5955758281021487 Hindi sahitya : मई 2020

सोमवार, 25 मई 2020

बेरोजगारी पर कविता

बेरोजगारी पर कविता

करोड़ों की संख्या में 
लाखों लोग बेकार है
 भूख से तड़पते हुए वे 
नहीं मिलता उन्हें रोजगार हैं
पढ़े-लिखे युवक अकसर
 रो-रोकर यह कहते हैं
 इतना पढ़ने के बाद भी
 क्यों हम बेरोजगार रहते हैं।
कहते हैं पढ़ाई पर
 लगाया था हमने काफी दम
 आकर उची उची डिग्री
 क्यों फिर से बेरोजगार हम
क्या फायदा इन डिग्रियों का
 जो दिला  नहीं सकती काम हमें
 है लज्जा की बात यही भारी
 हम इन्हें लिए बेरोजगार फिरे
काम की खातिर हमने
 अनेकों हैं जतन किए 
चमचागिरी की अफसरों की 
उनके जूते तक भी पॉलिश किए
इतना करने पर भी
 उन्हें नहीं रोजगार मिलते हैं 
आकर तंग हालात से
 यह गलत रास्ता चुनते हैं
जगह-जगह असंख्य युवक
 बैठ बेकार में बहस करें
 खाकर धक्के इधर उधर
 लाखों में शैतान बनी
 जब देखें वे  दुनिया अपनी 
तब गुस्से से भर जाते हैं
 लाखों सुन लेते गलत राह
सैकडों पीकर विष मर जाते हैं
 रिश्वत और सिफारिश ने
 गरीब जनता को बेकार किया 
भ्रष्टाचार की इस जोंक ने 
गरीब जनता का लहू पिया
 नेता अफसर लोग सभी 
भरे घड़े को भरते हैं 
इनकी स्वार्थ लिप्सा के कारण
 गरीब  बेरोजगार बने फिरते हैं
 यही हालात रहे अगर देश में 
जो जलती क्रांति की चिंगारी 
एक दिन शोला बन जाएगी 
जलाकर इस देश को फिर
कंकालों का ढेर लगाए।


2
बेरोजगारी फैली चहु दिसि
चारों तरफ हाहाकार करें
मजदूर भागे इधर-उधर
कौन इनकी दशा में सुधार करें?
लॉक डाउनलोड डाउन शब्द पुकारे
सारे धंधे चौपट हुए
बेरोजगारी की दहशत झले
हाय मजदूर बेचारे
मजदूरों के लिए ट्रेन बस चलाई सरकार
पहुंचाए उनके घरों में
पानी रोटी शेल्टर होम की व्यवस्था करें
पर क्या रोजगार फिर से आबाद कर पाएगी सरकार
कब तक सभी रुकेंगे घरों में
क्या काम ऐसे चल जाएगा
कोरोना महामारी ने
सबसे ज्यादा कमर तोड़ दी मजदूरों की
बेरोजगारी फैली चहु दिसि
चारों तरफ हाहाकार हुआ
कब गम के बादल छूट जाएंगे
कब पहले सा दुनिया आबाद होगी
मजदूर सोचता ही रहता है
उसकी हालत पहले भी वैसी थी
अब थोड़ी और बदतर
रोज उद्योगों मैं मजदूरोंकी संख्या घटकर जीरो हुई
कब तांडव समाप्त होगा कोरोनावायरस
कब मजदूर खुशहाल बनी
इसी आशा में जीवन चलाएं
मजदूर कैसा बेहाल हुए

शुक्रवार, 22 मई 2020

CBSE examination class 10th SST sample papers

CBSE examination class 10th SST sample papers
CBSE class 10th samajik vigyan ke sample paper per ine Hindi
सामाजिक विज्ञान के सैंपल पेपर इन हिंदी
सामाजिक विज्ञान सैंपल पेपर
प्रिय वद्यार्थियों मैंने महसूस किया है कि एसएसटी सब्जेक्ट में हिंदी में सैंपल पेपर्स नहीं मिलते हैं आज मैं कोशिश करूंगी कि हिंदी में आपको सैंपल पेपर प्रदान करवा सकूं।
निर्धारित समय 3 घंटे
अधिकतम 80
कक्षा 10
विषय सामाजिक विज्ञान
सामान्य निर्देश
1.एक इस प्रश्न पत्र में कुल 26 प्रश्न होंगे सभी प्रश्न अनिवार्य हैं
प्रत्येक प्रश्न के आंसर उसके सामने दिए गए हैं।
प्रश्न संख्या 1 से 7तक अति लघु उत्तरीय प्रश्न है।
 जो एक-एक अंक के हैं।

2.प्रश्न संख्या 8 से 18 तक प्रत्येक प्रश्न तीन आंख का है जिसमें शब्द सीमा 80 शब्दों से अधिक नहीं होनी चाहिए।

3.प्रश्न संख्या 19 से 25 तक प्रत्येक प्रश्न 5 का है जिसमें शब्द सीमा 100 शब्दों  से अधिक नहीं होनी चाहिए।
4.प्रश्न संख्या 26 मानचित्र से संबंधित है जिसके दो भाग हैं 26 और 26 बी 26a 2 अंक का इतिहास से और 26 बी 3 अंक का भूगोल से लिया गया प्रश्न है।
5.पूर्ण प्रश्न पत्र में कोई विकल्प नहीं है फिर भी कई प्रश्नों में आंतरिक विकल्प हैं ऐसे सभी प्रश्नों में से सिर्फ एक ही विकल्प हल करें।


प्रश्न संख्या 1 -1885 में यूरोप के ताकतवर देशों की बर्लिन में बैठक क्यों हुई?(1)
अथवा
17वीं और 18वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गांव गांव की ओर रुख करने लगे थे?
प्रश्न संख्या दो-रोमन कैथोलिक चर्च ने प्रकाश को और पुस्तक विक्रेताओं पर पाबंदी क्यों लगाई?(1)
अथवा
उपन्यासकार जन् भाषा का उपयोग क्यों करते थे?

प्रश्न संख्या 3 उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण कीजिए(1)
प्रश्न संख्या चार चुनौती कोई समस्या नहीं बल्कि उन्नति का अवसर है कथन का विश्लेषण कीजिए
प्रश्न संख्या 5 आय के अतिरिक्त विकास के किन्हीं दो लक्षणों का उल्लेख कीजिए?(1)

प्रश्न संख्या 6  जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके वस्तुओं का उत्पादन करते हैं? तो इस प्रकार की गतिविधियां किस आर्थिक क्षेत्र के अंदर आती है(1)
प्रश्न संख्या 7 साख अथवा ऋण के अनौपचारिक क्षेत्र के कोई दो उदाहरण दीजिए।(1)

प्रश्न संख्या 8 रिंदरपेस्ट का 18 से 90 के दशक में अफ्रीका के लोगों की आजीविका तथा स्थानीय अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभाव का वर्णन कीजिए।(3)
प्रश्न संख्या 9 19वीं सदी में भारतीय बुनकरों की तीन प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए।(3)
अथवा 
19वीं शताब्दी के दौरान लंदन को साफ सुथरा करने के लिए उठाए गए किन्ही तीन कदमों का वर्णन कीजिए।

प्रश्न संख्या 10
किन्हीं तीन कारणों का वर्णन करें जो इस बात की पुष्टि करते हो की बहुउद्देशीय परियोजनाएं तथा बड़े बांध पिछले कुछ वर्षों से समीक्षा एवं विरोध के विषय बने बन गए हैं।(3)
प्रश्न संख्या 11 मोहन उत्तर प्रदेश का एक खेत का मालिक है वह उसमें या तो झूठ अथवा गन्ना हुआ ना चाहता है उसे इन दोनों फसलों की वर्दी से संबंधित बातों को ध्यान में रखते हुए कौन सी फसल लगानी चाहिए अपने विचार लिखिए।(3)
प्रश्न संख्या 12 सरकार की संघीय शासन प्रणाली तथा एकात्मक शासन प्रणाली में क्या अंतर है लिखिए।(3)

प्रश्न संख्या 13 
सामाजिक विभाजन की राजनीति का परिणाम किन तत्वों पर निर्भर करता है तीन तत्वों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।(3)
प्रश्न संख्या 14 
क्या लोकतांत्रिक शासन व्यवस्थाएं नागरिकों को शांति व सद्भावना का जीवन जीने देती हैं स्पष्ट कीजिए।(3)
प्रश्न संख्या 15 
मोहित 28 वर्षीय एक युवक है जिसका वजन 65 किलोग्राम है उसकी लंबाई 1.8 मीटर है उसका बीएमआई ज्ञात कीजिए यह भी ज्ञात कीजिए कि क्या वह अभीभारित है या अल्प पोषित है क्यों?(3)
प्रश्न संख्या 16 
अमृता एक सरकारी कर्मचारी है तथा एक अच्छे शहरी घर से संबंध रखती है वही रानी एक निर्माण कार्य करने वाले जगह पर एक हेल्पर के तौर पर कार्य करती है तथा एक गरीब ग्रामीण घर से आती है दोनों को ही घर लेना है तथा वह दोनों से लेना चाहते हैं कौन इन दोनों में से ऋण लेने में सफल होगा और क्यों?(3)
प्रश्न संख्या 17 
किस प्रकार सरकार वैश्वीकरण को बेहतर तथा इसके लाभ को समाज के सभी वर्गों को उपलब्ध करवा सकती है?(3)
प्रश्न संख्या 18 
उपभोक्ता जागृति के विज्ञापन बनाइए ताकि वे अपने अधिकार जान पाए और खुद को शोषण से बचा सकें।(3)

प्रश्न संख्या 19 
उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए कि खाद्य पदार्थों ने किस प्रकार की लंबी दूरी के सांस्कृतिक आदान-प्रदान की संभावना का अवसर प्रदान कर दिया है।(5)
प्रश्न संख्या 20 
विभिन्नसमुदाय क्षेत्रों और भाषा समूह से संबंध रखने वालों में किस प्रकार एवं सामूहिक अपने पन का भाव विकसित हुआ है स्पष्ट कीजिए(5)
अथवा 
किस प्रकार असहयोग आंदोलन पूरे भारतवर्ष में फैल गया तथा इसके किसान एवं भारतीयों के संघर्षों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
 प्रश्न संख्या 21
सूती वस्त्र उद्योग के संदर्भ में भारत में कपड़ा उद्योग की मा का वर्णन कीजिए(5)

प्रश्न संख्या 22 
विश्व में भारत के पास सबसे बड़ा रोड नेटवर्क में किस आधार पर है सड़क परिवहन रेलवे परिवहन से बेहतर स्थिति में है इससे आगे निकल गया है स्पष्ट करें।(5)

प्रश्न संख्या 23 
आज के दौर में महिलाओं को कई संसाधनों द्वारा भेदभाव और विरोध को झेलना पड़ता है 5 तर्क देकर इस कथन की व्याख्या कीजिए।(5)
अथवा
आधुनिक समय में कई बदलाव हुए हैं तथा संचार के माध्यमों पर भी इन बदलावों का असर हुआ है उपरोक्त कथन पर प्रकाश डालते हुए आधुनिक समय में भारत में उपयोग होने वाले जन संचार के साधनों की विविधता का वर्णन कीजिए।
प्रश्न संख्या 24
 राजनीतिक दल राजनीतिक शक्ति का प्रयोग करते हैं तथा राजनीतिक पदों को भी भरते हैं परंतु ऐसा वह कुछ महत्वपूर्ण कार्यों का प्रदर्शन करके ही करते हैं उनमें से कीजिए।(5)
अथवा
लोकतंत्र को प्रभावी बनाए रखने के लिए राजनीतिक दलों को कुछ चुनौतियों का सामना करने तथा उन्हें कम करने की आवश्यकता है में से किन्हीं दो नदियों के बारे में उपयुक्त उदाहरण देकर लिखिए।
प्रश्न संख्या 25
रोहन एक बैंक में क्लर्क है वही सुमित एक निर्माण कार्य क्षेत्र में मजदूर के दौरे पर कार्य करता है उनकी कार्य स्थिति में अंतर ज्ञात कीजिए तथा इन क्षेत्रों में कार्य करके होने वाले लाभ और हानि का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।(5)
अथवा
रीमा किसी महत्व टेक्सटाइल प्राइवेट लिमिटेड में मुख्य तकनीकी अधिकारी के रूप में कार्य करती है वहीं शिरीन फैशन शोरूम में एक बिक्री अधिकारी के रूप में कार्यरत है अर्थव्यवस्था की पहचान कीजिए जिसमें रीमा और भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रत्येक सेक्टर की भूमिका का वर्णन कीजिए।
मानचित्र आधारित प्रश्न 
प्रश्न संख्या 26(A)
 1.दिए गए भारत के राजनीतिक मानचित्र पर वह स्थान अंकित करें जिसका नाम भी लिखिए जहां 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था।(1)
2.दिए गए भारत के राजनीतिक मानचित्र पर वह स्थान अंकित करके उस स्थान का नाम लिखिए जहां महात्मा गांधी ने सूती मिल के कार्यकर्ताओं के लिए सत्याग्रह आंदोलन का आयोजन किया था।(1)
प्रश्न नंबर 26 (B)
मानचित्र पर नीचे दिए गए संकेतों को चिन्हित कीजिए
3. नामरूप थर्मल पावर प्लांट(1)
4. लोहा अयस्क भंडार(1)
5. तारापुर न्यूक्लियर पावर प्लांट(1)





गुरुवार, 21 मई 2020

क्या निराश हुआ जाए हजारी प्रसाद द्विवेदी

क्या निराश हुआ जाए हजारी प्रसाद द्विवेदी
निबंध सार
क्या निराश हुआ जाए निबंध आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित एक श्रेष्ठ निबंध है ।
इस निबंध में लेखक ने देश की सामाजिक बुराइयों पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट किया है कि बुराइयों के साथ-साथ अच्छाइयों को भी उजागर किया जाना चाहिए।

 आजकल समाचार पत्र डाका, हत्या ,चोरी ,तस्करी अधिक समाचारों से भरे रहते हैं।
 लगता है कि कोई ईमानदार देश में रहा ही नहीं प्रत्येक व्यक्ति को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।
 एक मित्र ने लेखक को कहा कि इस समय सुखी वह है जो कुछ नहीं करता हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है 

सच्चाई में भी भीरूता समझी जाती है ।
जीवन में महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है।

लेखकका मत है कि इस स्थिति में हताश होना ठीक नहीं लोभ,मोह ,काम विकारों को प्रधान शक्तिमान लेना उचित नहीं ।

