5955758281021487 Hindi sahitya : अप्रैल 2020

गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

महादेवी वर्मा कृत गिल्लू संस्मरण का सार

महादेवी वर्मा कृत्य गिल्लू संस्मरण का सार
गिल्लू महादेवी वर्मा विरचित एक करूणासिक्त संस्मरण है ।

इस संस्मरण में उन्होंने अपने जीव जगत परिवार के एक सदस्य गिल्लू गिलहरी के अपने परिवार में आगमन तथा उसकी समाधि की  संस्मरणात्मक कहानी है।
 संस्मरण का सार इस प्रकार से है ।

लेखिका को अपने बगीचे में लगी सोनजुही में नई पीले कली खिलने पर अनायास ही गिल्लू गिलहरी की यादें आ जाती है 1 दिन सुबह लेखिका ने देखा था कि उसके घर के बरामदे में रखे गमलों पर दो काव्य चोट मार रहे हैं गमलों के बीच एक नन्ही गिलहरी फंसी हुई है जिससे उनको उन्ह अपनी चोट मारकर घायल कर दिया है और अब वह जीव मरणासन्न हालत में गमले से चिपका हुआ है लेखिका को हालांकि बताया गया है कि कबो की चोट से घायल है इस गिलहरी को बचाना मुश्किल है फिर भी लेखिका ने अपनी प्राणी प्रेम के चलते उसे बचाने का उपक्रम किया उसके घाव को साफ करके उसने पेनिसिलिन का मरहम लगाया लेखिका की मेहनत रंग लाई तीसरे दिन वह इतना अच्छा हो गया कि लेखिका की उंगली अपने पंजों से पकड़ने लगा तीन चार मार्च के बाद उसके शरीर के रोए जब बेदार पूछे और चंचल चमकीली आंखें सबको आश्चर्य में डालने लगी लेखिका ने उसका नाम गिल्लू रख दिया फूल रखिए को उसका घर बना दिया गया घर में वह 2 वर्ष तक रहा वह उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए उसके पैर तक आकर फिर से पर्दे पर जाया करता था कभी-कभी ले उसे पकड़कर इसके अलावा भूख लगने पर वह देता था वसंत आया बाहर की गिलहरी आगे खिड़की की जाली के पास आकर जब करने लगी तो लेखिका ने उसे कुछ समय के लिए मुक्त करना आवश्यक समझा उसने जाली की झीलें लगाकर जाली का एक कोना खोल दिया इस रास्ते से गिल्लू बाहर जा सकता था गिल्लू लेखिका के पैर के पास बैठ जाया करता था तथा कभी-कभी पैर से सिर तक और सिर से पैर तक दौड़ने लगा था दिन भर फूलों में छिपकर तो कभी पर्दे की चरणों में या सोनजुही के पत्तों में चिपका देता था। उसकी इच्छा रहती ठीक कि वह लेखिका के खाने की थाली में बैठ जाए लेखिका ने उसे बड़ी मुश्किल से अपनी थाली के पास बैठना सिखाया।
वह लेखिका की थाली से एक-एक चावल सुनकर बड़ी सावधानी से खाता था काजू उसे बहुत प्रिय थे एक बार जब लेखिका को मोटर दुर्घटना मैं हाथ होने के कारण अस्पताल में रहना पड़ा तब पीछे से वह इतना उद्विग्न हुआ कि उसने अपने प्रिय काजू भी नहीं खाए गर्मियों के दिनों में गिल्लू दोपहर के समय बाहर नहीं जाता था मैं ही वह अपने झूले में बैठता था अभी तू लेखिका के पास रखी सुराही पर लेटा रहता था सुखी गिलहरी की जीवन अवधि 2 वर्ष से अधिक नहीं होती है अतः 2 वर्ष के होते ही गिल्लू की अंतिम बेला भी निकट पहुंची थी एक दिन उसने कुछ नहीं खाया मैं बाहर गया रात को लिखेगा के पास आकर उसके हाथ से चिपक गया लेखिका ने उसके पंजों को ठंडा देखकर जलाया तथा उसे क्षमता देने का प्रयास किया परंतु अगले दिन सुबह की प्रथम किरण के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया लेखिका नहीं उसे सोनजुही की लता के नीचे दिल की समाधि दी संवत है इसी कारण लेखिका को सोनजुही की लता अत्यंत प्रिय है।
गिल्लू संस्मरण के मुख्य बातें

1.लेखिका महादेवी वर्मा ने गिल्लू सोनजूही  बेल के अनन्य संबंध तथा दोनों के प्रति अपने आकर्षण को व्यक्त किया है।

2.महादेवी जी ने स्पष्ट किया है कि कौवा एक ऐसा पक्षी है जो मनुष्य को शुभ संदेश देता है और आपने कटु आवाज के कारण मनुष्य की अवमानना भी सहन करता है।

3.महादेवी वर्मा जी ने गिल्लू संस्करण में बताया है कि मनुष्य का किसी प्राणी के प्रति प्रेम उसे मनुष्य के प्रति समर्पित कर देता है।

4.गिल्लू गिलहरी की समझदारी पर तथा उसकी दैनिक दिनचर्या पर इस संस्मरण में प्रकाश डाला गया है।

5.लेखिका में जिलों की भोजन संबंधी आदतों का उल्लेख किया है और बताया है कि गिल्लू को काजू बहुत अच्छे लगते थे।
6. संस्मरण के अंत में गिल्लू के मरने के लिए पूर्व की पीड़ा दाई स्थिति का बड़ा मार्मिक चित्रण किया गया है।

7. लेखिका ने गिल्लू गिलहरी की अंतिम क्रिया का वर्णन किया है तथा सोनजुही की बेल के नीचे उसकी समाधि बनाना अद्भुत ,अपूर्व वर्णन है।

8.जहां  भाषा शैली की बात करें तो महादेवी वर्मा ने अपने संस्मरण ो में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का वर्णन किया है ।
9.उनकी भाषा भावा अनुकूल, पात्रा अनुकूल तथा धारापवाह है।
10. उनकी भाषा में तत्सम, तद्भव शब्दों की अधिकता अवश्य नजर आती हैं वाक्य विन्यास कुछ जटिल है परंतु सहजऔर रोचक है ।

11.उनके संस्मरण में प्रसाद व माधुरी गुण की अधिकता है।
स्पर्श ,नाथ , दृश्य जैसे  बिंबों का प्रयोग करती हैं।
12. उनका यह संस्मरण भावात्मक है।

13.शब्द शक्ति की अगर बात करें तो इसमें अभिधा शब्द शक्ति का प्रयोग हुआ है ।

14.गिल्लू संस्मरण का वर्ण विषय एक प्राणी प्रेम से है ।

15.इसकी शैली वर्णनात्मक शैली है शब्द भंडार बहुत व्यापक है ।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गिल्लू संस्मरण की भाषा से सकते कार्यात्मक तथा धारापवाह है।


महादेवी वर्मा के संस्मरण में विषय जैसी विविधता दिखाई देती है जो अन्यत्र दुर्लभ है उन्होंने अपने संस्कारों में मानवीय पात्रों को ही नहीं मान वेतन प्राणियों को भी अभीष्ट अस्थान दिया है उन्होंने अपने संपर्क में आए दिन ही ऐसा ही व्यक्तियों के तरीके प्राय अपने जी परिवार के हर सदस्य चाहे वह सोना हिरनी हो नीलकंठ मोर हो गौरा गाय हो नीलू कुत्ता हो या गिल्लू गिलहरी हो हर प्राणी के जीवन का संसदात्मक उल्लेख किया है उनके संस्मरण संकेतों पर भी खरे उतरे हैं वास्तव में महादेवी जी ने संस्मरण साहित्य में अपूर्व योगदान दिया है उनके प्रवर्तक योगदान के लिए चिर ऋणी रहेंगे।

