5955758281021487 Hindi sahitya : हिंदी एकांकी का उद्भव व विकास

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

हिंदी एकांकी का उद्भव व विकास

हिंदी एकांकी का उद्भव और विकास -एकांकी आधुनिक हिंदी गद्य की एक स्वतंत्र विधा है।

एकांकी और नाटक में अंतर

** कुछ लोग एकांकी को नाटक का लघु रूप मानते हैं लेकिन यह उचित नहीं है क्योंकि नाटक और एकांकी दो अलग-अलग विधाओं,सिद्धांत रूप में जिस नाटक की कथावस्तु एक ही अंक में वर्णित होती है उसे एकांकी या एकांकी नाटक कहते हैं ।

**नाटक का यह रूप आजकल अत्यधिक लोकप्रिय हो चुका है और उसका स्वतंत्र अस्तित्व बन चुका है ।

एक विद्वान आलोचक के शब्दों में इसके विधायक तत्वों की रचना विधि की स्वतंत्र रूप से विवेचना की जाती है एकांकी के तत्व नाटक के सदृश होते हैं परंतु उनके विनियोग वृद्धि में पर्याप्त अंतर रहता है ।
इसमें विषय की एकता प्रभाव की एकता तथा वातावरण की एकता रहती है ।

**आधुनिक एकांकी का उद्भव प्राचीन भारत में नाट्य साहित्य में एकांकी नाटक भी मिल जाते हैं लेकिन आधुनिक नाटक एकांकी का स्वरूप संस्कृत की एकांकी ओं की अनुकरण पर आधारित नहीं है ।

**इस पर अंग्रेजी साहित्य की एकांकी का प्रभाव देखा जा सकता है अंग्रेजी एकांकी साहित्य का जन्म 10 वीं शताब्दी के लगभग हुआ अंग्रेजी प्राणी बांग्ला एकांकी को प्रभावित किया और बांग्ला के माध्यम से यह प्रभाव हिंदी साहित्य में पहुंचा ।

***आधुनिक हिंदी का प्रथम एकांकी जयशंकर प्रसाद एक घूंट प्रथम एकांकी मानी जाती है भारतेंदु हरिश्चंद्र ,बलकृष्ण भट्ट द्वारा रचित शिक्षा दान ,जैसा काम वैसा परिणाम 
**प्रताप नारायण मिश्र द्वारा रचित ज्वारी ख्वारी, 

**देवकीनंदन तिवारी द्वारा रचित 11 के तीन कल योगी जनेऊ ,राधाचरण गोस्वामी के द्वारा रचित तन मन धन गोसाई जीके अपूर्ण बूढ़े मुहासे आदि प्रसिद्ध एकांकी हैं ।
पाश्चात्य स्वरूप को अपनाकर एकांकी हिंदी साहित्य में 1930 से आई डॉ नगेंद्र ने स्वीकार किया है कि पश्चिमी ढंग से एकांकी का शुभारंभ डॉ रामकुमार वर्मा द्वारा रचित बादल की मृत्यु सन 1930 से हुआ है इसके बाद भुनेश्वर प्रसाद का कारवां 1935 सफल एकांकी संग्रह कहा जा सकता है हिंदी एकांकी का इतिहास लगभग 90 साल पुराना है।

*** हम इसको समझने के लिए तीन भागों में बांट सकते हैं ।
प्रथम चरण में एकांकी के उद्भव की चर्चा की जा रही है प्रथम चरण हिंदी एकांकी साहित्य को विकास उन मुक्ता पदान करने वाले एकांकी कारों में भुनेश्वर प्रसाद ,डॉ रामकुमार वर्मा ,गोविंद बल्लभ पंत ,सेठ गोविंद दास ,नरेश प्रसाद तिवारी ,पांडे बेचन शर्मा ,सतगुरु शरण अवस्थी आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं।

 **वार्ड नंबर 2 भुनेश्वर भुनेश्वर के कारवां एकांकी संग्रह में एकांकी हैं तथा इनका प्रतिपाद्य प्रेम है यह वर्णन 100 से प्रभावित दिखते हैं भुनेश्वर के अंखियों में बौद्धिकता की प्रधानता है कठपुतलियां आदि इनकी प्रतीकात्मक एकांकी भी है डॉ रामकुमार वर्मा ने लगभग 100 से अधिक लिखी ।