मन एवं बुद्धि को इनके इशारों पर छोड़ देना उचित नहीं ।
भारतीय परंपरा के मृत रिश्ता चरण में कभी विश्वास नहीं किया ।
कुछ लोगों की मन की है पवित्रता के कारण नियमों का पालन नहीं हो रहा।
 भारत हमेशा से कानून को धर्म के रूप में देखता रहा है परंतु आज इन दोनों में अंतर कर दिया गया है ।
धर्म भीरु कानूनों की त्रुटियों से लाभ उठाते हैं धर्म को कानून से बड़ा माना जाता है ।
भ्रष्टाचार के प्रति जो आक्रोश है वह सिद्ध करता है कि इन लोगों को पापा चार बुरा लगता है ।
आज बुरी बातों को उद्घाटित करने करके लोग रस लेते हैं यह बुरी बात है हमें अच्छाई को भी प्रकट करना चाहिए लेखक के अंगों के अनुसार आज भी दुनिया में सच्चाई और ईमानदारी खत्म नहीं हुई है ।
मनुष्यता समाप्त नहीं हुई है मनुष्य की बनाई विधियां आज गलत नतीजे तक पहुंच रही हैं उन्हें बदलना होगा आशा की ज्योति अभी बिजी नहीं है।

मैं सबको लगता है कि आज का भारत अपनी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को भूल रहा है।

लेखक तिलक गांधी टैगोर मदन मोहन मालवीय जैसे मनीषियों द्वारा देखे गए भारत के सपनों जैसा भारत चाहता है।
लेखक का विश्वास है कि उसके मनीषियों के सपनों जैसा भारत आज भी है और सदा वैसा ही रहेगा।
आज के भ्रष्टाचारी वातावरण में साधारण लोगों की जीवन के आदर्शों से आस्था टूट रही है।
वर्तमान समय में ईमानदार मेहनती और सामान्य लोगों का शोषण हो रहा है।
ईमानदारी को मूर्खता समझा जाता है सच्चाई डरपोक तथा मजबूर लोगों के लिए रह गई है।
लोगों का उच्च मानवीय मूल्यों तथा आदर्शों के प्रति विश्वास समाप्त हो गया है ।
मनुष्य बुद्धि सदा नवीन परिस्थितियों के अनुरूप सामाजिक नियम बनाती रहती है ।
समय अनुसार उनमें परिवर्तन भी होता रहता है ।
सामाजिक नियम सबके लिए शक्कर नहीं होते इनमें भी टकराव होता है।
 और फिर बदला भी जाता है सामाजिक नियमों एवं आदर्शों में टकराव को देखकर हताश नहीं होना चाहिए ।
भारतीय भौतिक वस्तुओं के संग्रहण को अधिक महत्व नहीं देते हैं ।
भारतीयों के लिए आत्म तत्व का अधिक महत्व है ।
काम क्रोध लोभ मोह को मन और बुद्धि पर हावी होने देना कृष्ण वनी आचरण है किसी के दोषों को उजागर करना बुरी बात नहीं है ।
किसी की बुराई को उजागर कर उसमें रस लेना बुरा है अच्छाई मेरा से लेकर उसे उजागर करना चाहिए।

 अच्छाई को उजागर ना करना और भी बुरा है इस निबंध के माध्यम से लेखक बताना चाह रहा है ।
कि लेखक भयभीत इसलिए चाची डेढ़ 2 घंटे से बस सुनसान जगह पर हुई थी उसके बच्चे तथा पत्नी भूखे प्यासे बेहाल थे कहीं से कोई सहायता नहीं मिल रही थी ।
लोग ड्राइवर को पीटना चाहते थे ।
परंतु लेखक ने समझाने पर उन्होंने ड्राइवर को बस से नीचे उतार लिया और उसे घेर कर खड़े हो गए।
 एक खाली बस लेकर आ गया और सभी की समस्या का समाधान हो गया।

समाचार पत्र समाचार चैनलों के द्वारा दोषों का पर्दाफाश करने का मुख्य कारण समाज को जागृत करना है।
 जब व्यक्ति विशेष जागृत हो जाएगा तो वह गुण दोष की परिभाषा कोश रमजान और समझ सकेगा ।
सभी समाचार पत्र लोगों को एकजुट करने का कार्य भी करते हैं वह भाईचारे और बंधुत्व की भावना का विकास भी करते हैं ।

नए-नए दोषी एवं अप्रिय घटनाओं को छात्र इसी प्रकार सीडी प्रकरण भी रिश्वतखोरी और दोषियों को सबके सामने उजागर कर लोगों को चेतावनी रहते हैं ।
बुरा काम नहीं करना चाहिए इससे समाज गतिमान नहीं हो पाएगा ।
अपने कार्यों द्वारा वह समाज को नवीन पत्र देना चाहते हैं मैं लोगों को अपने गुणों की पहचान कर जीवन में आगे बढ़ने की सलाह देते हैं और निराशा से ऊपर उठने की कह रहे हैं।

बुधवार, 20 मई 2020

सीबीएसई बोर्ड की बची हुई परीक्षाएं होंगी जुलाई में

सीबीएसई बोर्ड की बची हुई परीक्षाएं होंगी जुलाई में
कोरोना कॉल मी पुराना महामारी को देखते हुए 10वीं 12वीं की परीक्षाओं को रोक दिया गया था।
अब परीक्षाएं 1 जुलाई से ली जाएंगी जीन की डेट शीट बोर्ड द्वारा जारी की गई है जो मैंने नीचे इमेज के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया है सभी बच्चे अपनी तैयारी को अंजाम दे आपके स्वर्णिम भविष्य की मंगल कामना करते हैं।यह डेट शीट सीबीएसई बोर्ड की ऑफिशियल साइट पर दीीी गई  सभीी बच्चों से अनुरोध हैैैै वह अपनी तैयारी करें सोशल डिस्टेंसिंग काााा ध्यान रखा जा सभीी कोक्ष्क्

मंगलवार, 19 मई 2020

प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए इतिहास की तैयारी हेतु पुस्तकें

इतिहास की तैयारी सेतु हिंदी मीडियम पुस्तकें


1.आधुनिक भारत का इतिहास - राजीव अहीर
2.भारतीय कला एवं संस्कृति -नितिन सिंघानिया
3.मध्यकालीन भारत राजनीति समाज व संस्कार- सतीश चंद्र
4.भारत का प्रथम प्राचीन इतिहास- रामशरण शर्मा
5.भारत गांधी के बाद- रामचंद्र गुहा
6.इंडियन हिस्ट्री पीडीएफ फेसबुक
7.हिस्ट्री नोट्स इन पीडीएफ इन हिंदी एग्जाम ट्रिक डॉट कॉम
8.जितेन क्लासेस नोट्स इन पीडीएफ
9 सरस्वती क्लासेज
10.भारत का राष्ट्रीय आंदोलन- िबपिन चंद्र
11.आईएएस कोचिंग सेंटर मुखर्जी नगर दिल्ली हिंदी नोट्स
12इ्गनू बुक्स
13.एनसीईआरटी बुक्स 6 इन ट्वेल्थ
14.घटना चक्र पिछले प्रश्न पत्र
15.जीएस प्वाइंटर
16.एनसीईआरट सामान्य ज्ञान विद्यापीठ पब्लिकेशन
17.सामान्य अध्ययन 1260 सेट 1992 से लेकर 2020        तक स्पीडी सामान्य अध्ययन
18.लुसेंट सामान्य ज्ञान
19.धनखड़ सामान्य ज्ञान
20. के .डी कैंपस इतिहास नोट्स इन हिंदी

सोमवार, 18 मई 2020

विद्यानिवास मिश्र द्वारा रचित मेरे राम का मुकुट भीग रहा निबंध का सार

मेरे राम का मुकुट भीग रहा शीर्षक निबंध का सार


मेरे राम का मुकुट भीग रहा डॉक्टर विद्यानिवास मिश्र सुप्रसिद्ध ललित निबंध है।

 इस निबंध के माध्यम से लेखक की संवेदना द्वारा लोकतंत्र वेदना का सजीव चित्रण हुआ है ।

लेखक ने लोकजीवन की अंतर वेदना को राम के राजतिलक के समय की घटना के माध्यम से सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की है।
***
*** राम का वनवास करुणा का प्रतीक है जिस व्यक्ति का राज अभिषेक हो रहा था विडंबना वर्ष उसे राज सिंहासन की अपेक्षा वनवास हो गया ।

***स्वतंत्र भारत की जनता को स्वतंत्रता के पश्चात राज सिंहासन पर होना चाहिए था किंतु राज सिंहासन पर कुछ ही जाने माने लोग बैठ गए और भारतीय जनता वनवास जैसा जीवन व्यतीत करने पर मजबूर हो गई ।

***भारत के विशेषकर अवध प्रदेश के आसपास के क्षेत्र के लोग लोक जीवन में राम की करुणामयी कहानी उनके मानस पटल पर आज भी अंकित है ।

***लेखक ने अपनी चिंता के कारणों पर प्रकाश डालते हुए एक संगीत कार्यक्रम की घटना का उल्लेख किया है अपने घर आई एक मेहमान लड़की जो संगीत कार्यक्रम में उनके बेटे साथ जाती है और देर रात तक लौटकर नहीं आती तो उनके मन में चिंता का होना स्वाभाविक है ।

****लेखक पहले तो शहरों की आज कल की असुरक्षित स्थिति का ध्यान रखते हुए इन दोनों को जाने नहीं देना चाहता था किंतु लड़के का मन रखने के लिए कह दिया कि एक डेढ़ घंटे सुनकर लौट आना रात्रि के 12:00 बजे तक उनके लौटने पर लेखक की पत्नी बहुत बेचैन हो उसी समय वर्षा का आरंभ होना लेखक और उसकी पत्नी के लिए चिंता का विषय बन गया उनकी लौट आएंगे इसी तरह शांत हो गई ।
दरवाजे में दरवाजे पर ही लगी रही लेखक के सामने उसका बचपन उन्हें जीवित हो उठा।

**** उसे अपनी दादी नानी की कही बातें रह-रह कर याद आने लगी उसके बाहर जाने पर या विदेश जाने पर दादी नानी व्याकुल होकर गीत गाती और लॉटरी पर कहती मेरे लाल को कैसा बनवास मिला था दादी नानी का गीत तो अच्छा लगता था ।परंतु मन का दर्द नहीं सोता था किंतु आज परीक्षा के प्रतीक्षा के क्षणों में उनकी बात मुझे यथार्थ महसूस हो रही है और दादी नानी की पीड़ा का भी अनुभव मुझे आज हो रहा है भावी पीढ़ी समझ नहीं पाती अपनी संतान के संभावित संकट की कल्पना मात्र से बेचैन होती है

***बार-बार मन को समझाने पर भी लेखक का मन नहीं समझता अपनी गली के वातावरण का ख्याल आते ही मन में दुश्चिंता पुन: सिर उठाने लगती है।

***मन ख्याल ो में डूबा हुआ था ।उसी समय उनका मन कौशल्या की ओर भारत की एक ऐसी कोई भी कौशल्या नहीं है। उस समय जैसी लाखों-करोड़ों को जिनका मन राम के वनवास के कारण दुखी नहीं है बल्कि कौशल्या के पुत्र राम की तरह अनेक रूप बनकर मन में घूम रहे हैं ।जिनका अपना कोई ठिकाना नहीं है किंतु समझने वाली बात यह है कि आज भी राम के सिर पर मुकुट बंधा बांधा जाता है ।


**सभी को उसके भीगने की चिंता रहती है आज भी काशी रामलीला के आरंभ होने से पूर्व निश्चित समय का मुहूर्त निकालकर राम के मुकुट की पूजा की जाती है किंतु आज लाखों करोड़ों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता जो अभावग्रस्त जीवन जीने के लिए विवश हैं। 

***लेखक पुन अपनी विचारधारा में लौट आता है कि आज केवल देश में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में ऐसी कुशल यही राम का मुकुट ही क्यों लक्ष्मण का दुपट्टा और जागरण भेज रहा है सीता का सिंदूर भीग रहा है उसका अखंड सौभाग्य दिख रहा है यह नीति का खेल है।
 कि ऐश्वर्या और निर्वासन दोनों साथ साथ चलते हैं।
 राम के राजपाट को संभालने वाले बरस अयोध्या के समीप रहते हुए भी उनसे अधिक निर्वासित जीवन व्यतीत करते हैं।
 विभिन्न आशंका और बर्मा से भ्रमित हो उठता है उसे एेसे मंगल आकांक्षा के पीछे से जाती हुई ध्वनि वाला आसन का कुल आंखों से अमंगल सा प्रतीत होने लगता है ।
उसका सारा उत्साह फीका पड़ जाता है। तुलसीदास की कहीं पंक्तियां से याद आने लगती हैं ।

लगती अवध अब आया वह भारी मां तू कालरात्रि अंधियारी गोरे जंतु संपूर्ण नारी डर पर ही एक ही एक निहारी
 घमासान परिजन जन्म होता सहित मीत मनु जमदूत 
वाघ हैवी पेलीकुला सरित सरोवर देखी ना जाए


कैसी मंगलमय सुबह की कल्पना की थी और कैसी अंधकार में कालरात्रि आ गई ।अपने ही लोग भूत-प्रेत से प्रतीत होने लगे ।
ऐश्वर्या से अभिषेक हो रहा था किंतु निर्वासन हो गया उत्कर्ष की ओर उन्मुख सिस्टम का चेतन ने अपने ही घर से बाहर कर दिया गया।
 उत्कर्ष की मनुष्य की उर्दू उन्मुख चेतना की यह कीमत सनातन काल तक अदा की जा रही है।
 अब यदि कीमत अदा कर ही दी गई है तो उत्कर्ष कम से कम सुरक्षित हो रहे ।
यह चिंता भी स्वाभाविक है राम का और राम के मुकुट का गौरव शेष के अवतार लक्ष्मण का गौरव से संभव है। और इन दोनों के गौरव की सुरक्षा जग जननी आदिशक्ति के अखंड सौभाग्य सिंदूर से रक्षित हो सकेगा ।

राम का निर्वासन सीता का दौरा निर्वासन बन जाता है।
 राम तो 1 से आकर राजा बन जाते हैं किंतु सीता रानी होते हुए भी राम के द्वारा वन में निर्वासित कर दी जाती है राम के साथ लक्ष्मण हैं किंतु 

वह जंगल की सूखी लकड़ी बनती है जलाकर अंजोर करती है जुड़वा बच्चों का मुंह मारती है।
 दूध की भांति अपमान की ज्वाला से चित्र खुद पढ़ने के लिए उठता है किंतु बच्चों की प्यारी सूरत देखकर उस पर पानी के छींटे पड़ जाते हैं और शाम तक जाता है निर्वाचन में भी तो इसका सौभाग्य है सीता का बनवास राम को निर्वासन से भी अधिक देता है।
 राम को वन में रहकर इतनी पीड़ा नहीं हुई जितनी सीता को वनवास अयोध्या में एक बार फिर साबित हो जाता है निशानी रहती है सीता के माथे का सिंदूर दमक होता है।


