रचनाएं-
1. उपन्यास-बेतवा बहती रही, इदन्नमम, झूला नर ,अल्मा कबूतरी ,आंगन पाखी, विजन ,कहे ईश्वरी फाग और त्रिया हठ।
2 कहानी संग्रह-ललमनिया ,गोपा हंसती है ,10 प्रतिनिधि कहानियां ,पियरी का सपना,
3. आत्मकथा -कस्तूरी कुंडल बसे ,गुड़िया भीतर गुड़िया।
4.कथा रिपोर्ताज- फाइटर की डायरी।
5.स्त्री विमर्श- खुली खिड़कियां ,सुनो मालिक सुनो ,चर्चा हमार।
6.पहली फिल्म बसुमति की चिट्ठी
7.धारावाहिक- कस्तूरी कुंडल बसे
सम्मान एवं पुरस्कार
1.प्रेमचंद सम्मान 1994 ,बेतवा बहती रही 1995
2. साहित्यकार सम्मान 1998
3.सार्क लिटरेरी अवॉर्ड 2001
4.मंगला प्रसाद पारितोषिक 2006
5.सुधा साहित्य सम्मान 2009
साहित्यिक विशेषताएं-मैत्रेई पुष्पा का हिंदी लेखन प्रमुख रूप से स्त्री विमर्श लेखन है उन्होंने स्त्री विमर्श को एक नया आयाम प्रदान किया है उनकी स्त्री पात्र सिर्फ बंदिनी मुख छवि को तोड़कर विद्रोह का स्वर प्रदान करती हैं उनकी नायिकाओं का विद्रोह जयशंकर प्रसाद या जैनेंद्र की स्त्री पात्रों की तरह ना होकर भारतीय मूल्यों व परंपराओं की रक्षा के साथ-साथ हाथ में दमन व हाथ में खुलकर रहने वाली ना होकर के पुरुष के समक्ष प्रमाणित और खड़ी होती नजर आई हैं मैत्रिणी पुष्पा जी की कहानियों में समकालीन था दिखाई देती है वह नारी सशक्तिकरण की अवधारणा को साथ लेती हुई उनके शिक्षा और रोजगार को लेकर चिंतित दिखाई देती हैं।
भाषा शैली -पुष्पा जी की भाषा जनसाधारण की भाषा खड़ी बोली में है उनकी भाषा शैली में पात्रा अनुकूल प्रसंग अनुकूल व देश काल और वातावरण के अनुरूप है उनकी भाषा में अधिकांश अभिधा शब्द शक्ति व दश्य बिंबों का प्रयोग दिखाई देता है उनकी कहानी और उपन्यास में वर्णनात्मक ,संवाद ,भावात्मक विश्लेषणात्मक आदि शैलियां दिखाई देती हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें