूप मन को मोहने वाला उनका शरीर सावला है आंखें बड़ी-बड़ी हैं।
 उनके अमृत रस से परिपूर्ण होठों पर मुरली विराजते हुए शोभायमान है ।
उनके हृदय पर वैजयंती माला की फुल सुशोभित हो रहे हैं ।
मीराबाई कहती है कि गोपाल ,कृष्ण ,कन्हैया भगत वत्सल हैं तथा संतों को सुख देने वाले हैं।
पद नंबर 4
व्याख्या-मीराा अपनी अपनीी सखियों संबोधित करतेेेेे हुए कहती हैं कि
यह सखी मेरी आंखों को कृष्ण की ओर देखने की आदत पड़ गई है ।श्री कृष्ण की छवि हमेशा मेरी आंखो में समाई रहती है।
 मीरा कहती है कि श्री कृष्ण की मधुर मूर्ति मेरे नैनों में बस गई हैं ।ऐसा लगता है कि मानो मेरे हृदय में उस मूर्ति की नोक इस प्रकार जड गई है कि वह किसी प्रकार से निकल नहीं सकती है।
एे सखी 
मैं न जाने कब की अपने महल में खड़ी हुई अपने प्रियतम का रास्ता र निहार रही हूं।
 उनकी प्रतीक्षा कर रही हूं मेरे प्राण तो सांवले श्री कृष्ण के में ही फंसे हुए हैं ।
वही मेरे जीवन के लिए जड़ी-बूटी के समान है ।
अंत में मीरा कहती है कि मैं गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले भगवान श्री कृष्ण के हाथों बिक चुकी हूं लेकिन लोग मेरे बारे में कहते हैं कि मैं बिगड़ गई हूं लोक लाज मैंने छोड़ दी है भाव यह है कि मैंने अपना सब कुछ प्रभु श्री कृष्ण के चरणों में न्योछावर कर दिया है लोग भले ही मुझे कहते रहे कि मैं भटक गई हूं।




शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

अज्ञेय द्वारा रचित कविता नदी के द्वीप का प्रतिपाद्य

आज्ञा द्वारा रचित कविता
नदी के द्वीप का प्रतिपाद्य
नदी के द्वीप शीर्षक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
नदी के द्वीप कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए
नदी के द्वीप कविता की भाषा शैली समझाइए।
नदी के द्वीप श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय की सुप्रसिद्ध प्रतीकात्मक कविता है इसमें कवि ने नदी की धारा द्वीप और भूखंडों के प्रतीकों के माध्यम से व्यक्ति समाज और जीवन प्रभा के पारंपरिक संबंधों को उजागर किया है।
द्वीपड्व्यक्ति का प्रतीक है।
नदी परंपरा और प्रवाह की।
भूखंड समाज का प्रतीक है।
परंपरा समाज और व्यक्ति को जोड़ने वाली खड़ी है।
जैसे द्वीप भूखंड का अभिन्न अंग है किंतु उसका अपना अस्तित्व भी है वैसे ही व्यक्ति समाज का एक अंग है किंतु उसका अपना अस्तित्व और सकता है उसके अपने गुण और विशेषताएं उसकी अलग पहचान करवाती हैं।
व्यक्ति परंपरा अथवा काल प्रवाह के कारण समाज का अंग होते हुए भी स्वतंत्र व्यक्तित्व का बना रहता है।
ड्रिप नदी से कुछ न कुछ ग्रहण करता रहता है फिर भी वह नदी नहीं बन पाता द्वीप नदी में मिलता नहीं है नदी में मिलने से द्वीप का अस्तित्व मिट जाएगा।
 इसी प्रकारव्यक्ति भी समाज और परंपरा के संस्कार प्राप्त करके अपने अस्तित्व को बनाता है परंतु उसमें मिलता नहीं है।
समाज का सदस्य होते हुए भी उसका अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व है।
आते हैं कभी यहां स्पष्ट करना चाहता है कि व्यक्ति समाज एवं परंपरा के संबंधों को दर्शाते हुए आदमी के स्वतंत्र अस्तित्व का प्रतिपाद्य यहां किया है।


सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय का परिचय
जीवन परिचय/साहित्यिक परिचय
b.a. तृतीय वर्ष /पांचवा सेमेस्टर
सीबीएलयू यूनिवर्सिटी भिवानी हरियाणा
जीवन व साहित्यिक परिचयअज्ञेयजी आधुनिक हिंदी के प्रमुख साहित्यकार थे उनका पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन था। अज्ञेय उनका उपनाम है।
अज्ञेय का जन्म 7 मार्च 1911 में गया जिला देवरिया बिहार में हुआ।
उनका बाकी बचपन लखनऊ ,श्रीनगर, जम्मू में बिता।
उन्होंने सन् 1929 में लाहौर के फॉर्म इन कॉलेज से बीएससी की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की।

सन 1930 में उन्होंने m.a. अंग्रेजी का अध्ययन प्रारंभ किया परंतु क्रांतिकारी दल में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण अभी बंदी बना लिए गए 4 वर्ष तक जेल में रहे।

सेना सेवा
सन 1943 में आज्ञा जी सेना में कैप्टन के पद पर नियुक्त होकर कोहिमा फ्रंट पर चली गई वहां 3 वर्ष पश्चात लोटे।
1955 से 60के मध्य उन्होंने विभिन्न देशों की यात्रा की।  

संपादन कार्य

उन्होंने सैनिक और विशाल भारत पत्रिका में संपादन किया सन 1947 में उन्होंने प्रयोगवादी पत्रिका प्रतीक का संपादन किया जो कुछ समय के पश्चात बंद हो गई। नवभारत टाइम्स और दिनमान का भी संपादक है उन्होंने किया।
आकाशवाणी में कार्य
सन 1950 से 55 के मध्य उन्होंने आकाशवाणी में कार्य किया।
विदेश में कार्य
सन 1961 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में भारतीय साहित्य और संस्कृति के अध्यापक नियुक्त हुए।
सम्मान
अज्ञ े जी को आंगन के पार द्वार रचना पर साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया।
कितनी नावों में कितनी बार 1969 पुस्तक पर उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।
मृत्यु
4 अप्रैल 1987 को प्रात हृदय गति रुक जाने के कारण अजय जी का देहांत हो गया।
प्रमुख रचनाएं
अजय जी बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे उन्होंने लगभग सभी विधाओं पर अपनी कलम चलाई उनकी रचनाएं निम्नलिखित हैं।

काव्य संग्रह
हरी घास पर क्षण भर 
भग्नदूत
चिंता 
बावरा अहेरी 
धनुष रोदे हुए 
अरे ओ करुणा प्रभामय
आंगन के पार द्वार 
पूर्वा 
सुनहरे शैवाल 
कितनी नावों में कितनी बार
 सागर मुद्रा
 पहले मैं सन्नाटा बुनता हूं 
महा वृक्ष के नीचे 
नदी की बात पर छाया 
क्योंकि मैं उसे जानता हूं।
 ऐसा कोई घर अपने देखा है 

नाटक-उत्तर प्रियदर्शी

कहानी संग्रह-विपथगा
परंपरा
 यह तेरे प्रतिरूप 
जयदोल
 कोटरी की बात 
शरणार्थी
 अमर वल्लरी

उपन्यास
शेखर एक जीवनी प्रथम एवं द्वितीय खंड
अपने अपने अजनबी
नदी के द्वीप
छाया में खनन
बीनू भगत अपूर्ण उपन्यास