 सीता का वर्चस्व और प्रखर हो उठता है लेखक को सोचते सोचते प्रभात की 4:00 बजे तभी दरवाजे पर हल्की सी दस्तक हुई चिरंजीव ऊपर की मंजिल पर नहीं चढ़ने मेहमान लड़की ने कहा दरवाजा खोलिए आंखों में इतनी का तड़क थी कि कुछ कहा नहीं जा सकता लेखक ने इतना ही कहा कि तुम्हें अंदाजा भी है कि तुम्हारे ना आने से दूसरों को कितनी चिंता हुई होगी?
 किसी ने भोजन व दूध को छुआ तक नहीं।
 लेखक को तसल्ली हुई कि लड़के लौट आए बारिश में भी कर नहीं संगीत में देखकर लेखक कुछ क्षणों में फिर अपनी अर्थ चेतना में लौट आया जहां खोया हुआ था उसे लगा कि राम लक्ष्मण सीता अभी भी वन में भीग रहे है
 वर्षा है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही वृक्ष जो छाया देते हैं।
 वर्षा में अधिक कष्ट जाए बन जाते हैं बादल मूसलाधार बरस रहे हैं और मेरे राम ना जाने कबसे भीग रही हैं कुछ जनों के पश्चात राम का भ्रम लेखक का भ्रम टूटता है अनुभव हुआ कि उसके मन और धीरे-धीरे आता है कि राम तुम्हारे कबसे हुए यहां कौन किसका होता है ?
लेखक भले ही विश्वास करें लेखक के मन का चोर की यह बात सच निकली ।मनचाही और अनचाही दोनों तरह की चीजों में कितना बटा हुआ है ।
दूसरे भले ही विश्वास करें किंतु उसके भीतर अतिथि नहीं होती कि मैं किसी का या कोई मेरा है।
 लेखक के मन में एक अन्य विचार भी उभरता है कि क्या बार-बार विचित्र से अनुमन कारण चिंता किसी के लिए होती है ?वह चिंता क्या पढ़ाई के लिए भी होती है ?वह क्या कुछ भी अपना नहीं है इस उम्र में ही क्या राम अपनाने के लिए हाथ नहीं बढ़ाते आए हैं ?क्या मैं कुछ होना और मैं कुछ बनना ही अपनाने की उनकी बड़ी हुई। होड नहीं है ।

लेखक की विचारधारा टूट जाता है। और वह सोचता है कि वह हृदय कहां से लाऊं जिसमें राम को अपना कह सकूं उसमें सीता का ख्याल भी आता है उसके दर्द को अनुभव कर सकूं 1 दिन की मेहमान लड़की के देर से घर पहुंचने का कारण इतनी चिंता हो जाती है उसमें सीता का ख्याल आ जाता है ।
वह राम के मुकुट ,सीता के सिंदूर गिरने की आशंका से जोड़ने जोड़ने आज का दरिद्र हर दिन उदासी को भी ऐसा अर्थ नहीं दे देता जिसे जिंदगी से कुछ उबर सके ।

तभी पूर्व दिशा से उजाला हो जाता है नगर के इस बियाबान में चक्की के साथ कुछ चढ़ती उतरती, गति से हल्की सी सिरहन पैदा कर जाती है।

 मोरे राम के विजय मुकुटवा 

यह पंक्ति लेखक के जीवन में कुछ तरलता वश्य उत्पन्न कर जाती हैं। महीनों से उसने को आती है बस ना पाए यह दूसरी बात है किंतु बरसने के लिए भी प्रभाव का होना भी अति आवश्यक है ।
संख्या कोशिकाओं के कंठ में बसी हुई जो ₹1 है अपनी सृष्टि के संकट में उसके सतत उत्कर्ष के लिए आकुल उस कौशल्या की ओर उस मानवीय संवेदना की ओर ही कहीं रहा है।
 घास के नीचे दबी हुई किंतु आज उस घास को वन्य पशुओं के लिए राजकीय संरक्षित क्षेत्र बनाया जा रहा है ।
बहुत ही आकर्षक स्थली बनाई जा रही है।
 उस मार्ग पर तुलसी और उसके मानस के नाम पर दिखावा किया जाएगा किंतु बारिश में रामकिशोर मुड़े मुड़े होंगे यह पता लगाना बहुत कठिन है।

 प्रमुख बिंदु

1. लेखक ने उन्हें संख्या बेघर एवं अभावग्रस्त व्यक्तियों का वर्णन किया है जिनको समाज भूल गया है।

2.लेखक की मन स्थिति का वर्णन हुआ है जो राम के बारे में सोचते सोचते सभी लोगों के बारे में सोचने लगता है।

3.सीता की मनोदशा का भी सुख संता पूर्ण चित्रण किया गया है ।सीता के कष्टों का वर्णन करके लेखनी सीता के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है।

4.लेखक के मन की उदासी का परिचय दिया है ।

5.लेखक की संवेदना के माध्यम से लोग के अंतर व्यंजन में अंतर वेदना को व्यक्त किया है ।

6.राम के मुकुट के भीगने की जनता को छोड़कर अपने परिजनों की चिंता करने लगता है जो रात के समय संगीत कार्यक्रम को देखने के लिए बाहर गए हुए ।


7.सीता दो बार जंगल की के जीवन की पीड़ा को भूल चुकी है दूसरी बार का निर्वासन अत्यंत दयनीय है।

8. वहां सीता जंगली पशुओं के बीच जीवन व्यतीत करने के लिए विवश हो गई है ।


9. लेखक ने दो पीढियो विचारों में अंतर 
उनकी सोच में अंतर की समस्या को भी उजागर किया है ।

10.अप्रत्यक्ष रूप से आज के बेरोजगार युवकों की पीड़ा की कोई सीमा नजर नहीं आती।

11. अब भी व वर्षा में उनकी आशाएं निरंतर भीग रहा है चिंता करने वाले को शक्ति हैं उनके लिए कोई गीत नहीं गाया जाता ।

12.अप्रत्यक्ष रूप से आज के लाखों करोड़ों बेरोजगार राम इस लोक में दर-दर भटक रहे लेखकों के प्रति चिंता व्यक्त की।

रविवार, 17 मई 2020

b.a. तृतीय वर्ष वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तरी इतिहास सेकंड वर्ल्ड वॉर प्रश्नोत्तरी

b.a. तृतीय वर्ष इतिहास वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तरी
सेकंड वर्ल्ड वॉर
For BA 3rd year Hist. Students (17/5/2020) Unit-3 Objective type questions to learn Ch.-12.  2nd World War

प्रश्न न.1. द्वितीय विश्व युद्ध का तत्कालीन कारण क्या था  ?
उत्तर:-  जर्मनी द्वारा डेंजिग एवं पोलिश गलियारे की मांग करना 
प्रश्न न. 2. द्वितीय विश्वयुद्ध के कोई चार कारण बताये 
उत्तर:-  1.दोषपूर्ण वर्साय संधि, 2.राष्ट्र संघ की असफलता 3.उग्र राष्ट्रवाद 4. नि:शस्त्रीकरण की असफलता 
प्रश्न न. 3.  जर्मनी ऱाष्ट्र संघ से कब अलग हुआ? 
उत्तर:-  1933 ई. में
प्रश्न न.4. रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी कब स्थापित हुई  ?
उत्तर:- 1937 ई. 
प्रश्न न. 5.  जर्मनी ने सोवियत संघ के साथ अनाक्रमण संधि कब की  ?
उत्तर:- 13 अगस्त,1939 ई. 
प्रश्न न. 6. द्वितीय विश्वयुद्ध कब व किस घटना से शुरू हुआ  ?
उत्तर:-   हिटलर(जर्मनी) द्वारा पोलैंड पर आक्रमण से 1, सितम्बर 1939 ई. को शुरू हुआ 
प्रश्न न. 7. द्वितीय विश्वयुद्ध कब से कब तक लड़ा गया 
उत्तर:-  1 सितम्बर 1939 से सितम्बर 1945 ई. 
प्रश्न न. 8. सयुक्त राज्य अमेरिका द्वितीय विश्वयुद्ध मे कब व किसकी ओर से शामिल हुआ 
उत्तर :-  8 दिसम्बर 1941 ई.को , ब्रिटेन, फ्रांस व रूस की ओर से 
प्रश्न न. 9 द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका के शामिल होने के तत्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर:-      तत्कालिक कारण.. जापान द्वारा 7 दिसम्बर 1941 ई. को पर्ल हार्बर (प्रशान्त महासागर में) पर अचानक आक्रमण करना था, यहां पर अमेरिका का नौ-सैनिक अड्डा था 
प्रश्न न. 10.   त्रि-पक्षीय सन्धि कब व किन देशों के बीच हुई
उत्तर:-    27 सितम्बर 1940 ई., को जर्मनी, जापान व इटली के बीच हुई 
प्रश्न न. 11.   इतिहास में वाक्-युद्ध से क्या अभिप्राय है  ?
उत्तर:-   दूसरे विश्व युद्ध में पहले सात महीनो तक ब्रिटेन व फ्रांस की ओर से जर्मनी के खिलाफ कोई विशेष कार्यवाही नही की गयी, युद्घ की इस अवधि को इतिहास में ' वाक्-युद्ध '(Phoney War)  कहा जाता है 
प्रश्न न. 12.  जर्मनी ने नार्वे व डेनमार्क पर कब अधिकार करके उत्तरी यूरोप में महत्वपूर्ण वायु व नौसैनिक अड्डे प्राप्त कर लिए थे  ?
उत्तर:-    अप्रैल 1940 ई. 
प्रश्न न. 13.  जर्मनी ने नीदरलैण्ड, बेल्जियम, लक्समबर्ग व फ्रांस पर कब आक्रमण किया? 
उत्तर:-  10 मई, 1940 ई. को जर्मनी ने इन देशों पर आक्रमण किया, 28   मई तक फ्रांस को छोड़कर शेष तीन देशों पर जर्मनी का अधिकार हो गया ा
प्रश्न न. 14.  इटली दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी की ओर से युद्ध में कब कूदा  ?
उत्तर:-  जर्मनी के फ्रांस विजय अभियान के दौरान 10 जून 1940 को इटली युद्ध में कूदा 
प्रश्न न. 15.  पूरे पश्चिम यूरोप को जीतने के बाद जर्मनी ने इंगलैंड को जीतने के लिए कौनशी योजना बनायी  ?
उत्तर:-  सी- लायन नामक योजना ( Sea-Lion) 
प्रश्न न. 16.  ' सी-लायन ' योजना के अभिप्राय है  ?
उत्तर:-  इसके अंतर्गत इंग्लिश चैनल पर अधिकार करने के लिए ब्रिटिश वायु सेना व नौसेना को निष्प्रभावी बनाना था, इंग्लिश चैनल पर अधिकार करके ही जर्मनी इंगलैंड तक पहुँच सकता था ा
प्रश्न न. 17.  जर्मनी की सी- लायन योजना का क्या परिणाम रहा  ?
उत्तर:-  यह योजना सफल नही हुई, सितम्बर, 1940 से मई, 1941 के बीच जर्मनी के 3000 वायुयान ब्रिटिश तोपों ने नष्ट कर दिये, जबकि ब्रिटेन के मात्र 900 वायुयान नष्ट हुए ा
प्रश्न न.  18. जर्मनी ने सोवियत संघ पर आक्रमण कब किया  ?
उत्तर :-   22 जून , 1941 ई.  
प्रश्न न. 19. सोवियत संघ. और ब्रिटेन के बीच पारस्परिक सहयोग का समझौता कब हुआ? 
उत्तर :-  13 जुलाई, 1941 ई 
प्रश्न न.  20.  सयुक्त राज्य अमेरिका ने दूसरे विश्व युद्घ में कब प्रवेश किया? 
उत्तर:-  संयुक्त राज्य अमेरिका 8 दिसम्बर, 1941 ई. को ब्रिटेन व रूस की ओर से युद्ध में शामिल हुआ ा
प्रश्न न. 21. संयुक्त राज्य अमेरिका का दूसरे विश्व युद्ध में शामिल होने का तत्कालीन कारण क्या था  ?
उत्तर:-  जापान द्वारा 7 दिसम्बर, 1941 ई. को पर्ल हार्बर पर अचानक आक्रमण करना था, प्रशान्त महासागर में पर्ल हार्बर  अमेरिकी नौसेना अड्डा था ा
प्रश्न न. 22. " विजय का शस्त्रागार " किसे और क्यों कहा जाता है  ?
उत्तर:-   अमेरिका का दूसरे विश्व युद्ध में जापान के विरुद्ध प्रवेश कपने के बाद, अमेरिका द्वारा 3 लाख विमान और 500 टैंकों सहित बहुत बडी़ मात्रा में हथियारो का निर्माण किया गया, इसलिए अमेरिका को " विजय का शस्त्रागार "कहा गया 
Continue.
BA 3rd year Hist. Unit-3 Objective type questions to learn Ch.-12.  World War -11

