भूमिका -हरियाणा के सागिया में बाजे भगत का विशेष स्थान है। यह आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे ।उनका असली नाम बाजे राम था परंतु यह लोगों के बीच सांग बहुत मधुर स्वर में मस्त होकर तथा भगत की भांति गाते थे ।इसलिए इनका नाम बाजे भगत पड़ गया जन्मस्थान - इनका जन्म संवत् 1855 में सोनीपत के सिसाना गांव में हुआ यानी 16 जुलाई 1898,
मृत्यु -26 फरवरी 1936 में हुई।
गुरु -इनके गुरु प्रसिद्ध सांगी हरदेवा सिंह थे
रचनाएं- इनका रचनाकाल 1920 का दशक से ज्यादा रहा है 15 से 20 रचनाएं इनकी मिलती हैं ।इतने कम समय में असाधारण प्रसिदी मिली ।इन की प्रसिद्ध रचनाएं इस प्रकार है ।
1.हीर रांझा
2. नल दमयंती
3.शकुंतला दुष्यंत
4.महाभारत आदि पर्व
5.कृष्ण जन्म
6.पद भक्ति
7राजा रघुवीर -धर्मपुर आदि इनके प्रसिद्ध सांग हैं
कुछ प्रसिद्ध पंक्तियां- मैं निर्धन कंगाल आदमी तू राजा की जाई
2.करके सगाई भूल गए हुई बड़े दिना की बात राजबाला का ब्याह कर दो बड़ी खुशी के साथ
किस्सा राजबाला -अजीत सिंह
सांग -नल दमयंती से विपदा में विपदा पड़ेगी एवं कि घुट पिए तो
निष्कर्ष -हरियाणवी साहित्यकार, कवि सांग कलाकार माने जाते हैं ।बाजे भगत जी के रंगों में वे स्त्रियों की भूमिका स्वयं करने वाले हैं ।हरियाणा जगत में धूम मचाने वाले सांगी ।तत्कालीन समाज तथा उनकी परंपराओं का भी हमें परिचय इनकी रचनाओं में मिलता है डॉक्टर पूर्णचंद्र टंडन के अनुसार इनके सांग में श्रृंगार की गहरी चाल थी। येउस बिन की भांति थे जिस पर सपेरे की तरह आम जनमानस नाचता था।
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