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

विज्ञापन और सामाजिक दायित्व पर निबंध, विज्ञापन लेखन

विज्ञापन और सामाजिक दायित्व
विज्ञापन लेखन कला
विज्ञापन की भूमिका
विज्ञापन लाभ व हानियां
विज्ञापन कितने सही या गलत
प्रस्तावना विज्ञापन की भूमिका वहां आवश्यक हो रही है जहां बाजार है तथा प्रतिस्पर्धा है विज्ञापन सक्रिय प्रतियोगिता का प्रत्यक्ष प्रतीक है इसके फलस्वरूप एक ग्राहक संतुष्ट हो जाता है विज्ञापन अवश्य रूप से ग्राहकों को वस्तुओं के उत्पादन व उसकी कीमत के संबंध में सूचित करता है।
विज्ञापन का उद्देश्य
विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य समाज में नए-नए उत्पादों का प्रचार करना है। समाज विज्ञापन के मौखिक संकेतों पर जीवित रहता है जिसके अंतर्गत सदस्यों के व्यवहार सक्रियता आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है विज्ञापन करता को बढ़-चढ़कर विज्ञापन करने के साथ-साथ उत्पादन में शुद्धता गुणवत्ता व श्रेष्ठता आदि गुणों का विशेष रूप से समावेश करना चाहिए उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए विज्ञापन में अश्लीलता को बढ़ावा दिया जाता है महिलाओं का अधिक शोषण भी विज्ञापनों की दुनिया में होता है वर्णों से भी उपभोक्ता को नुकसान पहुंचाते हैं लाभ व हानियां विज्ञापन की पहुंच गए प्रभाव चौंकाने वाले हैं क्योंकि यह कीड़े मकोड़े की तरह आज प्रत्येक घर हरे के हृदय में स्थान बना चुका है इस दौर में उत्पादों को बेचना इंटरनेट वेब माध्यमों के विज्ञापन द्वारा बहुत ही शुभ हो चुका है दिक्कत इस बात की है कि विज्ञान के युग में मौलिकता की जगह सिद्धांत सिद्धांत हीनता लेने जा रही हैं।

 इस प्रकार विज्ञापन आधुनिक जीवन का एक अवश्य अंग बन चुका है विज्ञापन को मानव सेवा के आधार पर सीमित रहना चाहिए उसे अपने जादुई शब्दों में कल्पना का दुरुपयोग ना करते हुए प्रबंध कौशल को विकसित करना चाहिए ताकि उपभोक्ता स्वयं को ठगा सा महसूस ना करें। वीवी का अर्थ होता है विशेष ज्ञा का अर्थ होता ज्ञापन है या नहीं जानकारी देना किसी के बारे में विशेष रूप से जानकारी देने वाला विज्ञापन को देखकर उनसे प्रभावित होकर लोग उस वस्तु को खरीदते हैं इससे उस वस्तुओं की बिक्री में वृद्धि होती है और उत्पादन करता को लाभ होता है टीवी चैनल समाचार पत्र पत्रिकाएं बोर्ड आदि हर जगह विज्ञापन छाई रहती है विज्ञापन के द्वारा ग्राहक यह जान पाता है कि उस वस्तु में क्या गुण है।

रविवार, 26 अप्रैल 2020

कैसे बनती है कविता?

कैसे बनती है कविता?
'कविता कोने में घात लगाए बैठी है यह हमारे जीवन की भीषण बसंत की तरह आ जाती है ।'
अर्जेंटीना के एक स्पेनिश लेखक की कोटेशन
कविता हमारी संवेदनाओं के निकट होती है वह हमारे मन को छू लेती है कभी-कभी जब जोर देती है कविता के मूल में संवेदना है राम तत्व है यह संवेदना संपूर्ण सृष्टि से जुड़ने और उसे अपना बना लेने का बोध है।
सवाल यह उठता है कि जो वस्तु हमारे इतने निकट है उसे हम उसी तरह क्यों नहीं कर पाते हैं जैसे कभी कहता है जहां तक कविता लेखन का सवाल है इस संबंध में दो मत मिलते हैं एक तो यह कि कविता रचने की कोई प्रणाली सिखाई नहीं क्या बताए नहीं जा सकती लेकिन यह भी सच्चाई है कि पश्चिम के कुछ विश्वविद्यालयों में और अब आपने यहां भी कहीं-कहीं लेखन के बारे में विद्यार्थियों को बकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है। दो सवाल यह भी है कि चित्रकला संगीत कला नृत्य कला भी सिखाई जा सकती है तो क्यों नहीं जा सकती आप इन सवालों का सामना करेंगे आज लगेगा यह संसार है कविता का जादू खुल नहीं लगेगा न बन पाए तो एक अच्छे बन जाओगे कविता की बारीकियों से गुजर ना उसे दोबारा रचे जाने के लिए सुख से कम नहीं होगा दरअसल एक अच्छी कविता अंतरित करती है बार-बार पढ़े जाने के लिए कुछ शिक्षा शास्त्रीय संगीत की तरह जब तक आप इससे दूर हैं रहस्य में लगी कि करीब जाते ही बार-बार तथा देर तक सुनने की कोई भी चाहिए कविता आपसे सवाल करती है सुनने और पढ़ने के बाद भी वह बची रह जाती है आप की स्मृतियों में बार बार सोचने के लिए ।
कविता की अंजाम दुनिया का सबसे पहला उपकरण है शब्द शब्द से मेलजोल कविता की पहली शर्त है शब्दों से खेलना उनसे मिलजुल बढ़ाना शब्दों के भीतर सदियों से छिपे अर्थ की परतों को खोल एक शब्द अपने भीतर कई अर्थ छिपाए रहता है कुछ-कुछ इंटरनेट की तरह इंटरनेट से जुड़ना ज्ञान विज्ञान की नई दुनिया से जुड़ना है शब्दों से जुड़ना कविता की दुनिया में प्रवेश करना है के प्रयास में भी धीरे-धीर उसकी रचनात्मकता का आकार लेना शुरू कर देती है।
कविता में सारे घटक परिवेश और संदर्भ से परिचालित होते हैं कविता की भाषा संरचना भीमबंध सब उसी के इर्द-गिर्द घूमते हैं
कविता के कुछ प्रमुख घटक
कविता भाषा में होती है इसलिए भाषा का समय का ज्ञान होना जरूरी है भाषा शब्द से बनती है शब्दों का एक विन्यास होता है जिसे वाक्य कहते हैं भाषा प्रचलित एवं सहज हो पर संजना ऐसी कि पाठकों को नहीं लगे कविता में संकेतों का बड़ा महत्व होता है इसलिए संकेतक चिन्हों जहां तक की 2 पंक्तियों के बीच का खाली स्थान भी कुछ ऐसा कह रहा होता है वाक्य का गठन की जो विशिष्ट प्रणाली होती है उसे शैली कहते हैं इसलिए विभिन्न काव्य शैलियों का ज्ञान भी जरूरी है
संतो के अनुशासन की जानकारी से होकर गुजरना एक कवि के लिए जरूरी है तभी आंतरिक ले का निर्माण संभव है कविता चंद और उन्मुक्त चंद दोनों से होती है संभवत कविता के लिए चंद के बारे में बुनियादी जानकारी आवश्यक है मुक्तक छंद में लिखने के लिए इसका ज्ञान जरूरी नहीं है कविता समय विशेष की उपज होती है उसका स्वरूप समय के साथ साथ बदलता रहता है अतः किसी समय विशेष की जानकारी भी कविता की दुनिया में प्रवेश के लिए आवश्यक है कम से कम शब्दों में अपनी बात कह देना और कभी-कभी तो सब दो या दो वाक्यों के बीच कुछ कही अनकही छोड़ देना सविता की ताकत है।
मोटे तौर पर यह बुनियादी जानकारी कविता की दुनिया में प्रवेश के लिए जरूरी है पर सौ बातों की एक बात कि सारे तैयारी हो और कविता रचने के लिए चीजों को देखने की नवीन दृष्टि या नए को पहचानने और उसको प्रस्तुत करने की कला ना हो तो काव्य लेखन संभव नहीं है भारतीय विचार को ने इसी को प्रतिभा कहां है यह प्रतिभा प्रकृति प्रदत होती है। किसी नियम या सिद्धांत के अनुसार इसे पैदा नहीं किया जा सकता निरंतर अभ्यास ले और परिश्रम के द्वारा विकसित अवश्य किया जा सकता है जहां तक की कविता का सवाल है शब्दों का चयन इसका गठन बाबा अनुसार ले आत्म अनुशासन से तत्व है जो जीवन के अनुशासन के लिए जरूरी हैं भाषा सीखने में मैं तो मददगार हैं कविता की यह कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो कविता रचना भले ही न सिखाएं लेकिन उन्हें जानने जाने ना कविता को रचने का मजा दे सकता है और कविता को सर आने का सुख भी सच में शब्दों की दुनिया में प्रवेश उनसे खेलना विद्यार्थी की रचनात्मक शक्ति और ऊर्जा को बाहर लाने में अद्भुत भूमिका निभा सकते हैं
एक जनता का
दुख एक
 हवा उड़ती पताकाए 
अनेक
दैत्य दानव
 करोड़ से कंगाल बुद्धि
 मजदूर एक जनता का 
अमर एकता का स्वर्ग।।

कैसे हासिल करें पत्रकारिता में महारत

कैसे हासिल करे पत्रकारिता में माहारत


**पत्रकारीय विशेषज्ञता का अर्थ यह है कि व्यवसायिक रूप से प्रशिक्षित ना होने के बावजूद उस विषय में जानकारी और अनुभव के आधार पर अपनी समझ को इस हद तक विकसित करना की उस विषय क्षेत्र घटने वाली घटनाओं और मुद्दों की आप सहायता से व्याख्या कर सके और पाठकों के लिए उसके मायने स्पष्ट कर सके।


क्या आप माहारत हासिल करना चाहते हैं ?

सवाल यह उठता है कि आप किसी भी विषय में विशेषज्ञता कैसे हासिल कर सकते हैं ?
इस सिलसिले में सबसे जरूरी बात यह है कि आप जिस भी विषय में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं?
एक ही प्रश्न का दो बार पूछे जाना मेरा उद्देश्य यही है सच में आप क्या यह करना चाहते हैं आपकी दिली इच्छा है।

 उसमें आप की वास्तविक रुचि होनी चाहिए इसके साथ ही अगर आप उस विषय में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि आप उत्तर माध्यमिक और स्नातक स्तर पर उसी या उससे जुड़े विषय में पढ़ाई करें।

 इसके अलावा अपनी रुचि के विषय में पत्र कार्य विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा उस विषय से संबंधित पुस्तकें खूब पढ़नी चाहिए ।

विशेष लेखन के क्षेत्र में सक्रिय लोगों के लिए खुद को अपडेट विषय से जुड़ी खबरों की कटिंग करके फाइल बनानी चाहिए ।

साथ ही प्रोफेशनल विशेषज्ञों के लेख व विश्लेषण की कटिंग भी  रखनी चाहिए।
 इस तरह से आपको उस विषय में जितनी संभव हो संदर्भ सामग्री जुटाकर रखनी चाहिए। 

इसके अलावा उस विषय का शब्दकोश और इनसाइक्लोपीडिया भी आपके पास होनी चाहिए ।

यही नहीं जिस विषय में आप विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं उससे जुड़े सरकारी और गैर सरकारी संगठनों और संस्थाओं की सूची उनकी वेबसाइट का पता, टेलिफोन नंबर उनमें काम करने वाले विशेषज्ञों के नाम और फोन नंबर अपनी डायरी में जरूर लिखिए‌

 दरअसल एक पत्रकार की विषय विशेषज्ञ था कुछ हद तक उसके अपने सूत्रों और स्त्रोतों पर निर्भर करती है‌।

 जैसे अगर आप आर्थिक विषयों पर विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं और आपके पास परिचित अर्थशास्त्रियों और बाजार विशेषज्ञों के नाम और फोन नंबर है तो आप उनसे बातचीत करके किसी घटना फैसले या नीति के विभिन्न पहलुओं को समझ सकते हैं या उसका विद्यार्थी जानने की कोशिश कर सकते हैं।

 इसी तरह आप अपनी रूचि के क्षेत्र या विषय में मैं विशेष विशेषज्ञता विकसित कर सकते हैं लेकिन एक आवश्यक बात याद रखनी चाहिए कि विशेषज्ञता 1 दिन में नहीं आती विशेषज्ञता एक तरह से अनुभव का पर्याय है उस विषय में निरंतर दिलचस्पी और सक्रियता ही आपको किसी विषय का विशेषज्ञ बना सकते हैं और यह पत्रकारिता का पहला नियम है।
उदाहरण जैसे आप कारोबार और व्यापार पर पत्रकारिता करना चाहते हैं तो कुछ बातें ध्यान रखिए समाचार पत्र में कारोबार और अर्थ जगत से जुड़ी खबरों का एक अलग से प्रश्न आता है उसको प्रतिदिन पढ़िए मूल्यांकन कीजिए कि इस समाचार को लिखने का क्या आधार रहा है।

इसकी वजह यह है कि अर्थ यानी धन हर आदमी के जीवन का मूल आधार है हमारे रोजमर्रा के जीवन में इसका खास महत्व है हम बाजार से कुछ खरीदते हैं बैंक में पैसा जमा कराते हैं बचत करते हैं किसी कारोबार के बारे में योजना बनाते हैं या कुछ भी ऐसा सोचते या करते हैं जिसमें आर्थिक फायदे नफा नुकसान आदि की बात होती है तो इसका इन सब का कारोबार और अर्थ यही कारण है कि कारोबार और व्यापार जगत से जुड़ी खबरें, सोने चांदी के भाव
दो अखबारोमैं कारोबार और अर्थ जगत के पृष्ठों को ध्यान से पढ़िए उन्हें प्रकाशित खबरों की एक सूची बनाइए उन खबरों की भाषा में इस्तेमाल शब्दों की भी एक सूची बनाइए ।


आर्थिक विषयों पर प्रकाशित टिप्पणियां और विश्लेषण ओं को ध्यान से पढ़िए इन सब के आधार पर 200 शब्दों की एक रिपोर्ट तैयार कीजिए और बताइए कि आर्थिक विषयों पर लेखन अन्य प्रकार की पत्रकारिता लेखन से किस प्रकार से अलग है किसी एक समाचार पत्र में प्रकाशित होने वाली मंडे के भाव पर आधारित 1 सप्ताह की खबरें और उसका विश्लेषण इकट्ठा कीजिए उसे ध्यान से पढ़िए और बताइए कि क्या वह एक सामान्य पाठक की समझ में आ सकती है?


शनिवार, 25 अप्रैल 2020

अच्छे पत्रकारीय लेखन में ध्यान देने योग्य बातें

अच्छे पत्रकारीय लेखन में ध्यान देने योग्य बातें
1.वाक्य छोटे, संक्षिप्त व अर्थवान होने  चाहिए।
2.बोलचाल के शब्दों का प्रयोग तथा वास्तविक अर्थ वाले हो।
3.अच्छा लेख लिखने के लिए पढ़ना भी जरूरी है।
4.जाने -माने लेखकों को ध्यान से पढ़िए तथा उनकी शैली पर ध्यान दीजिए।
5. लेखन में कसावट का होना जरूरी है।
6. आपने लेख को हमेशा दोबारा पढ़े।
7. अशुद्धियां तथा गैर जरूरी चीजों को हटाने में जरा भी संकोच नहीं करना चाहिए।
8. लिखते समय अपने उद्देश्य को को ध्यान देते हुए अपनी भावनाओं विचारों तथा तथ्यों को व्यक्त करना चाहिए दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुंचाना वह भ्रमित नहीं करना चाहिए।
9. मुहावरे और लोकोक्तिया से
भाषा को रोचक बनाना चाहिए।
10. अपने आसपास की घटना समाज और वातावरण पर पैनी दृष्टि रखें ।
11.उसी पर लेख के बिंदु निकाले
12. किसी भी विषय पर बारीकी से विचार कर धैर्य से लिखें ।
13.शीर्षक सोच -समझकर ,समाचार का दर्पण होना चाहिए ।
14.लेख संक्षिप्त व सारगर्भित होने चाहिए।

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

फीचर लेखन व आलेख लेखन में अंतर

फीचर लेखन व आलेख लेखन में अंतर
फीचर का स्वरूप
समकालीन घटनाओं या किसी भी क्षेत्र विशेष की विशिष्ट जानकारी के साथ चित्र तथा मोहक विवरण को फीचर कहा जाता है।
** इसमें मनोरंजक ढंग से तथ्यों को प्रस्तुत किया जाता है ।**इनके संवादों में गहराई होती है।
** यह सुव्यवस्थित ,सर्जनात्मक वआत्म निष्ठ लेखन है ।
**जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने शिक्षित करने के साथ-साथ मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना भी होता है ।**फीचर में विस्तार की अपेक्षा होती है जिसकी अपनी एक अलग शैली होती है।
** एक विषय पर लिखा गया फीचर प्रस्तुति विविधता के कारण अलग अंदाज प्रस्तुत करता है।
** इसमें भूत वर्तमान तथा भविष्य का समावेश हो सकता है **कथन व कल्पना का उपयोग किया जा सकता है।
** फीचर में आंकड़े ,फोटो ,कार्टून, चार्ट, नक्शे आदि का उपयोग कर इसे रोचक बना दिया जाता है।
 फीचर ,आलेख में अंतर 
1.फीचर में लेखक के पास अपनी राय या दृष्टिकोण और भावनाएं जाहिर करने का अवसर होता है जबकि समाचार या आलेख मैं वस्तुनिष्ठता और तथ्यों की शुद्धता पर जोर दिया जाता है।
2.फीचर लेखन में उल्टा पिरामिड शैली का प्रयोग नहीं होता है जबकि आलेख शैली में इसी का प्रयोग होता है।
3.इसकी शैली कथात्मक होती है जबकि आले की शैली तथ्यात्मक होती है।
4.फीचर लेखन की भाषा सरल रूप आत्मक व आकर्षक होती है परंतु समाज समाचार वाले की भाषा में सपाट बयानी होती है।
5.फीचर में शब्दों की अधिकतम सीमा नहीं होती यह आमतौर पर ढाई सौ शब्दों से लेकर 500 शब्दों तक होते हैं जबकि आलेख पर शब्द सीमा लागू होती है।
6.फीचर का विषय कुछ भी हो सकता है लेकिन आलेख का विषय कुछ भी नहीं हो सकता।

फीचर के प्रकार

फीचर के निम्नलिखित प्रकार हैं

*समाचार फीचर 
*घटना फीचर 
*व्यक्तिगत फीचर 
*लोक अभिरुचि फीचर 
*सांस्कृतिक फीचर
* साहित्यिक फीचर 
*विश्लेषण 
*विज्ञान ।
*सुविचार
फीचर संबंधी मुख्य बातें

1.फीचर को सजीव बनाने के लिए उसमें उस विषय से जुड़े लोगों की मौजूदगी जरूरी है।
2फीचर की कथ्य को पात्रों के माध्यम से बतलाना चाहिए।
3.कहानी को बताने का अंदाज ऐसा हो कि पाठक यह       महसूस करें कि वे खुद देख और सुन रहे हैं।
4.फीचर मनोरंजक व सूचनात्मक होने चाहिए
5.फीचर शोध रिपोर्ट नहीं है
6.इसे किसी बैठक या सभा की कार्यवाही विवरण की तरह      नहीं लिखा जाना चाहिए
7.फीचर का कोई न कोई उद्देश्य होना चाहिए इस उद्देश्य के     इर्द-गिर्द ही सभी प्रासंगिक सूचनाएं तथ्य तथा विचारों से      होने चाहिए
8.फीचर तथ्यों सूचनाओं और विचारों पर आधारित कथा त्मक विवरण और विश्लेषण होता है।
9.फीचर लेखन का कोई निश्चित ठांचा या फार्मूला नहीं     होता   इसे कहीं से भी आरंभ मध्य या अंत से शुरू किया   जा सकता है।
10.फीचर का हर पैराग्राफ अपने पहले के पैराग्राफ से सहज तरीके से जुड़ा होना चाहिए तथा उनमें प्रारंभ से अंत तक प्रभावित रहनी चाहिए।
11.पैराग्राफ छोटे होने चाहिए तथा एक पैराग्राफ में एक ही     पहलू पर फोकस करना चाहिए
कुछ प्रमुख उदाहरण

1.सफलता व आत्मसम्मान विषय पर फीचर लिखिए
2.दक्षिण का कश्मीर तिरुअनंतपुरम
3.बस्ते का बढ़ता बोझ
4.महानगर की ओर पलायन की समस्या
5.फुटपाथ पर सोते लोग
6.आतंकवाद की समस्या
7.आतंकवाद का घिनौना चेहरा
8.चुनावी वायदे
9.बिना प्यास के भी पीने पानी
10.अच्छे काम पर बच्चों को करें अप्रिशिएट

आलेख लेखन

**किसी एक विषय पर विचार प्रधान ,गद्य प्रधान अभिव्यक्ति को आलेख कहा जाता है ।
**यह एक प्रकार के लोग होते हैं जो अधिकतर संपादकीय पृष्ठ पर ही प्रकाशित होते हैं इनका संपादकीय से कोई संबंध नहीं होता है 
**यह लेख किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो सकते हैं जैसे खेल समाज राजनीति अर्थ फिल्म आदि इनमें सूचनाओं का होना अनिवार्य है
आलेख के मुख्य अंग

आलेख के मुख्य अंग निम्नलिखित हैं
*भूमिका 
*विषय का प्रतिपादन
*तुलनात्मक चर्चा 
*निष्कर्ष

**सर्वप्रथम शीर्षक के अनुकूल भूमिका लिखी जाती है ।
**यह बहुत लंबी ना होकर संसद में होनी चाहिए विषय के प्रतिपादन में विषय का वर्गीकरण, आकार ,रूप व क्षेत्र आते हैं ।
**इनमें विषय का क्रमिक विकास ने किया जाना चाहिए ।**विषय में महता व क्रमता अवश्य होनी चाहिए 
***तुलनात्मक चर्चा में विषय वस्तु का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाता है। 
**अंत में विषय का निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है।

आलेख रचना के संबंध में प्रमुख बातें
1. लेखक लेख लिखने से पूर्व विषय का चिंतन मनन करक विषय वस्तु का विश्लेषण करना चाहिए।

 2.विषय वस्तु से संबंधित आंकड़ों के उदाहरणों का उपयुक्त संग्रह करना चाहिए लेख में श्रंखला पता होना जरूरी है।
3. लेख की भाषा सरल और रोचक होनी चाहिए।
4. वाक्य बहुत बड़े नहीं होने चाहिए।
 5.एक परिच्छेद में एक ही भाव व्यक्त करना चाहिए।
6. लेख की प्रस्तावना व समापन में रोचकता होनी जरूरी है 7.विरोधाभास ,दोहरापन, असंतुलन तत्वों किए समावेश आदि से बचना चाहिए 
उदाहरण 
*असम में उल्फा 
*कॉमन वेल्थ गेम 
*बढ़ती आबादी देश की बर्बादी 
*बचपन की पढ़ाई सीकर की चढ़ाई 
*एक अच्छा स्कूल 
*भारतीय कृषि की चुनौतियां
 *किसानों पर कर्ज का बोझ
 *महानगरों में बढ़ते अपराध 
*बाल श्रम 
*जातीयता का विषय
 *मेरे विद्यालय का पुस्तकालय
 *मोबाइल के सुख-दुख
*डॉक्टरों की हड़ताल
 *छात्र और बिजली संकट
 *फिल्मों में हिंसा।
 *कर्ज में डूबा किसान 
*दिन प्रतिदिन बढ़ते अंधविश्वास 
*पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें

भारतीय स्टेट बैंक मुंबई के महाप्रबंधक को लिपिक पद के लिए आवेदन पत्र लिखिए।

भारतीय स्टेट बैंक मुंबई के महाप्रबंधक को लिपिक पद के लिए आवेदन पत्र लिखिए
प्रति
महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
मुंबई
विषय- लिपिक पद हेतु आवेदन पत्र
मान्यवर
दिनांक 24 मई ,2020 महाराष्ट्र टाइम्स प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ कि आप के कार्यालय में लिपिकों की आवश्यकता है मैं स्वयं को इस पद के योग्य मानकर आवेदन प्रस्तुत कर रही हूं। मेरा संक्षिप्त व्यक्तिगत विवरण निम्नलिखित है।
नाम -सुमन शर्मा
पिता का नाम -श्री विजय कुमार
जन्म तिथि -14 दिसंबर, 1987
पता -4/ 75 गोकलपुरी, दिल्ली

शैक्षणिक योग्यताएं


दसवीं  कक्षा- सीबीएसई दिल्ली।   2002     65 %
बारहवीं कक्षा -सीबीएसई दिल्ली  2004      72 %
B.A. -*दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली 2007.  65 %
M.A. दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली   2009    62 %
कंप्यूटर कोर्स वी वर्षीय पाठ्यक्रम (एप्टेक कंप्यूटर लर्निंग सेंटर ),2011
अनुभव -सहारा कोपरेटिव बैंक में क्लर्क के पद पर 3 साल
आशा है कि आप मेरी योग्यताओं पर सहानुभूति पूर्वक विचार कर सेवा का अवसर प्रदान करेंगे,। 
 धन्यवाद 
भवदीया
सुमन शर्मा 
हस्ताक्षर ----------
 दिनांक-----------
संलग्न   -शैक्षणिक एवं अनुभव प्रमाण पत्र की                         छायाप्रति

किसी समाचार पत्र के संपादक को कोरोनावायरस के प्रति जनसाधारण को सचेत करते हुए पत्र लिखे लोगों को इस महामारी से बचने के उपाय बताएं।

पत्र लेखन
किसी समाचार पत्र के संपादक को कोरोनावायरस के प्रति जनसाधारण को सचेत करते हुए पत्र लिखे लोगों को इस महामारी से बचने के उपाय बताएं।
प्रेषक
मकान नंबर 57- 58
एसडीएम कॉलोनी
आजाद नगर, हिसार
हरियाणा
सेवा में
संपादक महोदय जी
दैनिक भास्कर
हिसार
विषय कोरोना वायरस के प्रति जनसाधारण को सचेत करने हेतु पत्र
मैं आज आपके समाचार पत्र के माध्यम से जनसाधारण को सचेत करना चाहता चाहती /चाहता हूं। जैसा कि आप सब जानते हैं कि कोरोनावायरस से अब एक वैश्विक महामारी फैल चुकी है ।विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसे एक वैश्विक महामारी माना है। जिसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि हालात को हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि इस वायरस का अब तक कोई पुख्ता इलाज नहीं किया जा सका है ।इसलिए सावधानी ही बचाव है। कोरोना से हारे नहीं ,रोकथाम व बचाव ही जरूरी है ।कोरोना को लेकर कई अफवाहें फैलाई जा रही है जोकि निदान की बजाय डर अधिक पैदा कर रही है। अफवाहों पर ध्यान देने की बजाय रोकथाम पर कार्य करना शुरू करना होगा ।
भारत सरकार द्वारा रोकथाम को लेकर कुछ सुझाव दिए गए हैं जो कि इस प्रकार से हैं।---
 ऐसे पहचाने लक्षण
***संक्रमण होने पर पहले बुखार और फिर सिर दर्द होता है   फिर सूखी खांसी होती है एक हफ्ते के बाद सांस लेने में      परेशानी होने लगती है और मांसपेशियों में दर्द होता है         इस दौरान मरीज को अस्पताल में भर्ती करना पड़            सकता है।
क्या करें
1.निजी सफाई का ध्यान रखें।
2.श्वास लेने संबंधी शिष्टाचार का पालन करें । खांसते व छींकते समय मुंह को ढके।
3 .जब हाथ गंदे दिखे यह बार-बार साबुन या सेनीटइजर से 20 सेकंड तक अपने हाथों को धोएं।

4.बिना हाथ धोए। अपनी आंखें व नाक और मुंह हाथ न लगाएं।

5.नैपकिन व टिशु को इस्तेमाल करने के बाद कूड़ा दान में ही डालें इस्तेमाल किए गए नैपकिन या टिशू या मास्क को इधर-उधर न सकें।
6.टिशू नहीं है तो खास है या सीखते वक्त अपनी बाजू का     इस्तेमाल करें।
7.विटामिन सी युक्त फल खाएं साथ ही शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
8. तबीयत नासाज लगे तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।
9.लॉक डाउन का सही में पालन करें।
10.जब तक जरूरी ना हो तब तक बाहर ना निकले।
11.सार्वजनिक जगहों या खुली जगह पर न थूकें।
12.मांस का सेवन ना करें।
13.घर के बच्चों व बुजुर्गों का ध्यान रखें।
14.घर में रहकर ही सृजनात्मक कार्य करें।
15.घर में रहकर ही हम अपने आप को अपने देश अपने        राज्य को अपने शहर को बता सकते हैं।
16. मजदूर व जरूरतमंदों की मदद करें।
17. हो सके तो कोरोना रिलीफ फंड में आर्थिक योगदान भी दें।

मुझे उम्मीद है आप मेरे द्वारा दी गई सलाह को अपने समाचार पत्र में स्थान देंगे ‌।
 धन्यवाद
भवदीय
देश का एक सजग नागरिक

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

हिंदी एकांकी का उद्भव व विकास

हिंदी एकांकी का उद्भव और विकास -एकांकी आधुनिक हिंदी गद्य की एक स्वतंत्र विधा है।

एकांकी और नाटक में अंतर

** कुछ लोग एकांकी को नाटक का लघु रूप मानते हैं लेकिन यह उचित नहीं है क्योंकि नाटक और एकांकी दो अलग-अलग विधाओं,सिद्धांत रूप में जिस नाटक की कथावस्तु एक ही अंक में वर्णित होती है उसे एकांकी या एकांकी नाटक कहते हैं ।

**नाटक का यह रूप आजकल अत्यधिक लोकप्रिय हो चुका है और उसका स्वतंत्र अस्तित्व बन चुका है ।

एक विद्वान आलोचक के शब्दों में इसके विधायक तत्वों की रचना विधि की स्वतंत्र रूप से विवेचना की जाती है एकांकी के तत्व नाटक के सदृश होते हैं परंतु उनके विनियोग वृद्धि में पर्याप्त अंतर रहता है ।
इसमें विषय की एकता प्रभाव की एकता तथा वातावरण की एकता रहती है ।

**आधुनिक एकांकी का उद्भव प्राचीन भारत में नाट्य साहित्य में एकांकी नाटक भी मिल जाते हैं लेकिन आधुनिक नाटक एकांकी का स्वरूप संस्कृत की एकांकी ओं की अनुकरण पर आधारित नहीं है ।

**इस पर अंग्रेजी साहित्य की एकांकी का प्रभाव देखा जा सकता है अंग्रेजी एकांकी साहित्य का जन्म 10 वीं शताब्दी के लगभग हुआ अंग्रेजी प्राणी बांग्ला एकांकी को प्रभावित किया और बांग्ला के माध्यम से यह प्रभाव हिंदी साहित्य में पहुंचा ।

***आधुनिक हिंदी का प्रथम एकांकी जयशंकर प्रसाद एक घूंट प्रथम एकांकी मानी जाती है भारतेंदु हरिश्चंद्र ,बलकृष्ण भट्ट द्वारा रचित शिक्षा दान ,जैसा काम वैसा परिणाम 
**प्रताप नारायण मिश्र द्वारा रचित ज्वारी ख्वारी, 

**देवकीनंदन तिवारी द्वारा रचित 11 के तीन कल योगी जनेऊ ,राधाचरण गोस्वामी के द्वारा रचित तन मन धन गोसाई जीके अपूर्ण बूढ़े मुहासे आदि प्रसिद्ध एकांकी हैं ।
पाश्चात्य स्वरूप को अपनाकर एकांकी हिंदी साहित्य में 1930 से आई डॉ नगेंद्र ने स्वीकार किया है कि पश्चिमी ढंग से एकांकी का शुभारंभ डॉ रामकुमार वर्मा द्वारा रचित बादल की मृत्यु सन 1930 से हुआ है इसके बाद भुनेश्वर प्रसाद का कारवां 1935 सफल एकांकी संग्रह कहा जा सकता है हिंदी एकांकी का इतिहास लगभग 90 साल पुराना है।

*** हम इसको समझने के लिए तीन भागों में बांट सकते हैं ।
प्रथम चरण में एकांकी के उद्भव की चर्चा की जा रही है प्रथम चरण हिंदी एकांकी साहित्य को विकास उन मुक्ता पदान करने वाले एकांकी कारों में भुनेश्वर प्रसाद ,डॉ रामकुमार वर्मा ,गोविंद बल्लभ पंत ,सेठ गोविंद दास ,नरेश प्रसाद तिवारी ,पांडे बेचन शर्मा ,सतगुरु शरण अवस्थी आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं।

 **वार्ड नंबर 2 भुनेश्वर भुनेश्वर के कारवां एकांकी संग्रह में एकांकी हैं तथा इनका प्रतिपाद्य प्रेम है यह वर्णन 100 से प्रभावित दिखते हैं भुनेश्वर के अंखियों में बौद्धिकता की प्रधानता है कठपुतलियां आदि इनकी प्रतीकात्मक एकांकी भी है डॉ रामकुमार वर्मा ने लगभग 100 से अधिक लिखी ।