प्रश्न न.1. द्वितीय विश्व युद्ध का तत्कालीन कारण क्या था  ?
उत्तर:-  जर्मनी द्वारा डेंजिग एवं पोलिश गलियारे की मांग करना 
प्रश्न न. 2. द्वितीय विश्वयुद्ध के कोई चार कारण बताये 
उत्तर:-  1.दोषपूर्ण वर्साय संधि, 2.राष्ट्र संघ की असफलता 3.उग्र राष्ट्रवाद 4. नि:शस्त्रीकरण की असफलता 
प्रश्न न. 3.  जर्मनी ऱाष्ट्र संघ से कब अलग हुआ? 
उत्तर:-  1933 ई. में
प्रश्न न.4. रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी कब स्थापित हुई  ?
उत्तर:- 1937 ई. 
प्रश्न न. 5.  जर्मनी ने सोवियत संघ के साथ अनाक्रमण संधि कब की  ?
उत्तर:- 13 अगस्त,1939 ई. 
प्रश्न न. 6. द्वितीय विश्वयुद्ध कब व किस घटना से शुरू हुआ  ?
उत्तर:-   हिटलर(जर्मनी) द्वारा पोलैंड पर आक्रमण से 1, सितम्बर 1939 ई. को शुरू हुआ 
प्रश्न न. 7. द्वितीय विश्वयुद्ध कब से कब तक लड़ा गया 
उत्तर:-  1 सितम्बर 1939 से सितम्बर 1945 ई. 
प्रश्न न. 8. सयुक्त राज्य अमेरिका द्वितीय विश्वयुद्ध मे कब व किसकी ओर से शामिल हुआ 
उत्तर :-  8 दिसम्बर 1941 ई.को , ब्रिटेन, फ्रांस व रूस की ओर से 
प्रश्न न. 9 द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका के शामिल होने के तत्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर:-      तत्कालिक कारण.. जापान द्वारा 7 दिसम्बर 1941 ई. को पर्ल हार्बर (प्रशान्त महासागर में) पर अचानक आक्रमण करना था, यहां पर अमेरिका का नौ-सैनिक अड्डा था 
प्रश्न न. 10.   त्रि-पक्षीय सन्धि कब व किन देशों के बीच हुई
उत्तर:-    27 सितम्बर 1940 ई., को जर्मनी, जापान व इटली के बीच हुई 
प्रश्न न. 11.   इतिहास में वाक्-युद्ध से क्या अभिप्राय है  ?
उत्तर:-   दूसरे विश्व युद्ध में पहले सात महीनो तक ब्रिटेन व फ्रांस की ओर से जर्मनी के खिलाफ कोई विशेष कार्यवाही नही की गयी, युद्घ की इस अवधि को इतिहास में ' वाक्-युद्ध '(Phoney War)  कहा जाता है 
प्रश्न न. 12.  जर्मनी ने नार्वे व डेनमार्क पर कब अधिकार करके उत्तरी यूरोप में महत्वपूर्ण वायु व नौसैनिक अड्डे प्राप्त कर लिए थे  ?
उत्तर:-    अप्रैल 1940 ई. 
प्रश्न न. 13.  जर्मनी ने नीदरलैण्ड, बेल्जियम, लक्समबर्ग व फ्रांस पर कब आक्रमण किया? 
उत्तर:-  10 मई, 1940 ई. को जर्मनी ने इन देशों पर आक्रमण किया, 28   मई तक फ्रांस को छोड़कर शेष तीन देशों पर जर्मनी का अधिकार हो गया ा
प्रश्न न. 14.  इटली दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी की ओर से युद्ध में कब कूदा  ?
उत्तर:-  जर्मनी के फ्रांस विजय अभियान के दौरान 10 जून 1940 को इटली युद्ध में कूदा 
प्रश्न न. 15.  पूरे पश्चिम यूरोप को जीतने के बाद जर्मनी ने इंगलैंड को जीतने के लिए कौनशी योजना बनायी  ?
उत्तर:-  सी- लायन नामक योजना ( Sea-Lion) 
Continue....

शनिवार, 16 मई 2020

अपना अपना भाग्य कहानी सार ( जैनेंद्र कुमार)

अपना अपना भाग्य कहानी
 लेखक जैनेंद्र कुमार

जैनेंद्र मनोवैज्ञानिक कहानी पर है। मनोवैज्ञानिक इस अर्थ में उनकी कहानी बाहय प्रवेश को अपना अपना भाग्य कहानी बाहर सड़क पर होने वाली सामान्य घटना को मनुष्य की आंतरिक मनुष्यता की कसौटी पर पर रखती है।
 कहानी विविध स्तरीय है।
 उनके कथानक को तीन हिस्सों में बांटा गया है ।
प्रथम दृश्य नैनीताल को सड़क पर सैलानियों के व्यवहार और उनकी प्रकृति के विश्लेषण पर केंद्रित है ।
दूसरा हिस्सा उस 10 वर्षीय बच्चे से जुड़ा है जिसने 10 वर्ष की कमाई आयु में जिंदगी की भयावह यथार्थ को करीब से देखा और पहचाना है ।
तीसरे अंश में एक तरह से लेखक ने हमारे मानवीय सरोकारों के सदम को अनावृत करने की चेष्टा की है ।

कहानी में नैनीताल के सुर में पर्वतीय प्रदेश का वर्णन परिवार की तरह आया है।
 लेकिन वह केवल वातावरण ही नहीं लेखक प्रकृति के उस पार सुंदर के बीच घूमते फिरते लोगों के मन की सुंदरता को व्यक्त करता है ।
वे दृश्य भारत की पराधीनता के यथार्थ को भी बेखुदी व्यक्त करते हैं ।
वहां चलने वाले 3 तरह के लोग हैं ।
कुछ लोग जो शासकीय दम से भरे अधिकार गर्व से चल रहे हैं।
 दूसरा वर्ग घोड़ों की भाषा में उन हिंदुस्तानियों का है जिन्होंने अपने सम्मान से समझौता कर लिया है ।

और अंग्रेज स्वामियों के सामने दुम हिला कर चल रही है इनके साथ साथ भारतीयों का एक ऐसा वर्ग भी है।
 जो अपनी चमड़ी के बावजूद को अंग्रेजों से ज्यादा अंग्रेज समझते हैं ।
अंग्रेजों को देखकर उनके अनुभव होते हैं ।
और अपने देशवासियों को नेटिव कहकर उन्हें वितृष्णा भरी निगाहों से देखते हैं ।
लेखक का ध्यान परिवेश के बीच उभरता ि दो संस्कृतियों के बीच की टकराहट पर भी गया है।
 अंग्रेज स्त्रियों के खुले पन और भारतीय स्त्रियों की सत्ता का भी सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं ।
सुंदरता की पहचान पहाड़ों और रोशनी से ज्यादा मनुष्य की मनुष्यता पर केंद्रित है ।
कहानी के अगले हिस्से में लेखक उसी की परीक्षा पड़ता है कड़कड़ाती सर्दी और टप टप टप चूहे के बीच लेखक के मित्र उनका ध्यान एक 10 वर्षीय बच्चे की तरफ खींचते हैं ।

बच्चे का उदास मलीन चेहरा और उनकी देह पर वैसी ठंड में गंदी से कमीज नंगे सीन नंगे पैर आगे बढ़ते लड़खड़ाते कदम उनके जीवन की विडंबना को साफ अभिव्यक्त कर रहे हैं ।
लेखक और उनके मित्र जिज्ञासा वश उससे उनके जीवन की कहानी सुनना चाहते हैं।
 जिस कहानी में और भाव और अपमान के सिवा कुछ भी नहीं था ।
वह इस कम उम्र में भूख और पिता की मार से लाचार होकर एक दूसरे लड़के के साथ घर से भाग आया था।
 वहां उसने साहब की मार खाकर अपने साथी को मारते देखा था स्वयं बहुत सा काम करते हुए भी ₹1 और जूते भोजन के बदले किसी तरह खुद को जिंदा रखने की कोशिश कर रहा था ।
की नौकरी से निकाल दिया गया और अब इस कोहरे और भ्रम में सड़क पर पड़े रहने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं बचा है ।
उसकी कहानी सुनकर दोनों मित्र द्रवीभूत होते हैं।

 उसकी नौकरी लगाने के लिए रात 1:00 बजे भी अपने एक साथी के पास जाते हैं लेकिन कुछ नहीं होता अभाव में पैदा हुए गरीब और कुंभलाए चेहरों वाले  बच्चे अपने चरित्र पर भी शैतान होने का दाग लिए आते हैं ।
मुझे होटलों में रहने वाले किसी भी सड़क चलते बच्चे की मासूमियत पर विश्वास नहीं कर सकते ।
लेखक और उनके मित्र ने आश्वासन दिया कि वह अच्छा निकलेगा किसी काम किसी काम नहीं आती।
 कहानी का यह बिंदु चरमोत्कर्ष का है दोनों संवेदनशील मित्रों की दरिद्रता की सच्ची पर किसी शान होती है दोनों की जेब से जेब में दस दस के नोट है ।
और मन में उस लड़के के लिए कुछ करने का भावजी मैं उसे खाने के लिए कुछ पैसा देना चाहते हैं पर ₹10 उसके लिए ज्यादा है स्वार्थ की फिलॉस्फी परमार्थ की भावना से कहीं शक्तिशाली है ।
सब जानते समझते हुए भी वे उसे केवल आश्वासन के सहारे उस कड़कड़ाती सर्दी में मृत्यु का ग्रास बनने के लिए सड़क पर ही छोड़ कर आगे चल देते हैं ।
उन्होंने अगले दिन उस लड़के को अपने होटल बुलाया था पर सुबह मोटर पर बैठते हुए उस लड़के की मृत्यु की खबर जिससे अपना अपना भाग्य कर लेते हैं भाग्य समाज के अंतर्विरोध यह एक तरह की का नैतिक ढोंग है है कहानी का पूरा ढांचा इस नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है ।
कहानी में यह गिने-चुने पात्रों का कोई चारित्रिक विकास नहीं है लेकिन ऐसी द्वंद पूर्ण सिटी के माध्यम से उन चरित्रों के अंतर और भाइयों के बीच जो अंतर है उसे पूरी गहराई और क्षमता के साथ अभिव्यक्त किया गया है ।
जैनेंद्र की इस कहानी में अनुभव की प्रकृति कहानी के शास्त्रीय ढांचे को चुनौती देती है ।
इस कहानी की भाषा गद्य में कविता का सुंदर उदाहरण है नैनीताल की संध्या धीरे धीरे उतर रही थी ।
यस सब सन्नाटा था। 
तल्लीताल की बिजली की रोशनी ।
दीप मलिका सी जगमग आ रही थी ।

प्राकृतिक दृश्यों के काव्यात्मक संयोजन के साथ नाटकीय संवादों की सृष्टि भी हुई है ।
लड़के के साथ पूरी बातचीत अत्यंत संस्कृत संवाद सूत्र में विकसित होती है ।
लाक्षणिक मुहावरे दारी से युक्त भाषा जैसे 
नैनीताल स्वर्ग के किसी काले गुलाम पशु के दुलार का वह बेटा ''अमूर्त को मूर्त करने का करने में सक्षम है ।
जैनेंद्र की कहानियों में गहरी विचारक विचारात्मकता से उत्पन्न आत्म विश्लेषण उनकी कथा शैली को एक भी नेता प्रदान करता है।
 इस प्रकार अपना अपना भाग्य जैनेंद्र की एक मनोविश्लेषणात्मक कहानी है ।
उम्मीद करती हूं कहानी का सार आपको अवश्य पसंद आएगा ।
धन्यवाद

शुक्रवार, 15 मई 2020

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध उत्साह का सार

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध उत्साह का सार
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध
रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय
**आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी के प्रमुख निबंधकार और आलोचक थे उनका जन्म सन 18 84 में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगौना नामक गांव में हुआ।
 इनके पिता का नाम श्री चंद्रावली शुक्ल उर्दू फारसी के विद्वानऔर मुसलमानी व अंग्रेजी सभ्यता के समर्थक थे ।

***किंतु उनकी माता गाना उस पवित्र और महान वंश की पुत्री थी जिसमें सदियों पूर्व गोस्वामी तुलसीदास ने जन्म लिया था।
 ***।शुक्ल जी को विरासत में ही महान साहित्यिकता प्राप्त हुई थी। शुक्ल जी की आरंभिक शिक्षा उर्दू फारसी में हुई।
 किंतु हिंदी के प्रति उन्हें सहज ही प्रेम था।
 नौवीं कक्षा में पढ़ते हुए एडिशन के एस्से ऑफ इमैजिनेशन कल्पना का आनंद शीर्षक से अनुवाद किया था। 

***अध्ययन समाप्त होने के पश्चात उन्होंने नायब तहसीलदार ई के लिए नामजद किया गया था। किंतु नौकरी में आत्मसम्मान की रक्षा कठिन हो जाती है। समझ कर उन्होंने त्यागपत्र दे दिया।
 हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी में हिंदी विभाग के अध्यक्ष के रूप में वह सुशोभित हुए ।

***स्वभाव से गंभीर सामाजिक व्यवहार में आते उन्हें भीड़ भाड़ और अधिक लोगों से मिलना जुलना पसंद नहीं था ।
एकांत साधना प्रिय थे ।
हिंदू विश्वविद्यालय में अध्यापन करते समय उन्होंने विश्वविद्यालय की उत्तम कक्षाओं के लिए समर्थ प्रयास किए। सन 1941 में उनका देहांत हो गया। 
प्रमुख रचनाएं-

**आचार्य रामचंद्र शुक्ल एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे ।
उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में रचना की जो निम्नलिखित हैं।
 काव्य में रहस्यवाद
 तुलसी ग्रंथावली
 कल्पना का आनंद अनुवाद।
 भ्रमरगीत सार 
जायसी ग्रंथावली
 आलोचना सूरदास 
अभिमन्यु वध
 रस मीमांसा
 बुद्ध चरित्र
 हिंदी साहित्य का इतिहास 
 चिंतामणि भाग 3 
साहित्यिक विशेषताएं 

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी प्राय: सभी निबंध विचारात्मक निबंध गंभीरता पाई जाती है।
 चिंतामणि के प्रथम भाग में मनोविकार एवं साहित्य सिद्धांत संबंधित निबंध लिखें।
 उनमें से कुछ निबंध इस प्रकार है
 करुणा
 श्रद्धा 
श्रद्धा और भक्ति 
ईर्ष्या 
कविता क्या है 
उत्साह 
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कीर्तिमान स्थापित किए हैं ।

उन्होंने हिंदी समालोचना को शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक धरातल पर प्रतिष्ठित किया है।
 उनके काव्य संबंधी विचार भारतीय हैं और सैद्धांतिक उपयोग किया है।
 क्रोचे के वक्रोक्ति तक की तुलना करते हुए उन्होंने पाश्चात्य अभिव्यंजनावाद को वक्रोक्ति का विलायती उत्थान माना है ।
जायसी ,तुलसी ,सूर की काव्यगत विशेषताओं का उन्होंने सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
 रस मीमांसा में इन्होंने रस के शास्त्रीय विवेचन की मौलिक व्याख्या प्रस्तुत की है।
 भाषा शैली 
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने निबंध साहित्य में प्रौढ़ एवं प्रांजल भाषा का प्रयोग किया है।
 शब्द चयन वाक्य रचना आदर्श विधान व्यंजना शक्ति आदि में इनकी भाषा निपुणता का बोध कराती है।
 चिंतन तथा भाषा के उत्कर्ष में उनके निबंध विरल है।
 शुक्ला जी की निबंध शैली उनके प्रखर व्यक्तित्व की परिचायक है
 उनके निबंधों में आवश्यकता अनुसार 
समास शैली 
व्यास शैली
निष्कर्ष 
आगमन शैली
 निगमन शैली आदि का प्रयोग मिलता है।
 लोकोक्तियां, मुहावरे अंग्रेजी ,अरबी ,फारसी, आंचलिक शब्दावली का भी प्रयोग मिलता है।
 निष्कर्ष 
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य की की अनुपम निधि है इनमें गंभीर विवेचन के साथ-साथ अन्वेषण चिंतन का भी मणिकांचन सहयोग मिलता है ।
स्पष्ट अनुभूति के साथ-साथ अभिव्यंजना का अपूर्व सा मिश्रण मिलता है ।
आचार्य शुक्ल जी के गंभीर व्यक्तित्व उनके निबंधों में विषय गंभीर  है।
 आचार्य शुक्ल जी के गंभीर व्यक्तित्व के अनुकूल ही उनके निबंधों के विषय भी अत्यंत गंभीर हैं ।
व्यवहारिक समीक्षा की नई पद्धति के साथ-साथ सैद्धांतिक तर्क वितर्क, पूर्ण संविधान की अनुपम योजना का चीर स्तरीय मिलता है ।
विचारात्मक निबंधों की अद्भुत कसावट, पूर्ण विचार संकला के साथ-साथ पाठकों की बुद्धि को उत्तेजित करने वाली ।
भाषा की पूर्णता शक्ति प्रदान करने की प्रमुखता भी मिलती है ।
यही कारण है कि शुक्ला जी के निबंध आज भी निबंध साहित्य में अपना श्रेष्ठ स्थान बनाए हुए हैं। उत्साह निबंध आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का हिंदी साहित्य आजीवन ऋणी रहेगा।
धन्यवाद।
उत्साह निबंध
उत्साह आचार्य शुक्ल प्रत्येक मनोवैज्ञानिक निबंध है ।