यात्रा वृतांत

अरे यायावर रहेगा याद
एक बूंद सहसा उछली

निबंध
त्रिशंकु
सब रस
धार और किनारे
जोग लिखी
अद्यतन
ऑल वॉल

संस्मरण
स्मृति लेखा
स्मृति के गलियारों से

साक्षात्कार
अज्ञेय:अपने बारे में
अपरोक्ष

काव्यगत विशेषताएं
अज्ञेय जी मूर्ति प्रयोगवादी कवि थे।

उनका काव्य का भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समान रूप से समृद्ध है।
आरंभिक काव्य में छायावाद और रहस्यवाद का समन्वित रूप देखने को मिलता है।
उनके काव्य में पुरुषता था और ओजस्विता की भावना के दर्शन भी होते हैं।
उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना भी प्रकट हुई है
मानवतावादी भावना की अभिव्यक्ति वह व्यक्ति निश्चित उनके काव्य की प्रमुख विशेषता है।
अनेक स्थलों पर उन्होंने तीखे व्यंग्य भी किए हैं।
इनकी कविता में अनुभूति की गहनता का सागर दिखाई पड़ता है।
कुछ विशेषताएं इस प्रकार से हैं।
व्यक्तिनिष्ठता
क्षणानुभूति
जीवन को पूर्णता से जानने का आग्रह
व्यक्ति और सृष्टि का समन्वय
क्रांति की भावना
विभिन्न उपमानो का प्रयोग
जैसे मछली ,द्वीप ,नदी ,दीप इत्यादि


1.हम नदी के द्वीप हैं
हम धारा नहीं हैं
तेरे समर्पण है हमारा

2.यह दीप ,अकेला ,स्नेह भरा
है गर्व मदमता पर
इसको भी पंक्ति को दे दो।

3.सांप!
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया
एक बात पूछूं-(उत्तर दोगे)
तब कैसे सीखा डसना
विष कहां से पाया?

निष्कर्ष-
अज्ञेयजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका व्यक्तित्व एक ऐसे विश्वास से परिपूर्ण है जो अपनी लघुता में भी नहीं खाता उनमें एक ऐसी पीड़ा है जिसकी गहराई को उन्होंने नाप रखा है वह गिरना अपमान तिरस्कार आदि के धुंधले अंधकार में हमेशा दया करने वाला चिर जागरूक दूसरों की सहायता करने वाला जिज्ञासु ज्ञानी श्रद्धा से परिपूर्ण है। उनके उपन्यास ,निबंध, संस्मरण हमेशा हिंदी साहित्य में अविस्मरणीय रहेंगे।




मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

सफलता के लिए पते की बात

सफलता पाने के लिए पते की बातें
सफलता के आधुनिक संदर्भ में मूल्य मंत्र
सफलता मिलने की कुछ कसोटिया है-
मानसिक शांति
आंतरिक आनंद
आर्थिक आत्मनिर्भरता
पारिवारिक खुशी
सामाजिक स्वीकृति
भविष्य की निश्चितता
आपके लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स किस प्रकार से हैं