बादल की मृत्यु की पहली एकांकी है इनके प्रसिद्ध की प्रसिद्ध एकांकी संग्रह में पृथ्वीराज की आंखें सुमित्रा रेशमी टाई सप्त किरण विभूति दीप सा दीप दान रूप रंग इंद्रधनुष 2 तारीख का डॉक्टर वर्मा ने ऐतिहासिक सामाजिक पौराणिक रहस्य 4 वर्गों में विभाजित विषय लिखें
 द्वितीय चरण -
**उदय शंकर भट्ट हिंदी के एक अन्य उल्लेखनीय एकांकिका रहे हैं जिन्होंने हिंदी एक अंग की कला को काफी प्रसिद्धि दिलाई उनका प्रथम एकांकी संग्रह अभिनव एकांकी के नाम से सन 1940 में प्रकाशित हुआ इन्होंने पराए सामाजिक और पुरानी एकांकी लिखी कालिदास तथा आदम युग में पौराणिक एकांकी संकलित है श्री का हृदय तथा समस्या का अंत एकांकी संग्रह में सामाजिक एकांकी संकलित है ।

**सेठ गोविंद दास ने राजनीतिक ,ऐतिहासिक ,पौराणिक तथा सामाजिक एकांकी लिखी हैं स्पर्धा सप्त रश्मि ,पंचभूत ,अष्टदल आदि इनके प्रमुख कहानी संग्रह शराब और वर्क तथा अलबेला इनके प्रसिद्ध मनोरमा है ।सेठ गोविंद दास ने अपनी एकांकी संग्रह में सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं को उठाया है ।

उपेंद्र इस चरण के एक अन्य एकांकी कार है देवताओं की छाया में, चरवाहे, तूफान से पहले ,कैद और उड़ान इन की प्रसिद्ध एकांकी संग्रह हैं ।
हर्ष जी ने अपनी एकांकी में समाज के विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए पाखंड का सजीव चित्रण किया है ।
**हरि कृष्ण प्रेमी नेम मध्यकालीन भारतीय कथाकार को अपनाकर कुछ एकांकी लिखी हैं इनकी एक एकांकी का स्वर राष्ट्रीय एकता से परिपूर्ण है।
 तृतीय चरण 
**आधुनिक एकांकी कारों में विष्णु प्रभाकर का नाम महत्वपूर्ण है उन्होंने सामाजिक ,राजनीतिक ,हास्य-व्यग्य प्रधान मनोवैज्ञानिक सभी प्रकार की एकांकी लिखी। मां ,भाई ,रहमान का बेटा, नया कश्मीर ,मीना कहां है इत्यादि इनक प्रसिद्ध एकांकी हैं।

इस युग के एकांकी कारों में जगदीश चंद्र माथुर ,लक्ष्मीनारायण मिश्र ,वृंदावन लाल वर्मा तथा भगवतीचरण आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं माथुर जी एक प्रतिभा संपन्न एकांकी कार हैं वे एकांकी कला तथा रंगमंच के पूर्ण ज्ञाता थे।
 मोर का तारा
 रीड की हड्डी आदि की प्रसिद्ध एकांकी हैं। 

**लक्ष्मीनारायण मिश्र ने सेक्स समस्या तथा भारतीय संस्कृति के उज्जवल पक्षों में एकांकी लिखी ।

**भगवती चरण वर्मा ने अपनी एकांकी साहित्य में सामाजिक विसंगतियों और विकृतियों पर प्रभाव करते हुए दिखाई देते हैं परंतु लक्ष्मी नारायण लाल की एक आंसुओं में बुद्धि वाद तथा भारतीय संस्कृति का उन्मुक्त वर्णन है ।

**वृंदावनलाल वर्मा ने अपने एकांकी साहित्य में यथार्थ और आदर्श का समन्वय किया है ।
निष्कर्ष 
हिंदी साहित्य एकांकी को समृद्ध करने में असंख्य विद्वानों का सहयोग है इनमें से सद्गुरु शरण अवस्थी ,गोविंद बल्लभ पंत ,विनोद रस्तोगी ,भारत भूषण अग्रवाल, धर्मवीर भारती, नरेश मेहता ,चिरंजीत मोहन राकेश प्रभाकर, मच्वे ,देवराज ,दिनेश ,रेवती शरण शर्मा ज्ञानदेव अग्निहोत्री ,राजेश शर्मा आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं। इधर कुछ काव्यात्मक एकांकी भी लिखी गई हैं पदबंध एकांकी लिखने वालों में हरि कृष्ण प्रेमी ,सियारामशरण गुप्त, केदारनाथ मिश्र ,भगवती चरण वर्मा, सुमित्रानंदन पंत के नाम गिनाए जा सकते हैं ।आज तो मोनो ,ड्रामा, रेडियो ,रूपक ,फैंटसी आदि एकांकी के अनेक रूपों में लिखी जा रही है एकांकी साहित्य में भरपूर संभावनाएं नजर आती हैं।

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

सूरदास के पद के प्रश्न उत्तर, भाषा शैली व भ्रमरगीत

सूरदास के पद, भाषा शैली ,भ्रमरगीत
सूरदास हिंदी साहित्य के अनुपम प्रदीप नक्षत्र थे श्री कृष्ण के बाल्यकाल का सजीव वर्णन करने वाले वाले सम्राट के नाम से प्रसिद्ध सूरदास का जन्म 1478 में रेणुका क्षेत्र में हुआ।
जीवन भर श्री कृष्ण संबंधी पदों का गायन करने वाले सूरदास ने 105 वर्ष का लंबा जीवन जिया।

काव्यगत विशेषताएं---
** सूर के काव्य में भक्ति की पराकाष्ठा देखने को मिलती है।
 ***सूरदास जी कृष्ण के प्रति सत् भाव रखते हैं फिर भी इनके काव्य में वात्सल्य सुख की अनुभूति है।
** काव्य में श्रृंगार और वियोग की पीड़ा है।
*** श्रृंगार के वर्णन में सूरदास ने अन्य सभी कवियों को  पीछे छोड़ दिया है।
सूरदास की भाषा शैली की विशेषताएं***
***सूर के काव्य की भाषा ब्रिज है ।
****उसमें सहजता सरलता इतनी है कि गायक इसे अपनी ही रचना मानकर इसकी मिठास में खो जाता है ***काव्य में कहीं उलाहना है तो कहीं अपनत्व भाव ।
**उपमा अलंकार की छटा ऐसी है कि उसमें स्वयं उपमान बन जाता है ऊपर में सर्वोपरि दिखाई देता है ।***रूपक, उत्प्रेक्षा ,अनुप्रास ,वक्रोक्ति का सौंदर्य दर्शनीय है।
सूरदास के पद पद कहां से लिया गया है यह प्रश्न बार-बार पूछा जाता है---
सूरदास के पौधे सूरदास के काव्य सूरसागर में संकलित है।यह सूरसागर के नवम सर्ग से लिया गया है सूरसागर सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है इसमें श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है।
सूर के पदों को ध्यान में रखते हुए भ्रमरगीत की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं।
1.सूर के काव्य सूरसागर में संकलित है भ्रमरगीत में गोपियों की विरह पीड़ा को चित्रित किया गया है ।
2.प्रेम संदेश के बदले श्री कृष्ण के योग संदेश लाने वाले पौधों पर गोपियों ने व्यंग्य बाण छोड़े हैं व्यंग्य बाणों में गोपियों का हृदयस्पर्शी बुलाना है साथ ही श्री कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम भी प्रकट होता है।
3.सूरदास जी के भ्रमरगीत में निर्गुण ब्रह्मा का विरोध तथा सगुण ब्रह्मा की सराहना की गई है ।
4.वियोग श्रृंगार का मार्मिक चित्रण है।
5. गोपियों की स्पष्टता वाकपटुता से हरा देता है।6.व्यंग्यात्मक ता सर्वथा सराहनीय है।
7. एक निष्ठ प्रेम का दर्शन है।
8. गोपियों का वार्क चातुर्य उद्धव को मौन कर देता है ।9.आदर्श प्रेम की पराकाष्ठा और योग का पालन है ।
10. गोपियों का स्नेह अनूठा है।
कदो कारण भंवरेेेे का रंग हैजाताा
सूरदास के पदों में अपनी रचना का नाम पर मर गई थी क्यों रखा इसके निम्नलिखित कारण है
नंबर 1 कृष्ण भी काला है भ्रमर भी काला है उधर भी काला है इसीलिए उन्होंने अपनी रचना का नाम भ्रमरगीत रखा है।
******गोपियों ने योग मार्ग के बारे में कहा है---
1.गोपियों ने योग शिक्षा के बारे में परामर्श देते हुए कहा    है कि ऐसी शिक्षा लोगों को देना उचित है जिनका मन    चकरी के समान है ।
2.अस्थिर हो ।
3.चित में चंचलता हो।
 4.जिनका कृष्ण के प्रति स्नेह है अटूट नहीं है।
5. गोपियों के का दृष्टिकोण स्पष्ट है प्रेमाश्रय  स और स्नेह बंधन में बंधी हुई गोपियां किसी अन्य से प्रेम नहीं 6.कर सकती ।
7.किसी के उपदेश का उनके ऊपर कोई असर नहीं         पड़  रहा है चाहे वह उपदेश अपने ही प्रिय के द्वारा       क्यों ना दिया गया हो
8. यही कारण है कि अपने ही प्रिय श्री कृष्ण के द्वारा भेजा गया दूत का योग संदेश का सुनने में उनकी कोई रुचि ना रही।
मन चकरी पंक्ति में छिपा व्यंग्य
गोपिया कहती हैं कि उनका मन चकरी के समान अस्थिर नहीं है ।
यह योग का संदेश उनको सुनाना जिनका चित्त चंचल हो ।
जिन्हें श्री कृष्ण से प्रेम ना हो गोपियों का प्रेम तो स्नेह बंदी गुड से चिपकी हुई चिटियों के समान है।