**इसमें लेखक ने उत्साह नामक भाव की सरल व्याख्या की है।
 मानव मन में उत्पन्न होने वाली साहसपूर्ण आनंद की उमंग को उत्साह की संज्ञा दी है ।
लेखक के अनुसार   दुःख को सहन करने के साथ-साथ आनंद पूर्वक निष्ठा भाव से मानव को उत्साही बनाती है।

 उत्साही वीर को प्राप्त होने वाले उत्साह की मात्रा के आधार पर उत्साह के दो भेद माने जाते हैं।
1. युद्धवीर
2. दया वीर और दानवीरता
 उत्साह 
उत्साह दया दान के प्रति उत्साह किंतु इन सभी प्रकार के उत्सव में कष्ट और हानि के साथ आनंद प्राप्त करने का प्रयत्न अपेक्षित है।

*** बिना बेहोश में फोड़ा चिरना साहस तथा कठिन से कठिन प्रहार सहकर भी अपने स्थान से ना हटना धीरज कहलाएगा और इस साहस तथा धीरज को उत्साह तभी कहा जाएगा ।
जब कर्ता को इन कर्मों में आनंद की अनुभूति हो, उत्साह में धीरज और साहस दोनों का ही योग रहता है।

 परंतु इसकी मूल अनुभूति आनंद की ही रहती है ।

***दान वीरता में धन त्याग का संघर्ष करते हुए शहर से दान देने का साहस अपेक्षित होता है ।
**दानवीर तक यथार्थता इसी में है कि दानी को दान देने के कारण जीवन निर्वाह में कष्ट झेलना पड़े तो वह उसे भी स्वीकार कर ले।
 इसी प्रकार लेखक ने उत्साह के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।
उद्धरण

1.सहारा के मरुस्थल की यात्रा 
2.अनुसंधान हेतु दुर्गम पर्वतों की चढ़ाई 
3.भयंकर जातियों के बीच प्रवेश

 आदि की गणना की है ।

***लेखक की धारणा है कि मानसिक कष्ट के साथ-साथ शारीरिक कष्ट भी सहन करना उत्साह माना जाएगा।

***** उत्साह का शुभ या अशुभ भाव होना इसके परिणाम के द्वारा जाना जाता है परिणाम शुरू होने से उसकी गिनती अच्छे भाव में तथा परिणाम अशुभ होने से उसको बुरा समझा जाता है।
 यह आवश्यक नहीं ,उत्साह केवल साहस पूर्ण कार्यों में ही हो ,अपितु किसी भी कार्य में आनंद पूर्ण तत्परता भी उत्साह कहलाएगा।।

** हम अपने मित्रों या बंधुओं के स्वागत में भाग कर खड़े हो जाते हैं तो उत्साही कहलाएंगे ।
उत्साही को कर्मवीर कहा जाता है या बुद्धि भी इसके लिए यह देखा जाना चाहिए कि उत्साह की अभिव्यक्ति बुद्धि व्यापार और अवसर पर होती है या बुद्धि द्वारा निश्चित उद्योग में तत्पर होने की दशा पर परंतु साधारण उत्साह की अभिव्यक्ति उद्योग की तत्परता पर ही होती है।

** इसलिए उत्साही को कर्मवीर कहना ज्यादा उपयुक्त होगा।
 कर्म करने की भावना ही उत्साह उत्पन्न करती है जिसमें साहस और आनंद का सामंजस्य रहता है ।

वीर रस के आलंबन का स्वरूप इतना स्पष्ट नहीं होता जितना की अन्य रसों का।
*** हनुमान द्वारा समुंदर पार लगने का कारण समुंदर नहीं अपितु समुंदर लाने का करम है।

 उषा की गणना एक अच्छे गुणों से होती है किसी कार्य को अच्छा या बुरा होना उसके करने के ढंग अथवा परिणाम में निहित होता है।
 लेकिन शुभ कार्यों में आत्मरक्षा पर रक्षा, देश रक्षा की गणना की है।
 उत्साह में कुछ योगदान बुद्धि का भी आवश्यक है ।
**बुद्धि और शरीर की तत्परता का संबंध में है  कर्मवीर में देखा जाता है।

*** आचार्य शुक्ल ने यह प्रश्न उठाया है कि उत्साह में ध्यान कर्म पर उसके फल पर या व्यक्ति या वस्तु पर रहता है।

 *** उत्तर देते हुए उन्होंने कहा है कि उत्साही मनुष्य का ध्यान पूर्ण रूप से कर्म परंपरा पर होता हुआ।
 उसकी समाप्ति होने की सीमा तक जाता है।

 देखना है जो श्रद्धा या दया से प्रेरित होकर साहस और आनंद के साथ जैसे दूस्साध्य एवं कठिन कार्य में प्रवृत्त होता है।
लेखक ने कर्म अनुष्ठान में प्राप्त होने वाले आनंद का वर्गीकरण किया है ।

कर्म भावना से उत्पन्न 
फल भावना से उत्पन्न 
और विषय अंतर से उत्पन्न 
इनमें से सच्चे कर्म वीरों का आनंद कर्म भावना से उत्पन्न होता है क्योंकि इसमें साहस का योग अपेक्षाकृत कम ना होकर बहुत अधिक होता है।

 उनकी दृष्टि में कर्म और फल में कोई विशेष अंतर नहीं होता है।

** सफल होने पर भी वे हतोत्साहित नहीं होते फल फल भावना का आनंद फल की प्राप्ति अथवा प्राप्ति के अनुसार कम या ज्यादा रहता है ।

कर्म भावना का उत्साह ही सच्चा उत्साह होता है जो प्राप्त होता है।

कर्म की अपेक्षा फल में अधिकार सकती होने पर मनुष्य के मन में यह विचार उत्पन्न होता है कि कर्म भी ना करना पड़े और फल भी अधिक मिले इस धारणा से कर्म करते हुए जो आनंद मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाता ।उत्साही व्यक्ति को कर्म करते हुए भी यदि अंतिम फल की प्राप्ति ना हो तो वह एक रमणी व्यक्ति की अपेक्षा अनेक अवस्थाओं में अच्छा रहता है।
**
 **कर्म काल में उसे संतोष का आनंद तो मिलता ही है।
 इसके बाद फल की प्राप्ति पर उसे यह पछतावा नहीं रहता कि उसने प्रयत्न नहीं किया। साधारणतया देखा जाता है कि व्यक्ति में आनंद का कारण तो कुछ और होता है परंतु उससे व्यक्ति में एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि अन्य बहुत सी कर्म भी वह सहर्ष कर लेता है।
 निष्कर्ष 
सच्ची लगन एवं कर्तव्य, बुद्धि द्वारा कर्म करने वाला व्यक्ति आनंद पूर्ण साहस का प्रदर्शन करता है ।वास्तव में वही उत्साह है ।
उसकी परिभाषा के आधार पर युद्धवीर ,दानवीर कर्मवीर, बुद्धि वीर आदि उत्साही व्यक्ति के भेद किए जा सकते हैं ।
धन्यवाद

गुरुवार, 14 मई 2020

बालमुकुंद गुप्त आशा का अंत निबंध का सार


आशा का अंत निबंध
बालमुकुंद कृत आशा का अंत निबंध का सार

आशा का अंत निबंध का सारांश
***बाबू बालमुकुंद गुप्त द्विवेदी युगीन हिंदी निबंध उन्होंने भाषा ,व्याकरण, समाज ,राजनीति ,देश -दशा आदि विभिन्न विषयों को लेकर अपने निबंधों की रचना की निबंधों में भारतेंदु युगीन राष्ट्रीयता द्विवेदी युगीन भाषा शैली में बड़ी मस्ती भरी आत्मीयता ,निर्भीकता के साथ अभिव्यक्ति हुई है किंतु इनके श्रेष्ठ निबंध राजनीति सामाजिक जन जागरण एवं राष्ट्रीयता की भावना को लेकर लिखे गए हैं। 

****"आशा का अंत इनका एक राजनीति व्यंग्य प्रधान निबंध है ।इस निबंध में गुप्तजी ने देशवासियों को अंग्रेजी कुट नीति एवं भारत दुर्दशा से परिचित करवाने हेतु शिव शंभू जैसे पात्र की कल्पना की है जो भांग झोक में आकर कटु से कटु सत्य को व्यक्त करने और सर्वोच्च शासक को खरी-खरी सुनाने से नहीं कतराते।

*** शिव शंभू लार्ड कर्जन को संबोधित करते हुए कहता है कि रोगी रोग को, कैदी कैद को, ऋणी रख ,कंगाल दर्द को क्लेश क्लेश को आशा से झेलता है क्योंकि उसे लगता है 1 दिन उसका जीवन इन सभी क्लेश और से मुक्त हो जाएगा किंतु यदि उसकी आशा का ही अंत हो जाए तो उसके कष्टों का ठिकाना नहीं रहता।

***भारतीय जनता लॉर्ड कर्जन की की नीतियों से दुखी थी।
लॉर्ड कर्जन निरंकुश प्रवृत्ति का वाला इंसान था वह नहीं चाहता था कि भारतीय जनता किसी प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाए उसने भारत में दूसरी बार वायसराय बनकर आते ही यहां कि मनुष्य पहले टेक ऑपरेशन की सलाह दी इतना ही नहीं अकाल पीड़ितों के प्रति सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करने की अपेक्षा उसने कड़ी मजदूरी लगा दी वह जनता की भलाई के नाम पर अंग्रेजी शासन का भला करता था अवसरवादी था जब भी अवसर मिलता था भारतीयों का वादी कहकर गाली गलौज करता था। धूर्त कहता था। वह भारतीय जनता की भावनाओं को जरा भी तवज्जो नहीं देता था।
*** सदा भारतीयों को नीचा दिखाने का प्रयास करता था उनकी इन्हीं नीतियों के कारण भारतीय जनता उसे दुखी थी।
भारतीयों की दशा

***बालमुकुंद गुप्त जी ने भारतीय जनता की ऐसा हादसा का यथार्थ चित्रण अंकित इस निबंध के माध्यम से किया है भारतीय जनता से देवकरण वार्ड में विश्वास रखती है लेकिन वह अपनी दीनता के लिए सभी शासक को जिम्मेदार नहीं ठहरा थी।
 प्रस्तुत निबंध में लेखक ने इस तथ्य को उजागर किया है कि आपके स्वदेशी यहां बड़ी-बड़ी इमारतों में रहते हैं ।जैसे रुचि हो वैसे पदार्थ सकते हैं भारत अपने लिए योग्य भूमि है किंतु इस देश के लाखो आदमी इस देश में पैदा होकर आवारा कुत्तों की बकबक करते हैं ।
उनके दो हाथ भूमि बैठने को नहीं पेट भर कर खाना खाने को नहीं लेता देते हैं एक दिन चुपचाप कहीं पडकर प्राण दे देते हैं ।
व्यंग्यकार का व्यंग्य और विरोध
लार्ड कर्जन जब दूसरी बार भारत में वायसराय बनकर आया तो उसका घमंड और अहंकार सातवें आसमान पर था वह अंग्रेजी जाति के सामने किसी को कुछ नहीं समझता था लेखक को लॉर्ड कर्जन द्वारा भारतीयों को नीचा वादियों और धूर्त झूठा और मक्कार कहना बहुत खटका लेखक ने इस बात की प्रतिक्रिया स्वरुप की इस निबंध की रचना की तथा इसके विरोध में कहा कि हम भारत देश के निवासी हैं सृष्टि करते हैं सत्य प्रिय हैं देश का ईश्वर सत्य ज्ञान अनंतम ब्रह्मा भला ऐसा देश और उसके निवासी मितावादी कैसे हो सकते हैं।
बालमुकुंद गुप्त की देशभक्ति
देश हित में व्यक्त विचार की देशभक्ति की भावना कहलाती है ।
अपने देश के गौरव और स्वतंत्रता की रक्षा अपने देश के शोषण करता हूं के प्रति घृणा और विरोध और उनके देश की उन्नति हेतु व्यक्ति विचार भी देश प्रेम कहलाता है
 इस दृष्टि से बालमुकुंद गुप्त द्वारा रचित आशा का अंत निबंध है देश प्रेम की भावना से परिपूर्ण है। इसलिए बंद कि जब रचना हुई तो भारत अंग्रेजों के आदमी लार कर्जन दूसरी बार वॉइस राय बन कर भारत लौटा था भारत वासियों को बहुत सारी उम्मीदें उनसे थी लेकिन उन्होंने अपने प्रथम भाषा में ही सभी भारतीयों की आशाओं का अंत कर दिया कोलकाता मुंसिपल कॉरपोरेशन के स्वाधीनता छीन ली अकाल पीड़ितों की उपेक्षा की महत्वपूर्ण पदों पर अंग्रेजों के लिए आरक्षित कर दिया और कहा कि रक्षा करने वाले भाषणों पर रोक लगा दी पत्र-पत्रिकाओं को रोक दिया गया उनकी स्वतंत्रता छीन ली गई। अंग्रेजों का भारतीय ोो को बुरा भला कहना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था निबंध के माध्यम से गुप्तजी ने स्पष्ट किया है कि जो शासक अपनी गरीब प्रजा के प्रति ध्यान नहीं देता उसके दुख दर्द के विषय में विचार नहीं करता ऐसे शासक को प्रजा को गालियां देने का भी अधिकार नहीं है।अंग्रेजों के शासन होते हुए भी उनके विपरीत बातें लिखना एक साहस पूर्ण व हिम्मत भरा कार्य है इस प्रकार उनकी देशभक्ति झलकती है।
आशा के अंत निबंध का उद्देश्य
प्रस्तुति निबंध में बालमुकुंद गुप्त जी ने लॉर्ड कर्जन द्वारा भारत वासियों पर लगाए झूठे आरोपों प्रतिबंधों तथा उनकी गलत नीतियों का कड़े शब्दों में खंडन किया है यही इस निबंध का प्रमुख उद्देश्य है दूसरी ओर लेखक ने यह प्रमाणित किया है कि किसी को झूठा कह देने से उसकी सत्यवादी का सीधे नहीं होती है लॉर्ड कर्जन ने अनेक ऐसी नीतियां बनाए जिससे भारत वासियों की स्वाधीनता छिन जाए अनेक पदों पर भारतीयों की नियुक्तियों की रोक लगा दी गई लेकिन के सभी आरोपों का उत्तर देते हुए कहा है कि जिस देश में ईश्वर सत्य ज्ञान ब्रह्मा अनंत हो भला उसे झूठा मक्कार वनियावादी कैसे कहा जा सकता है अंत में लिखा है कि भारतीय जनता लॉर्ड कर्जन को अपना शिकार करती है तो भला फिर वह यहां शासक बन सकता है।