1. अपने मन में जमीन अपने प्रति नकारात्मक बातों को मिटाकर अपने गुजारना व्यक्ति का अपने जीवन के प्रति पहला कर्तव्य है जब तक आत्मविश्वास और आप इच्छा की कमी है तब तक वह अपने को नहीं जान सकता।
2. सफलता के लिए सकारात्मक सोच जरूरी है क्योंकि ऐसी सोच मनुष्य को स्वाभिमानी स्वपन दृष्टा प्रतिबद्ध व्यवहारिक और रचनात्मक बनाती है सकारात्मक सोच के लिए चाहिए अच्छी स्मृतियां जानकारी मानसिक शांति आसपास की स्वच्छता अहम क्रोध और लालच से छुटकारा फोर्स लक्ष्य
3.युग के परिवर्तन को देखते हुए जो अपने कार्य के लिए दूसरों से कुछ अलग और नया रास्ता चुनते हैं और नवाचार अपनाते हैं वही आदर्श बनते हैं दिमाग की खिड़कियां खुली रखें लचीले बने ,मतांधता से बचे। चेहरे के हाव-भाव बातचीत अर्थात दूसरों के दिल तक अपनी बात पहुंचाने की संप्रेक्षण दक्षता पहनावे चार धाम और सोच ले नवीनता रखने वाले और दिलचस्प ढंग से काम करने वाले ज्यादा आगे बढ़ते हैं सफलता के लिए अपने व्यक्तित्व को अधिकाधिक श्रेष्ठ और प्रभावशाली बनाने की जरूरत होती है।
4.मन में आनंद और चेहरे पर प्रसन्नता से बड़ा होना सफलता की तरफ बढ़ते कदमों की पहचान है कष्टों और बाधाओं के बीच प्रश्न रहने से अधिक बाधक तत्व खुद चित्त हो जाएंगे अतः पर संचित रहना चाहिए इसके लिए मन को साधना पड़ता है कुछ वजह हो भी तो सदा दुखी रहना और सिर्फ अतीत का गुणगान करना आत्मा विनाश है वर्तमान के हर क्षण को आनंद और सहजता से जीना चाहिए।
5.अपनी उर्जा और समय का प्रबंधन सफलता की कुंजी है आज के काम को कल पर ना डालें क्योंकि हर नया साल नया दायित्व लेकर आता है आदमी की विफलताओं का मूल है आज के काम को कल पर टालना। इसलिए सफलता की आकांक्षा रखने वाले क निर्णयशील ौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौ और कर्मठ होना चाहिए। उसने दूरदृष्टि होनी चाहिए।
6.अक्सर 2 आदमी मिलती है और कुछ ज्यादा देर तक साथ रहती है तो तीसरे की बुराई शुरू हो जाती है किसी की निंदा करके कोई अच्छा नहीं हो जाता निंदा सुनने वाला भी सावधान हो जाता है कि यह तो परोक्ष में उसकी भी निंदा करता होगा भले प्रत्यक्ष में चाटुकारिता कर रहा है तू कारिता और निंदा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं राग द्वेष से ऊपर उठकर ही व्यक्तित्व का विकास संभव है।
7.हर काम एक पूजा है कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता एक समय में एक ही काम मनोयोग से करना चाहिए क्योंकि मस्तिष्क एक ही जगह एक आग्रह रहकर अपनी क्षमता दिखा सकता है यह भी ध्यान रखें कि कोई काम शुरू करने से पहले कार्य योजना बना लेने से जोखिम नियंत्रित हो जाता है।
8. जो अनजान है और अपने को बड़ा जानकर समझता है उससे बचकर रहना चाहिए जो थोड़ा बहुत जानकार है पर आपकी जानकारियों के प्रति शंकालु है वह हमसफ़र हो सकता है जो जानकार है और निरंतर जिज्ञासा के साथ उसके मन में अब तक की अपनी जानकारी के प्रति आस्था हो उसमें ज्ञान पाने का प्रयत्न करना चाहिए सीखना कभी बंद ना करें चाहे जितना ऊपर पहुंच जाए कहा गया है कि ज्ञान ही अंततः शक्ति और सफलता में बदल जाता है जब कर्म में उतरता है।
9. हर बड़ी सफलता के पीछे कुछ विफलता ही होती हैं फलतान को ढकने के लिए खूबसूरत बहाने खोजने की जगह उनकी वजह खोजने चाहिए अपनी कमजोरियों को पहचाने बिना आगे बढ़ना संभव नहीं है ना यह सोचे कि दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं और ना ही अपना दुखड़ा गाते फिर भीतर के डर झिझक और तनाव से लड़े जरूरत है अपनी आंतरिक शक्तियों का उत्साह पूर्वक सदुपयोग और निरंतर संवर्धन करने की चिंता नहीं करने के विकल्प पलाश सेन और विकल्पों पर चिंतन करें मनुष्य को चिंताएं दूर करने के लिए चिंतनशील बने रहना पड़ेगा हर नई पीढ़ी को सफलता पाने के लिए पुरानी पीढ़ी से ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है।
10.कोई कदम उठाने से पहले सोच लें बुरे से बुरा क्या हो सकता है बच्चे की आशा करें और बुरे के लिए अपने मन को पहले से ही तैयार रखें हमेशा आशावादी बने रहना चाहिए मेरा सा अतीत में कैद रहती है जबकि आशा भविष्य में ले जाती है।
11.दूसरे की सफलताओं से ईर्ष्या नहीं करके उनसे सीखने की अपने फायदे हैं।
12.