** श्री कृष्ण उनके लिए हारिल की लकड़ी के समान है **हम गोपियां मन कर्म वचन सभी प्रकार से कृष्ण के प्रति समर्पित है।
** हम सोते जागते दिन रात उन्हीं का स्मरण करते हैं ।**हमें योग संदेश तो कड़वी ककड़ी की तरह प्रतीत होता है।
** हम योग संदेश नहीं बल्कि श्री कृष्ण का प्रेम चाहती     हैं इसीलिए गोपियां सुशांत से नाराज थी।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

रसखान का जीवन परिचय

रसखान का जीवन परिचय
***हिंदी साहित्य में भक्ति काल की कृष्ण काव्य धारा        के प्रमुख कवि रसखान जी हैं
****पूरा नाम- सैयद इब्राहिम रसखान रस की खान
****जन्म -सन 1573 ईस्वी में हरदोई जिले के पिहानी        ग्राम में हुआ।
***मृत्यु- इनकी मृत्यु वृंदावन में 1628 ईस्वी में हुई।
****पिता -एक संपन्न जागीरदार थे।
****इनका कार्य क्षेत्र एक कवि के रूप में कृष्ण भगत         के रूप में जाता।
****इनकी कर्म भूमि ब्रजधाम थी।
****कवि रसखान कृष्ण के कृष्ण भक्त कवि थे और ***प्रभु कृष्ण के सगुण और निर्गुण रूप से उपस्थित थे ****रसखान ने कृष्ण की सगुण रूप की लीलाओं का ****बहुत ही खूबसूरती से वर्णन किया है।

*****यह ने लीलाओं से वे इतने प्रभावित हुए कि पशु         पक्षी पहाड़ या नर रूप में ब्रज में ही पैदा होना              चाहते थे।

****मुसलमान होते हुए भी इन्होंने एक हिंदू देवता से        इस प्रकार अनन्या प्रेम किया इस कारण इनको रस       की खान कहा जाता है।
***रसखान जी के गुरु का नाम गोस्वामी विट्ठलदास जीता।
इनकी विद्वता उनके काव्य की अभिव्यक्ति में से जगजाहिर है रसखान को फारसी हिंदी संस्कृत का अच्छा ज्ञान था उन्होंने श्रीमत भगवत का फारसी में अनुवाद किया था।

प्रमुख रचनाएं ----सुजान रसखान और प्रेम वाटिका है ****इनका काल भक्ति काल
*** इनकी विधाएं कविता और सवैया छंद है ।
***सगुण भक्ति का वर्णन किया है ।
***भाषा शैली ब्रज फारसी और हिंदी है।
*** उनके जीवन में कभी रस की कमी न थी पहले             लौकिक रस आस्वादन करते रहे फिर              अलौकिक रस में लीन होकर काव्य रस से रहे। 
***उनके काव्य में कृष्ण की रूप माधुरी ,ब्रज महिमा राधा कृष्ण की प्रेम लीला ओं का उत्कृष्ट वर्णन मिलता है।
***** वे अपनी प्रेम की तन्मयता , भाव भी है लता और आसक्ति के उल्लास के लिए जितने प्रसिद्ध हैं ।***उतने ही अपनी भाषा की मार्मिक ता शब्द चयन तथा व्यंजक शैली के लिए भी है।
*** यह हमेशा दिल्ली के आसपास ही रहे तथा कृष्ण से संबंधित है प्रत्येक वस्तु पर वे मुग्ध हैं-----
कृष्ण के रूप सौंदर्य
वेशभूषा 
मुरली 
गाय गोवर्धन 
पर्वत
 यमुना नदी के तीर
 कदम के पेड़ ,लाठी ,कंबल आदि से

रसखान की प्रमुख पंक्तियां

निष्कर्ष्ष के रूप हम कह सकतेेे हैं रसखान सच मेंेंेंें ही कृष्ण भक्ति कि रस कीी खान थे।