बुधवार, 13 मई 2020

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत निबंध देवदारु का सार

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत निबंध देवदारू का सार
देवदारु निबंध का प्रतिपाद्य
देवदारु निबंध का उद्देश्य
देवदारु निबंध का सार
देवदारु निबंध आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत एक भावात्मक निबंध है।

**द्विवेदी जी के निबंध संग्रह कुटज में संकलित निबंध में लेखक ने   देवदारू वृक्ष की महिमा का परिचय दिया है ।

**देवदारू वृक्ष होते हुए भी पर्वतीय पर्यावरण संरक्षक है।

*** यह महादेव का प्रियतम है यही कारण है देवदारू वृक्ष कहा जाता है।
 **यह वृक्ष नाम और अस्तित्व से महाभारत से भी प्राचीन है ।

**ललित निबंधकार हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इस वृक्ष की प्रशंसा की है और संदेश देने का प्रयास किया है कि एक सिद्धांत वादी वृक्ष श्रम को समाज से जोड़कर किस प्रकार आम आदमी का पथ प्रदर्शक बन सकता है।

**देवदारू वृक्ष वास्तव में सुंदर है ।
**वह एक आकर्षक वृक्ष भी है ।
**वह धरती से रसाग्रहण करके आकाश को छू लेना चाहता है ।
**हवा के झोंके में जब मिलता है तो वह मस्त होकर झूम उठता है। उसके झूमने में एक अजीब तरह की अनुभूति है जो युग युगांतर की संचित अनुभूति सी प्रतीत होती है। युगों के परिवर्तन को उसने देखा है।

 वहां खूब फल-फूल सके इसलिए देवदारू पर्वतों के नीचे नहीं उतरता है।
 समझौते के रास्ते पर ही नहीं और ना ही उसने अपनी खानदानी चाल से झूमता हुआ ।वह ऐसा मुस्कुराता है मानो कह रहा हो कि मैं सब समझ सकता हूं ।
देवदारू समय के उतार-चढ़ाव का दुर्लभ है निर्मल साथी है ऐसा साथ ही मिलना दुर्लभ है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि यह भगवान शिव काा भी प्रिय वृक्ष हैै किि देवदारू वृक्ष कालिदास और महाभारत से भी पुराना है यह निरंतर आकाश कीी ओर उड़ता चला जाताा है। इसकीी शाखाएं इस मृत्यु लोगों कोो अभयदान देेेेेेने के लिए फैलती चलीी जाती है।

**ऐसा कहा जाता है कि शिव ने प्रसन्न होकर उधम नर्तन किया था ।उस समय उनके शिष्य तांडू मुनि ने उन्हें याद किया उन्होंने जिस नृत्य का प्रवर्तन किया उसी को तांडव नृत्य कहा गया ।
तांडव नृत्य कार तांडू मुनि द्वारा प्रवर्तित भाव नृत्य रस का अर्थ है, और भाव का भी अर्थ है परंतु तांडव ऐसा नाच है जिसमें कोई अभाव नहीं होता लेखक स्वीकार करता है कि तांडव एक प्रकार की समाधि है जिसमें ध्यान धारणा और समाधि तीनों का योग है।
 देवदारू भी क्लासिक तथा उल्लास का सूचक है उसे देवदारू कहना अधिक उचित है देव होकर भी पसंद है तथा तरु होकर भी उसका अर्थ है जिस प्रकार कविता में छंद और अलंकार होते हैं तथा उसका अर्थ होता है और दोनों के कारण ही कविता बनती है इसी प्रकार देव देवता भी और तरू भी।

**उसे देवताओं का कार्ड भी कहा गया है तो उसे पता चलता है कि उसमें मैं तो दया है ,ना माया और ना मोहन ऐसे लगता है कि देवतरू हमेशा सावधान और जागृत रहता है, देवताओं की आंखें हमेशा खुली रहती है कभी बंद नहीं होती।
देवदारु का चमत्कारिक महत्व भी है।

*** लेखक ने अपने गांव के एक महान भूत भगवान ओझा को देवदारू की लकड़ी से भूत भगाते भी देखा है। इसी वजह न लेकर को चमत्कारी कहानी भी सुनाई।
पंडित जी ने जूता उतारा और मुंह से गायत्री मंत्र का उच्चारण कर देवदारू की लकड़ी से भूत को भगा दिया देवदारू की भंय कर
 मार से पराजित होकर भूत ने माफी मांगी और उसकी गुलामी स्वीकार कर ली।
 देवदारू के माध्यम से लेखक हमें बताना चाह रहा है कि भूत का माथा ही नहीं होता ,मस्तिष्क कहां से होगा।।
** भूत प्रेत कोई चीज नहीं होती यह सिर्फ काल्पनिक ता होती है सिर्फ हमारे दिमाग की उपज होती है।

** लेखक समझाना चाहता है कि सब विवेक का प्रयोग करके कल्पनिक बातों से दूर रहना चाहिए।

*"**लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी का देवदारु निबंध के माध्यम से पाठक वर्ग को कुछ उपदेश या संदेश दिए हैं।

1 देवदारू कोई वृक्ष ही नहीं देव और तरु दोनों की विशेषताएं इसकी हैं।
2.देवदारू के माध्यम से लेखक संदेश देता है कि विभिन्न परिस्थितियों आएगी, हर परिस्थिति में समान बने रहना जरूरी है ।देवदारु की तरह अटल और स्थिर रहना ही जीवन का उद्देश्य है।

3.देवदारु निबंध के माध्यम से आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी बताना चाहते हैं कि परिस्थितियों से समझौता ना करके उनमें समन्वय करने का भाव होना चाहिए।

4.मानव की जाति के आधार पर नहीं उसकी पहचान उसके गुणों के आधार पर होनी चाहिए ।उदाहरण स्वरूप इंदिरा गांधी अपनी राजनीति और कूटनीति के बल से जानी जाती हैं ,ना कि नेहरु की पुत्री के रूप में।


5. स्व विवेक का प्रयोग करने की प्रेरणा दी है।

6, हजारी प्रसाद द्विवेदी ने दी है और भूत-प्रेत जैसी भ्रांतियां  ना फैलाने के लिए कहा है कि भूत कुछ नहीं होते। लेखक का विचार है कि देवदारू मन की भ्रांति को दूर करने वाला वृक्ष है इसे देखकर मन में श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है वह भूत भगा वन है, वह विपत्ति मिटा वन है और भ्रांति नाशावन है ।
देवदारु देवता के दुलारे और महादेव के प्यारे वृक्ष है।

7. लेखक ने बताया है कि देवदारु का जैसे अपना अस्तित्व है उसी प्रकार हर एक व्यक्ति का अपना अलग अस्तित्व है उसमें अलग गुण हैं।

 स्व को पहचानने की बात कही है तथा अहम को ठुकराने की बात भी उन्होंने कही है।

देवदारू की भाषा शैली

भले ही दिवेदी जी संस्कृत भाषा के विद्वान थे परंतु वे हिंदी के भी अच्छे ज्ञाता थे।

 उन्होंने देवदारू में तत्सम प्रधान 
शब्दावली का प्रयोग किया है।
भाषा को सहज और सरल बना दिया है।
 इस निबंध में उन्होंने विचारात्मक ,आलोचनात्मक तथा भावात्मक तीनों का सुंदर प्रयोग किया है।

मुख्य बिंदु
हजारी प्रसाद द्विवेदी
कुटज निबंध
ललित निबंधकार
कालिदास और महाभारत से भी प्राचीन
तांडव नृत्य
ध्यान धारणा और समाधि
अचल ,स्थिर

मंगलवार, 12 मई 2020

राम लक्ष्मण परशुराम संवाद

राम लक्ष्मण परशुराम संवाद
तुलसीदास
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद नामक यह कविता तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य रामचरितमानस में संकलित है ।
सीता स्वयंवर के अवसर पर धनुष भंग होने के कारण क्रोधित परशुराम और राम लक्ष्मण के बीच हुए संवाद ओं का वर्णन है ।
शिवजी का धनुष मिलता है तो वे क्रोध से भर उठते हैं और स्वयंवर स्थल पर पहुंचकर धनुष भंग करने वाले वाले को ललकार ने लगती हैं।
 परशुराम का क्रोध शांत करने के उद्दश्य से राम ने उनसे कहा कि शिवजी का धनुष तोड़ने वाला आपका ही कोई सेवक होगा यह सुनकर परशुराम ने कहा कि सेवक वह होता है जो सेवा कार्य करें शिव धनुष तोड़ने वाले ने तो दुश्मन का कार्य किया है।
 जिसने भी इस धनुष को तोड़ा है वह इस सभा से अलग हो जाए नहीं तो सभी राजा मारे जाएंगे परशुराम का यह बड़बोला पर सुन लक्ष्मण निभाएंगे ।
पूर्ण ढंग से कहा बचपन में मैंने बहुत सारी दुनिया थोड़ी हैं तब तो किसी ने किया यह धनुष तो बहुत पुराना है यह तो छूते ही टूट गया इसमें तो श्रीराम का कोई दोष नहीं।

 यह सुनकर परशुराम का क्रोध और बालक समझकर मैं तेरा नहीं कर रहा हूं तू मुझे समझ रहा है मैं धरती पर आने वाला बाल ब्रह्मचारी और है इससे निराश किया है सहस्त्रबाहु की काट डाला है ।
अब तू यह सुन लक्ष्मण ने परशुराम को अपमानित करते हुए कहा आप मुझे कमजोर समझने की भूल ना करें हाथ नहीं उठा पा रहा हूं।वैसे भी हमारे कुल में देवता ईश्वर भक्त ब्राह्मण और गाय पर वीरता नहीं दिखाई जाती ।
स्वयं को अपमानित होता देखकर परशुराम ने विश्वामित्र से कहा मंदबुद्धि और सूर्य वंश कलंकी है बालक वध करने योग्य है यह देखकर विश्वामित्र ने उससे कहा ऋषि-मुनियों बच्चों के दोषों को की गणना नहीं करते हैं ।
यह सुनकर परशुराम ने कहा इस बालक को मैं केवल आपके सील के कारण छोड़ दे रहा हूं अन्यथा इस का वध कर मैं गुरु रण से मुक्त हो जाता लक्ष्मण भी कहां चुप रहने वाला था ।
उन्होंने परशुराम से कहा माता-पिता कारण आपने अच्छी तरह से चुका दिया गुरु ऋण से जिसके लिए आप बहुत चिंतित हैं इतने समय में तो ब्याज भी बहुत बढ़ गया हुआ आप गणना करने वाले वालों को बुला लीजिए ।
मै थैली खोलकर सारा ऋण चुका देता हूं।
 ऐसे कटु वचन सुनकर परशुराम ने लक्ष्मण को मारने के लिए अपना फर्ज था लिया जिससे सभा में हाहाकार मच गई ।
यह देखकर श्रीराम ने क्रोध की प्रज्वलित अग्नि शांत करने के लिए शीतल जल के समान शांत करने वाले वचन कहे जिससे परशुराम का क्रोध शांत हो गया।राम लक्ष्ममण परशुराम संवाद से संबंधित प्रश्नोत्तरी

सोमवार, 11 मई 2020

बालमुकुंद गुप्त का साहित्यिक परिचय

बालमुकुंद गुप्त का जीवन परिचय
बालमुकुंद गुप्त का साहित्यिक परिचय
बालमुकुंद गुप्त के निबंध साहित्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
जीवन परिचय- बालमुकुंद गुप्त द्विवेदी युगीन साहित्यकारों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ।
वे भारतेंदु युग और दिवेदी युग को जोड़ने वाली कड़ी थे।
 वे अच्छे कवि, अनुवादक ,निबंधकार और कुशल संपादक थे ।
उनका जन्म 14 नवंबर 1865 में हरियाणा राज्य के रेवाड़ी जिले के गुड़ियानी गांव में लाला पूर्णमल के यहां हुआ ‌।
शिक्षा- गुप्त जी की आरंभिक शिक्षा गांव से आरंभ हुुई।

**छात्रावास में वे बड़े ही अध्ययन शील एवं सहनशीलता रहे। परंतु दादाजी तथा पिताजी के देहांत के बाद उनको अपनी शिक्षा अधूरी छोड़नी पड़ी ।
बाद में जब अध्ययन आरंभ किया तो 21 वर्ष की आयु में मिडिल परीक्षा पास कर सकें ।

गुप्तजी ने उर्दू भाषा और पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लिया।

कार्यक्षेत्र -गुप्तजी ने अखबार चुनार उर्दू अखबार के संपादक नियुक्त हो गए ।
साथ-साथ वे कोहिनूर तथा जमाना जैसे अखबारों के संपादकीय विभाग से जुड़े रहे ।
इसके बाद उनका रुझान हिंदी भाषा की ओर हुआ भारत प्रताप पत्र के साथ जुड़ने के बाद उनके हिंदी लेखन में काफी सुधार हुआ कालांतर में वे हिंदुस्तान ,हिंद बंगवासी व भारत मित्र के संपादक भी रहे।

मृत्यु -गुप्त जी की मृत्यु 18 सितंबर 1907
में 42 वर्ष की अल्पायु में ही हो गई लेकिन उनका नाम हिंदी साहित्य में हमेशा बना रहेगा।

प्रमुख रचनाएं -श्री बालमुकुंद गुप्त के जैस सिंधु -संधि बिंदु पर खड़े थे ।वहां इन्हें भारत का अतीत और वर्तमान परिदृश्य के समान साफ साफ दिखाई देता था और भारत का भविष्य अपने निर्णय की प्रतीक्षा में था इसलिए उनके विपुल साहित्य में भारत के स्वर्णिम भविष्य और संभावनाओं का ध्वनि -संकेत, शब्द शब्द में मुखरित हुआ हैै

*** शिव शंभू के चिट्ठे तथा चित्र सर्वाधिक लोकप्रिय व्यंग्यात्मक ,सामाजिक और राजनीतिक निबंधों के संग्रह हैं ।
सन उन्नीस सौ पांच में बालमुकुंद गुप्त निबंधावली शीर्षक से उनके निबंधों का संग्रह भी प्रकाशित हुआ इसमें 50 निबंध संकलित है निबंधों के साथ उनके कुछ काव्य संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं।
साहित्यिक विशेषताएं -श्री बालमुकुंद गुप्त मूल्य संपादक से धार्मिक प्रवृत्ति के थे।
 विदेश की पराधीनता के प्रति सदैव चिंतित रहते थे।
 उन्होंने अपने साहित्यिक निबंध ,संपादकीय लेखों और काव्या के विरुद्ध आवाज उठाई।

उनके निबंधों में कुछ विशेषताएं महत्वपूर्ण थी जो विशेषताएं निम्नलिखित हैं।
राष्ट्रीय भावना -श्री बालमुकुंद गुप्त ने अल्प मात्रा में ही काव्य की रचना की है लेकिन उनका समूचा काव्य राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत है गुप्तजी भारत की पराधीनता को लेकर बहुत ही व्याकुल रहते थे ।
डॉ नगेंद्र ने उनके साहित्य के बारे में स्पष्ट लिखा है राष्ट्रीयता और हिंदी प्रेम उनके साहित्य का मुख्य विषय है ।
यदि गहराई से उनके साहित्य का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि राष्ट्रीयता उनके साहित्य का मुख्य स्वर है।
गांधीवादी विचारधारा -गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है ।
यद्यपि सिद्धांतों में विश्वास रखते हैं। फिर भी कहीं कहींींींींींींींीं उनके तेवर बड़े तेज तर्रार प्रतीत बड़े़ आशीर्वाद उन्होंने कहा है कि हमें विदेशी माल को नकार कर चरखा कातना चाहिए और लघु तथा कुटीर उद्योगोंं को प्रधानता देनी चाहिए ।
**लोक जागरण -द्विवेदी युगीन कभी होने के कारण  गुप्त जी के साहित्य मैं लोक जागरण का स्वर सुनाई देता है। उन्होंने देश की प्रथम तथा सामाजिक कुरीतियों था 
धर्मिक आडंबर ओं ‌‌का भी चित्रण किया है ।
गुप्तजी ने विदेशी वस्तुओं के त्याग और स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर भी बल दिया है भले ही वे धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत थे लेकिन समाज सुधार की भावना भी उनमें प्रबल थी ।
उन्होंने अपने विभिन्न लेखों तथा कविताओं द्वारा इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए हैं ।
व्यंग्य का प्रबल प्रयोग -गुप्तकालीन परिस्थितियां भारतेंदु युग इन परिस्थितियों से भी नहीं थी ।
वह लगभग भारतेंदु के समकालीन थे। वैसे तो उनको शिव शंभू के चिट्ठे से साहित्य ख्याति प्राप्त हुई ।लेकिन उनके व्यंग्य -लेख काफी तीखा और तेल मिला देने वाला है ।उन्होंने के गवर्नर भजन के माध्यम से अंग्रेजी साम्राज्य पर करारा व्यंग्य किए हैं।
 उस समय के हालात को देखते हुए यह कार्य सहज नहीं था।

 अनुवाद कार्य गुप्तजी ने अपने समय मेंेंेंें दूसरी भाषाओं के उत्तम कोटि के साहित्य को हिंदी में अनुवाद करने का कार्य किया ताकि हिंदी का प्रचार-प्रसार हो सके।

** श्री बालमुकुंद गुप्त एक अच्छे अनुवादक थे।
 उन्होंने संस्कृत के रत्नावली नाटक और बांग्ला की बड़ेल भगिनी का सुंदर अनुवाद किया ।
इस प्रकार उन्हें उच्च स्तरीय रचनाओं का अनुवाद करके हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में अपना भरपूर योगदान दिया है।


 समाज सुधार की भावना श्री बालमुकुंद गुप्त के साहित्य में समाज सुधार की भावना भी यथोचित स्थान मिला हैै
। उन्होंने अपने युग के समाज को जीवन को अत्यंत समीप देखा था। उसमें जो कमजोरियां ,अवगुण ,कुरीतियां स्वार्थी पन आदि व्याप्त्त्त्त था ।
उनको सावधान रहने की प्रेरणा दी ।
उन्होंने नारी सुधार पर भी खूब कार्य किया।
 उन्होंनेेे सामाजिक कुरीतियोंोंोंोंंो।
करारा व्यंग्य कसे ।
भाषा शैली
श्री बालमुकुंद गुप्त ने अपने साहित्य में सहज, सरल सामान्य बोलचाल की खड़ी बोली का प्रयोग किया।
 उनकी भाषा पर कुछ-कुछ ब्रज भाषा का भी प्रयोग है।
 इसका कारण है यह है कि भारतेंदु युग और दिवेदी युग को मिलाने वाली कड़ी के रूप में देखा जाता है।
फिर भी खड़ी बोली का सरल और सहज प्रयोग दिखाई पड़ता है ।
उनकी भाषा में उर्दू अंग्रेजी तद्भव शब्दों का अधिकाधिक मिश्रण भी दिखाई देता है।
 उनको अलंकारों से अधिक नहीं था ।
सफल निबंधकार और संपादक थे व्यंग्यात्मक शैली के लिए वे अपने समय में प्रख्यात साहित्यकार थे 
फिर भी उनका शब्द चयन सर्वथा उचित और भाव अभिव्यक्ति में समर्थ है एवं दो के समान कविता भी उनकी भाषा शैली की एक और विशेषता है।
शिव शंभू के चिट्ठे
शिव शंभू के चिट्ठे गुप्त जी का सुप्रसिद्ध निबंध संग्रह है इसमें कुल 11 निबंध संकलित है ।
इन सब में लार्ड कर्जन का जीवन तथा उनकी भारत के प्रति नकारात्मक सोच का उल्लेख है निबंध ओं का वर्णन इस प्रकार से है।
1. बनाम लार्ड कर्जन
2. श्रीमान का स्वागत
3. वेश राय का कर्तव्य
4. पीछे मत फैंकिए
5. आशा का अंत
6. एक दुर्दशा
7. विदाई संभाषण
8. बंग विच्छेद
9. आशीर्वाद 
10.लार्ड मिंटो का स्वागत
 11.माली साहब के नाम
निष्कर्ष
गुप्त जी के निबंधों में निबंधकार की संवेदनशीलता मनुष्य मात्र के प्रति उसकी आत्मीयता सहानुभूति और राष्ट्र के प्रति प्रेम भावना का कहीं लोग नहीं होता ।
उनके द्वारा की गई निबंध कला को आगे चला कर खूब विकास हुआ ।
गुप्तजी के निबंध निबंध साहित्य की नमक का काम किया है। इसलिए निबंध साहित्य के विकास में बालमुकुंद गुप्त का श्रेष्ठ स्थान है ।निबंध कला के विकास के योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।


शुक्रवार, 8 मई 2020

रसखान से संबंधित प्रश्नों के उत्तर

रसखान से संबंधित प्रश्नों के उत्तर
रसखान का जन्म 1548 में हुआ माना जाता है।
 उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था।
 दिल्ली के आसपास के रहने वाले थे।
 कृष्ण भगत ने उन्हें ऐसा मुक्त कर दिया की गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा ली और ब्रजभूमि में जब से सन1628 के लगभग उनकी मृत्यु हुई।

 सुजान रसखान और प्रेम वाटिका इनकी उपलब्ध कृतियां हैं ।
रसखान रत्नावली के नाम से इनकी रचनाओं का संग्रह मिलता है ।
प्रमुख कृष्ण भगत कवि रसखान की वृत्ति ने केवल कृष्ण के प्रति यह प्रकट हुई है।
 बल्कि कृष्ण भूमि के प्रति भी उनका आनंद न अनुराग व्यक्त हुआ है।
काव्य में कृष्ण के रूप माधुरी।
 ब्रज महिमा 
राधा कृष्ण की प्रेम लीला ओं का मनोहर वर्णन मिलता है।

 वे अपनी प्रेम की तन में था भव्य लता और आसक्ति के उल्लास के लिए जितने प्रसिद्ध हैं उतने ही अपनी भाषा की मार्मिक ता शब्द चयन शैली के लिए उनके यहां ब्रजभाषा का अत्यंत मनोरम और सरल व साहस प्रयोग मिलता है जिस में जरा भी शब्द आडंबर नहीं है।
सवैये

मानुष हौं तो वही रसखान बसों बृज गोकुल गांव के गवारन
जोै पशु होैं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मंझारन।।
पाहन तो वही गिरि को जो क्यों हरि छत्र पुरंदर धारन
जोैं खग हौं तो बसेरो करौं मिली कालिंदी कूल कदंब की डारन

प्रथम सवैये के माध्यम से कवि रसखान बताना चाहते हैं कि अगर मेरा जन्म मनुष्य के रूप में हो तो गोकुल के गांव के वालों के बीच में हो अगर जय श्री कृष्ण आप मुझे पशु के रूप में जन्म देना चाहते हैं तो मैं नंदबाबा की गायों के बीच में गाय बनकर चलूं श्री कृष्ण अगर मेरा जन्म पत्थर के रूप में हो तो मैं उसे गिरी का पत्थर बनो जो श्री कृष्ण ने अपनी उंगली पर उठाई थी अर्थात गोवर्धन पर्वत का ही पत्थर बनो इसमें रसखान की अनन्य भक्ति झलकती है उन्होंने कहा है कि अगर मेरा जन्म रूप में हो तो मेरा बसेरा हमेशा कालिंदी यानी यमुना पुल पर ही हो यहां संकलित पहले समय में कृष्ण और कृष्ण भूमि के प्रति कवि का अनन्य समर्पण भाव व्यक्त हुआ है।
रसखान से संबंधित प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न रसखान की रचना के तथा उनकी एक एक प्रसिद्ध कविता का नाम लिखिए।
उत्तर रसखान की रचना सुजान ,रसखान, प्रेम वाटिका

प्रश्न नंबर दो- रसखान के आराध्य कौन हैं?
उत्तर- रसखान के आराध्य भगवान श्री कृष्ण हैं।

प्रश्न3.निम्न में से कौन रीतिकालीन कवि नहीं है
1 धनानंद
2 देव
3 मतिराम
4 रसखान

उत्तर-इनमें से रसखान जी रीतिकालीन कवि नहीं है इन्हें भक्तिकालीन कवि कहा जाता है भक्ति काल में भी कृष्ण कवि मुसलमान होते हुए भी इन्होंने हिंदी में कृष्ण काव्य धारा कृष्ण प्रेम को अपनाया।

प्रश्न -रसखान को रस की खान क्यों कहा जाता है?
रसखान की भक्ति श्री कृष्ण के प्रति अनन्य है उनकी भक्ति से जो भावपूर्ण रचनाएं निकली हैं उसमें एक अद्भुत रस उत्पन्न होता है इसीलिए उनको रस की खान यानी रसखान कहा जाता है।

प्रश्न -राजस्थानी ने अपनी किस रचना में स्वयं को शाही खानदान का कहा है?
उत्तर -रसखान ने अपनी रचना सुजान में अपने आपको शाही खानदान का कहा है।

प्रश्न- रसखान प्रत्येक रूप में ब्रज में ही क्यों रहना चाहते हैं?
रसखान जी श्री कृष्ण से अनन्य प्रेम करते हैं उनकी प्रेम में तन्मयता भाव भी हल्का और आसक्ति का उल्लास है ।

इसीलिए वे मनुष्य रूप में ब्रज के ग्वाले पशु रूप में नंद बाबा के गाने पानी पत्थर के रूप में वह गोवर्धन पर्वत का पत्थर तथा खा के रूप में वे यमुना के किनारे कालंदी कुंज की डाल पर रहना चाहते हैं क्योंकि वे हमेशा कृष्ण के के बाल लीलाओं का आनंद लेना चाहते हैं चक्र से संबंधित चीजों के साथ निवास करके अपने आपको उनकी भक्ति में लीन बनाना चाहते हैं।

प्रश्न*रसखान ने प्रेमानंद किसे कहा है?
उत्तर-सुजान को उन्होंने प्रेमी तथा कृष्ण भक्ति को भी अपने प्रेम अयनी कहा है।
रसखान जी की उपलब्धियां कौन-कौन सी हैं?
उत्तर रसखान
सुजान
प्रेम वाटिका
रसखान रचनावली
इनकी प्रमुख रचनाएं हैं।
इसके अलावा इनके काव्य में कृष्ण की रूप माधुरी ब्रिज महिमा राधा कृष्ण की प्रेम लीला ओं का मनोहर वर्णन मिलता है।
इनकी भाषा शैली
भाषा की आसक्ति मैं मार्मिक था शब्द चयन व्यंजक सैलरी बहुत महत्वपूर्ण है ब्रजभाषा का अत्यंत सरल सहज और मनोरम प्रयोग किया है आडंबर से यह बिल्कुल दूर रहे हैं इनकी रचनाओं में रस की अजीब धारा, अद्भुत धारा है।

स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र देने के लिए स्कूल के प्रिंसिपल को प्रार्थना पत्र लिखिए

स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र देने के लिए स्कूल के प्रिंसिपल को प्रार्थना पत्र लिखिए।
school leaving certificate
S .L.C certificate
SLC लेने हेतु स्कूल के प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए।
सेवा में
प्रधानाचार्य जी
---------------विद्यालय
---------_--------नगर
विषय-स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र लेने हेतु प्रार्थना पत्र
श्रीमान जी
सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके स्कूल में-------कक्षा का छात्र हूं। पिछले सप्ताह मेरे पिताजी का स्थानांतरण ---------से -----------हो गया है हमारा पूरा परिवार यहां से जा रहा है तथा मुझे भी उन्हीं के साथ है जाना पड़ेगा यहां मेरे रहने का कोई अन्य विकल्प नहीं है इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि आप मुझे विद्यालय छोड़ने का प्रमाण पत्र देने की कृपा करें ताकि मैं सही समय पर दूसरे विद्यालय में प्रवेश ले सकूं आपकी इस कृपा के मैं आपका सदा आभारी रहूंगा।
धन्यवाद
आपका आज्ञाकारी शिष्य
नाम-----------------
कक्षा---------------
अनुक्रमांक--------------
दिनांक---------