बादल की मृत्यु की पहली एकांकी है इनके प्रसिद्ध की प्रसिद्ध एकांकी संग्रह में पृथ्वीराज की आंखें सुमित्रा रेशमी टाई सप्त किरण विभूति दीप सा दीप दान रूप रंग इंद्रधनुष 2 तारीख का डॉक्टर वर्मा ने ऐतिहासिक सामाजिक पौराणिक रहस्य 4 वर्गों में विभाजित विषय लिखें
 द्वितीय चरण -
**उदय शंकर भट्ट हिंदी के एक अन्य उल्लेखनीय एकांकिका रहे हैं जिन्होंने हिंदी एक अंग की कला को काफी प्रसिद्धि दिलाई उनका प्रथम एकांकी संग्रह अभिनव एकांकी के नाम से सन 1940 में प्रकाशित हुआ इन्होंने पराए सामाजिक और पुरानी एकांकी लिखी कालिदास तथा आदम युग में पौराणिक एकांकी संकलित है श्री का हृदय तथा समस्या का अंत एकांकी संग्रह में सामाजिक एकांकी संकलित है ।

**सेठ गोविंद दास ने राजनीतिक ,ऐतिहासिक ,पौराणिक तथा सामाजिक एकांकी लिखी हैं स्पर्धा सप्त रश्मि ,पंचभूत ,अष्टदल आदि इनके प्रमुख कहानी संग्रह शराब और वर्क तथा अलबेला इनके प्रसिद्ध मनोरमा है ।सेठ गोविंद दास ने अपनी एकांकी संग्रह में सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं को उठाया है ।

उपेंद्र इस चरण के एक अन्य एकांकी कार है देवताओं की छाया में, चरवाहे, तूफान से पहले ,कैद और उड़ान इन की प्रसिद्ध एकांकी संग्रह हैं ।
हर्ष जी ने अपनी एकांकी में समाज के विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए पाखंड का सजीव चित्रण किया है ।
**हरि कृष्ण प्रेमी नेम मध्यकालीन भारतीय कथाकार को अपनाकर कुछ एकांकी लिखी हैं इनकी एक एकांकी का स्वर राष्ट्रीय एकता से परिपूर्ण है।
 तृतीय चरण 
**आधुनिक एकांकी कारों में विष्णु प्रभाकर का नाम महत्वपूर्ण है उन्होंने सामाजिक ,राजनीतिक ,हास्य-व्यग्य प्रधान मनोवैज्ञानिक सभी प्रकार की एकांकी लिखी। मां ,भाई ,रहमान का बेटा, नया कश्मीर ,मीना कहां है इत्यादि इनक प्रसिद्ध एकांकी हैं।

इस युग के एकांकी कारों में जगदीश चंद्र माथुर ,लक्ष्मीनारायण मिश्र ,वृंदावन लाल वर्मा तथा भगवतीचरण आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं माथुर जी एक प्रतिभा संपन्न एकांकी कार हैं वे एकांकी कला तथा रंगमंच के पूर्ण ज्ञाता थे।
 मोर का तारा
 रीड की हड्डी आदि की प्रसिद्ध एकांकी हैं। 

**लक्ष्मीनारायण मिश्र ने सेक्स समस्या तथा भारतीय संस्कृति के उज्जवल पक्षों में एकांकी लिखी ।

**भगवती चरण वर्मा ने अपनी एकांकी साहित्य में सामाजिक विसंगतियों और विकृतियों पर प्रभाव करते हुए दिखाई देते हैं परंतु लक्ष्मी नारायण लाल की एक आंसुओं में बुद्धि वाद तथा भारतीय संस्कृति का उन्मुक्त वर्णन है ।

**वृंदावनलाल वर्मा ने अपने एकांकी साहित्य में यथार्थ और आदर्श का समन्वय किया है ।
निष्कर्ष 
हिंदी साहित्य एकांकी को समृद्ध करने में असंख्य विद्वानों का सहयोग है इनमें से सद्गुरु शरण अवस्थी ,गोविंद बल्लभ पंत ,विनोद रस्तोगी ,भारत भूषण अग्रवाल, धर्मवीर भारती, नरेश मेहता ,चिरंजीत मोहन राकेश प्रभाकर, मच्वे ,देवराज ,दिनेश ,रेवती शरण शर्मा ज्ञानदेव अग्निहोत्री ,राजेश शर्मा आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं। इधर कुछ काव्यात्मक एकांकी भी लिखी गई हैं पदबंध एकांकी लिखने वालों में हरि कृष्ण प्रेमी ,सियारामशरण गुप्त, केदारनाथ मिश्र ,भगवती चरण वर्मा, सुमित्रानंदन पंत के नाम गिनाए जा सकते हैं ।आज तो मोनो ,ड्रामा, रेडियो ,रूपक ,फैंटसी आदि एकांकी के अनेक रूपों में लिखी जा रही है एकांकी साहित्य में भरपूर संभावनाएं नजर आती हैं।

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