बुधवार, 6 मई 2020

नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए 25 मंत्र एग्जाम वॉरियर्स पुस्तक में से

माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए 25 मंत्र एग्जाम वॉरियर्स पुस्तक में से
मंत्र नंबर एक परीक्षा एक उत्सव है उमंग और उल्लास से मनाए
मंत्र नंबर दो
परीक्षा आपकी अभी की तैयारी की है पूरे जीवन की नहीं मस्त रहें।
मंत्र नंबर 3
हंसते हुए जाइए मुस्कुराते हुए आइए।
मंत्र नंबर 4 
Warrior बनें, worrier नहीं।
मंत्र नंबर 5 
ज्ञान स्थाई है इसे ही लक्ष्य बनाइए।
मंत्र नंबर 6
प्रतिस्पर्धा नहीं अनु स्पर्धा
मंत्र नंबर 7 
समय आपका है सदुपयोग कीजिए।
मंत्र नंबर 8
वर्तमान ईश्वर का सर्वोत्तम उपहार है वर्तमान में जीये।
मंत्र नंबर 9
टेक्नोलॉजी से पढ़ाई रोचक और सरल इसे आजमाएं।
मंत्र नंबर 10
करना है बेहतर काम
 तो करे पर्याप्त आराम
मंत्र नंबर 11
अच्छी नींद सफलता का मंत्र।
मंत्र नंबर 12
जो खेले वह खिले।
मंत्र नंबर -13
स्वयं को जाने अपनी क्षमताओं पर गर्व कीजिए।
मंत्र नंबर 14
अभ्यास से बढ़ेगा आत्मविश्वास।
मंत्र नंबर 15
बातें छोटी असर बड़े परीक्षा के अनुशासन का पालन कीजिए।
मंत्र नंबर 16
आपकी परीक्षा आप के तरीके अपनी शैली अपनाएं।
मंत्र नंबर 17
प्रस्तुतीकरण महत्वपूर्ण है पारंगत बनिए।
मंत्र नंबर 18
अकल को हां नकल को ना।
मंत्र नंबर 19
उत्तर पुस्तिका आगे बढ़ चुकी है आप भी आगे बढ़े।
मंत्र नंबर 20
जीवन को जाने स्वयं को पहचाने।
मंत्र नंबर 21
अतुल भारत घूमिए है और जानिए।
मंत्र नंबर 22
एक यात्रा समाप्त दूसरी शुरू।
मंत्र नंबर 23
कुछ बनने के नहीं कुछ करने के सपने देखिए।
मंत्र नंबर 24
वह हैं इसलिए आप हैं कृतज्ञ रहें।
मंत्र नंबर 25 
योग तंदुरुस्त शरीर और तेज दिमाग की चाबी 
इसे अपनाए।

फीचर लेखन

फीचर

फीचर को अंग्रेजी शब्द फीचर के पर्याय के तौर पर फीचर कहा जाता है। हिन्दी में फीचर के लिये रुपक शब्द का प्रयोग किया जाता है लेकिन फीचर के लिये हिन्दी में प्रायः फीचर शब्द का ही प्रयोग होता है। फीचर का सामान्य अर्थ होता है – किसी प्रकरण संबंधी विषय पर प्रकाशित आलेख है। लेकिन यह लेख संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले विवेचनात्मक लेखों की तरह समीक्षात्मक लेख नही होता है।

फीचर समाचारों के प्रस्तुतिकरण की ही एक विधा है लेकिन समाचार की तुलना में फीचर में गहन अध्ययन, चित्रों, शोध और साक्षात्कार आदिके जरिए विषय की व्याख्या होती है। उसका विस्तृत प्रस्तुतिकरण होता है और यह सब कुछ इतने सहज और रोचक ढंग से होता है कि पाठक उसके बहाव में बंधता चला जाता है। पत्रकारिता और साहित्य के विद्वानों ने रूपक की अलग-अलग परिभाषाएं गढ़ी हैं। एक परिभाषा के अनुसार,

‘‘रोचक विषय का मनोरम और विशद प्रस्तुतिकरण ही फीचर है। इसमें दैनिक समाचार, सामयिक विषय और बहुसंख्यक पाठकों की रूचि वाले विषय की चर्चा होती है। इसका लक्ष्य मनोरंजन करना, सूचना देना और जानकारी को जन उपयोगी ढंग से प्रस्तुत करना है।’’

सामान्य शब्दों में कहें तो समाचार का काम तत्थ्य और विचार देकर खत्म हो जाता है। जबकि फीचर का काम इससे आगे का होता है। यह समाचार की पृष्ठभूमि का खुलासा करते हैं, विषय या घटना के जन्म और विकास का विवरण देते हैं। यह विषय अथवा घटना का पूरा खुलासा भी करते हैं और पाठक को कुछ सोचने के लिए भी विवश करते हैं। एक अच्छे फीचर की सार्थकता इसी बात में है कि वह अपने पाठकों के मन मष्तिष्क पर कितना प्रभाव डालती है। फीचर लेखक घटना या विषय के बारे में अपनी प्रतिक्रिया या विचार भी पाठक को बतलाता है और इस तरह पाठक की कल्पना शक्ति को और उसकी वैचारिक मनःस्थिति को भी प्रभावित करता है।

फीचर का महत्व इसी बात में है कि यह कब, क्यों, कैसे, कहां और कौन को स्पष्ट करने वाले समाचार यानी न्यूज से आगे जाकर तत्थ्य कल्पना और विचार की संतुलित प्रस्तुति के जरिए अपना एक विशेष प्रभाव छोड़ता है। फीचर का एक महत्व यह भी है कि यह पाठक के मन में किसी खबर को पढ़ने के बाद पैदा हुई जिज्ञासा को भी संतुष्ट करता है। आजकल समाचार पत्रों में फीचरों का उपयोग दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। यूरोप में जारी जबर्दस्त सरदी और हिमपात पर भारतीय भाषाई अखबारों में विस्तृत समाचारों के लिए स्थानाभाव हो सकता है। लेकिन इसी विषय को महज एक छोटी सी जगह में एक सचित्र फीचर के जरिए प्रस्तुत कर अखबार अपने स्थानाभाव की समस्या से भी उबर सकते हैं और पाठक को बर्फ से जमे यूरोप के बारे में सम्पूर्ण जानकारी भी मिल जाती है। इसी तरह किसी स्थानीय दुर्घटना के समाचार के साथ-साथ अगर उस तरहकी अन्य घटनाओं का विवरण, रोकथाम के उपायों, प्रभावितों के अनुभव आदि एक सचित्र फीचर के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाता है तो इससे पाठक को सम्पूर्ण जानकारी एक साथ मिल जाती है। फीचर के इस उपयोग ने आज फीचर के महत्वको अत्यधिक बढ़ा दिया है।

इस बढ़ते महत्व के कारण फीचर लेखन भी अब पत्रकारिता की एक महत्वपूर्ण विधा हो गई है। इसी के साथ फीचर लेखकों का महत्व भी बढ़ता जा रहा है। आज समाचार पत्रों में फीचर डेस्क का महत्व भी बढ़ गया है और उनकी उपयोगिता भी। समाचार पत्रों में अब फीचर के कारण बेहतर प्रस्तुतिकरण और तात्कालिकता पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है। कई बड़े अखबार समूहों में अब केन्द्रीयकृत फीचर लेखन व्यवस्था भी शुरू हो गई है जिसके तहत महत्वपूर्ण विषयों पर फीचर तैयार कर अखबार के सभी संस्करणों के लिए भेज दिए जाते हैं। इंटरनेट और सूचना तकनीक के चमत्कारों ने आज फीचर लेखन को आसान बना दिया है। लेकिन इन्हीं चमत्कारों के कारण आज फीचर लेखन के क्षेत्र में नई चुनौतियाँ भी खड़ी हो गई है। आज फीचर लेखक को इस चीज पर सर्वाधिक ध्यान देना पड़ता है कि उसके फीचर में सारे तत्थ्य एकदम सही हों, ताजे हों, समीचीन हों और वे पाठक की सारी जिज्ञासाओं का समाधान भी कर सकें।
फीचर समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाली किसी विशेष घटना, व्यक्ति, जीव – जन्तु, तीज – त्योहार, दिन, स्थान, प्रकृति – परिवेश से संबंधित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित वह विशिष्ट आलेख होता है जो कल्पनाशीलता और सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है। अर्थात फीचर किसी रो रह जाविषय पर मनोरंजक ढंग से लिखा गया विशिष्ट आलेख होता है।

फीचर के प्रकार

·          व्यक्तिपरक फीचर

·          सूचनात्मक फीचर

·          विवरणात्मक फीचर

·          विश्लेषणात्मक फीचर

·          साक्षात्कार फीचर

·          इनडेप्थ फीचर

·          विज्ञापन फीचर

·          अन्य फीचर

फीचर की विशेषतायें

1 सत्यता-
किसी घटना की सत्यता या तथ्यता फीचर का मुख्य तत्व होता है। एक अच्छे फीचर को किसी सत्यता या तथ्यता पर आधारित होना चाहिये।

2 निष्पक्षता- 

3 फीचर का विषय समसामयिक होना चाहिये।

4 रोचकता
फीचर का विषय रोचक होना चाहिये या फीचर को किसी घटना के दिलचस्प पहलुओं पर आधारित होना चाहिये।

5 मनोरंजक-
फीचर को शुरु से लेकर अंत तक मनोरंजक शैली में लिखा जाना चाहिये।

6 ज्ञानवर्धक-        
फीचर को ज्ञानवर्धक, उत्तेजक और परिवर्तनसूचक होना चाहिये।

 7 फीचर को किसी विषय से संबंधित लेखक की निजी अनुभवों की अभिव्यक्ति होनी चाहिये।

8 फीचर लेखक किसी घटना की सत्यता या तथ्यता को अपनी कल्पना का पुट देकर फीचर में तब्दील करता है।

9. फीचर को सीधा सपाट न होकर चित्रात्मक होना चाहिये।

10. फीचर कीभाषा सरल, सहज और स्पष्ट होने के साथ – साथ कलात्मक और बिंबात्मक होनी चाहिये।

फीचर लेखन की प्रक्रिया

·         विषय का चयन

·         सामग्री का संकलन

·         फीचर योजना

विषय का चयन

किसी भी फीचर की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितना रोचक, ज्ञानवर्धक और उत्प्रेरित करने वाला है। इसलिये फीचर का विषय समयानुकूल, प्रासंगिक और समसामयिक होना चाहिये। अर्थात फीचर का विषय ऐसा होना चाहिये जो लोक रुचि का हो, लोक – मानव को छुए, पाठकों में जिज्ञासा जगाये और कोई नई जानकारी दे।

सामग्री का संकलन

फीचर का विषय तय करने के बाद दूसरा महत्वपूर्ण चरण है विषय संबंधी सामग्री का संकलन। उचित जानकारी और अनुभव के अभाव में किसी विषय पर लिखा गया फीचर उबाऊ हो सकता है। विषय से संबंधित उपलब्ध पुस्तकों, पत्र – पत्रिकाओं से सामग्री जुटाने के अलावा फीचर लेखक को बहुत सामग्री लोगों से मिलकर, कई स्थानों में जाकर जुटानी पड़ सकती है।

फीचर योजना

फीचर से संबंधित पर्याप्त जानकारी जुटा लेने के बाद फीचर लेखक को फीचर लिखने से पहले फीचर का एक योजनाबद्ध खाका बनाना चाहिये।

फीचर लेखन की संरचना

·         विषय प्रतिपादन या भूमिका

·         विषय वस्तु की व्याख्या

·         निष्कर्ष

विषय प्रतिपादन या भूमिका

फीचर लेखन की संरचना के इस भाग में फीचर के मुख्य भाग में व्याख्यायित करने वाले विषय का संक्षिप्त परिचय या सार दिया जाता है। इस संक्षिप्त परिचय या सार की कई प्रकार से शुरुआत की जा सकती है। किसी प्रसिद्ध कहावत या उक्ति के साथ, विषय के केन्द्रीय पहलू का चित्रात्मक वर्णन करके, घटना की नाटकीय प्रस्तुति करके, विषय से संबंधित कुछ रोचक सवाल पूछकर।  मिका का आरेभ किसी भी प्रकार से किया जाये इसकी शैली रोचक होनी चाहिये मुख्य विष्य का परिचय इस तरह देना चाहिये कि वह पूर्ण भी लगे लेकिन उसमें ऐसा कुछ छूट जाये जिसे जानने के लिये पाठक पूरा फीचर पढ़ने को बाध्य हो जाये।

विषय वस्तु की व्याख्या

फीचर की भूमिका के बाद फीचर के विषय या मूल संवेदना की व्याख्या की जाती है। इस चरण में फीचर के मुख्य विषय के सभी पहलुओं को अलग – अलग व्याख्यायित किया जाना चाहिये। लेकिन सभी पहलुओं की प्रस्तुति में एक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष क्रमबद्धता होनी चाहिये। फीचर को दिलचस्प बनाने के लिये फीचर में मार्मिकता, कलात्मकता, जिज्ञासा, विश्वसनीयता, उत्तेजना, नाटकीयता आदि का समावेश करना चाहिये।

फीचर संरचना से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलू

शीर्षक

किसी रचना का यह एक जरुरी हिस्सा होता है और यह उसकी मूल संवेदना या उसके मूल विषय का बोध कराता है। फीचर का शीर्षक मनोरंजक और कलात्मक होना चाहिये जिससे वह पाठकों में रोचकता उत्पन्न कर सके।

छायाचित्र

छायाचित्र होने से फीचर की प्रस्तुति कलात्मक हो जाती है जिसका पाठक पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। विषय से संबंधित छायाचित्र देने से विषय और भी मुखर हो उठता है। साथ ही छायाचित्र ऐसा होना चाहिये जो फीचर के विषय को मुखरित करे फीचर को कलात्मक और रोचक बनाये तथा पाठक के भीतर विषय की प्रस्तुति के प्रति विश्वसनीयता बनाये।

निष्कर्ष

फीचर संरचना के इस चरण में व्याख्यायित मुख्य विषय की समीक्षा की जाती है। इस भाग में फीचर लेखक अपने ऴिषय को संक्षिप्त रुप में प्रस्तुत कर पाठकों की समस्त जिज्ञासाओं को समाप्त करते हुये फीचर को समाप्त करता है। साथ ही वह कुछ सवालों को पाठकों के लिये अनुत्तरित भी छोड़ सकता है। और कुछ नये विचार सूत्र पाठकों से सामने रख सकता है जिससे पाठक उन पर विचार करने को बाध्य हो सके।