सांग सम्राट लख्मीचंद का संक्षिप्त जीवन परिचय

सांग सम्राट लख्मीचंद का संक्षिप्त जीवन परिचय
1.हरियाणा सांग परम्परा में श्री लख्मीचंद का नाम सर्वाधिक प्रमुख हैं।
2.जिन्होंने हरियाणवी सांग को सर्वथा एक नवीन दिशा दी ।
3.लख्मी चंद का जन्म 15 जुलाई ,1930 में हरियाणा के सोनीपत जिले के जाटी कला गांव में हुआ।
4. इनके पिता का नाम उदमी राम था।
5. यह जाति से ब्राह्मण थे।
6. मानसिंह इन के गुरु थे।
7. इनकी शिष्य परंपरा में शिष्य थे -
1.मांगेराम
 2.भाईचंद सुल्तान 
3.पंडित चंदन लाल आदि 
8. इनके मुख में सरस्वती का निवास था।
9. वे तत्काल काव्य रचना कर लेते थे।
10. इसलिए आंसू कवि कहलाते थे।
11 अधिक पढ़े लिखे होने के बावजूद भी इनको वेदों पुराणों आदि का पूर्ण ज्ञान था ।
11.अतः इनके सांग से हमें पुराना ज्ञान प्राप्त हुआ है।
12. 18 वर्ष की आयु में उन्होंने पहली बार सोहन के अखाड़े में अपनी मधुर वाणी का परिचय दिया।
13. सन 1920 में इन्होंने अपनी अलग सांग मंडली बनाई ।
14.वे न केवल अच्छे गायक थे अपितु सफल अभिनेता भी थे।
15. इनको हरियाणा के सांगो  का सम्राट भी कहा जाता है ।
16.हरियाणा के निवासियों में यह दादा लख्मीचंद के नाम से प्रसिद्ध हैं ।
17.आज भी अनेकों विश्वविद्यालयों में विभिन्न मांगो पर शोध कार्य चल रही है तथा आज भी वह शोध का विषय बने हुए हैं।
18 इनके द्वारा रचित प्रमुख सांग हैं---
*-- हरिश्चंद्र
*-- नल दमयंती 
*---सत्यवान सावित्री
** द्रोपदी 
**सेठ ताराचंद 
**शकुंतला 
**भूप सिंह 
***चाप सिंह
** हीरामल जमाल 
**राजा भोज **चंद किरण 
**पद्मावत 
**नौटंकी 
**जानी चोर 
***शाही लकड़हारा इत्यादि ।
19.इसके अतिरिक्त इनके द्वारा रचित अनेक गीत और रागनियां लोगों को आज भी कंठस्थ हैं ।
इन्होंने अपने सांगों में सामाजिक रूढ़ियों और जड़ परंपराओं पर प्रहार किया ।
20.इन्होंने सांग परंपरा को स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनाया फलस्वरूप लंबे काल तक हरियाणा में सांगो की धूम मची रही ।
21. लख्मी चंद ने नारी के प्रति सदैव सहानुभूति मैं दृष्टिकोण अपनाया नल दमयंती शीर्षक सांग में राजा नल दमयंती को जंगल में त्याग कर चला जाता है दमयंती नल के बिना विरह की आग में जलने लगती है वह उसे गहने जंगल में ढूंढने का प्रयास करती हैं।
22.सांगी लख्मीचंद ने अपने सांग हरिश्चंद्र में रोहतास की मृत्यु पर उसकी मां को विलाप करते दिखाया है उस समय मानवता का अत्यंत का रोने का दृश्य उपस्थित होता है उसने पुत्र को सांप द्वारा काटे जाने पर उसका ह्रदय चित्कार कर उठता है।
निष्कर्ष के तौर पर ****
हम कह सकते हैं कि हरियाणा सां को एक नई दिशा प्रदान करने में पंडित लख्मीचंद ने जोदादा लखमीचंद जी की रचना: 
जगत मैं मोह लिए मेहर सुमेर जी माया नै बहुत घणे मारे हैं।
1 ब्रह्मा विष्णु शिव जी मोहे भस्मासुर का किया नाश।
चन्द्रमा कै स्याही लाद्यी इन्द्र नै भी भोगे त्रास।
नारद केसे ऋषि मोहे मरकट रूप धारया खास।
भृगु चमन यमदग्नि उद्दालक की भी मारी मति।
त्रिशंकू और नहुष मोहे उनकी करी बुरी गति।
बड़े बड़े ऋषि मोहे इसमै नहीं झूठ रत्ति।
वो नहुष दिया स्वर्ग तै गेर जी माया के कपट न्यारे हैं।
2 वशिष्ठ केसे मुनि मोहे विपलोदे गौतम लो लीन।
अत्रि मुनि कर्दम शम्भु मुनि सारे प्रवीन।
पुलिस्त केसे मुनि मोहे कर दिए तेरह तीन।
असचर निसचर दन्त दाने ऋषि मुनि ब्रह्मचारी।
शंकराचार्य विरहम पति जिनकी गई मति मारी।
प्रद्युम्न प्रतापी राजा सागर केसे हुए बलकारी।
जिसनै कंस सहसरबाहु का डर बल मैं परशुराम से हारे हैं।
3 दन्त वक्र जरासन्ध त्रिया पै मरे शिशुपाल।
श्रृंगी ऋषि दुर्वासा डूबे देख कै हूरां की चाल।
कौरव पांडव कट कै मरग्ये खून के भरे थे ताल।
त्रिया तेरे तीन नाम घर घर मारे कई करोड़।
कुरूक्षेत्र पै राड़ जागी शील का शीश दिया तोड़।
रूप धारण ऐसा किया पड़ी पड़ी तड़फै थी खोड़।
व लिए सूरमां काल नै घेर जी सिर बाणो से तारे हैं।
4 त्रिया ही के मोह मैं आकै माटी मैं मिलाए भूप।
पम्पापुर मैं बाली मोहे गेर दिए अधरूप।
त्रिया ही नै नारद मोहे बन्दर का बनाया रूप।
नागनी से हो नार बुरी रावण कुंभकर्ण खोए।
सारा कुटम्ब खाक मैं मिला दिया बाकी रहा न कोए।
त्रिया की बातां मैं आकै पाछै मूण्ड पकड़ कै रोए।
कहै लखमीचंद नैना की शमशेर जी मोह फांसी मैं हारे हैं।
अब आपके सामने एक रचना गुणी सुखीराम जी की प्रस्तुत है: 
माया नै ब्होत घणें मारे जी,जग मै मोहे मेहर सुमेर है।
1 विष्णु ब्रह्मा शिव मोहे भस्मासुर का किया नास।
चन्द्रमा के दाग लाग्या इन्द्र नै भी भोगी त्रास।
कुछ नारद के से मुनि मोहे मरकट रूप धारा खास।
भृगु चमन जमदग्नि उद्दालक की मारी मति।
श्रृंगी ऋषि दुर्वासा मोहे जन की करी बुरी गति।
त्रंशकु नाहुख मोहे इस में नहीं झूठ रति।
वे दिये स्वर्ग से गेर है, माया मैं कपट भारे जी।
2 वशिष्ठ से मुनि मोहे पीप्लाद गौतम से लीन।
अत्रि मुनि कर्दम मुनि स्वयंभु मुनि प्रवीन।
पुलीस्त मुनि कश्यप ऋषि कर दिए तेरा तीन।
दाना देत असुर निशाचर ऋषि मुनि ब्रह्मचारी।
शुक्राचार्य बृहस्पति जन की भी मति मारी।
सर्वदमन प्रताप भलु संद से वै राजा भारी।
किया सहस्त्र बाहु का ढेर है,बल परशुराम आरे जी।
3 बलोचन बाणा सुर मारे त्रिया का धार कै रूप।
त्रिया नै दशरथ मोहा गेर दिया अन्ध कूप।
सिन्ध उपसिन्ध दोनु लड़े छाया गिनी ना धूप।
श्रृंगी ऋषि पारा ऋषि त्रिया के कारण रोये।
जिस घर पड़ा अन्धेर है,सिर बाणो से तारे जी।
4 दंतवकर जरासंध त्रिया पै मरे थे हाल।
भोमासुर कंस राजा त्रिया नै मोहा शिशुपाल।
कैरू पांडू कुटुम्ब खपे खून का भरा था नाल।
माया तेरे तीन नाम रूप धारे मारे कई करोड़।
कुरूक्षेत्र मैं राड़ मची सब का सिर दिया तोड़।
ऐसी मोहनी डारी जिनकी पड़ी पड़ी तड़फी खोड़।
सब लिया काल ने घेर है, जो बली कोड़े सारे जी।
5 जन्मेजय नै कुबद करी त्रिया कारण देखो नै यार।
अठारह ब्राह्मण काटे जिसने होम बीच दिया डार।
तप जप सत योग खोया लाज शर्म दीन्ही तार।
तन मन धन विद्या ज्ञान लूटा राज पाट गये छूट।
शूरा बन्जू ध्यानी ब्रह्मानन्द रश गये घूंट।
गुणी सुखीराम कह कलजुग मैं नेम धर्म गये टूट।
नैनो की मार शमशेर है, आखिर नरक बीच डारे जी।

ये दोनों एक ही रचना हैं लेकिन दो कवियों की छाप है इनमें गुणी सुखीराम जी का जन्म सन् अठारह सौ सत्तावन में हुआ और दादा लखमीचंद जी का जन्म सन् उन्नीस सौ तीन में हुआ। गुणी सुखीराम जी का देहांत सन् उन्नीस सौ पांच में हुआ और दादा लखमीचंद जी का देहांत सन् उन्नीस सौ पैंतालीस में हुआ। विद्वान् लोग टेक से ही पता लगा लेते हैं कि इस तरह की टेक गुणी सुखीराम जी के समय की है और दादा लखमीचंद जी के समय की नहीं। इसलिए दादा लखमीचंद जी ने छाप काट कर अपनी छाप लगाकर नहीं गाई थी।उनको बदनाम किया जा रहा है। बदनाम करने पर भी उनकेे वंशज चुप हैं तो इससे स्पष्ट है कि दादा लखमीचंद महाचोर थे।

रविवार, 19 अप्रैल 2020

नेट परीक्षा 2020

नेट परीक्षा 2020 संबंधी महत्वपूर्ण बातें

1.*UGC NET June Exam 2020: यूजीसी नेट परीक्षा के लिए बढ़ी आवेदन की अंतिम तिथि*

2.नई दिल्ली: NTA NET JUNE 2020 परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया 16 मार्च, 2020 से शुरू हाेे चुकी थी, और यह आवेदन प्रक्रिया 16 अप्रैल, 2020 तक समाप्त होनी थी। जिसकी अंतिम तिथि को अब बढ़ाकर 16 मई, 2020 कर दिया गया है। 
3.आपको बता दें कि COVID-19 महामारी के कारण अभिभावकों और छात्रों को हुई कठिनाइयों को देखते हुए राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी ने तारीखों को संशोधित किया है। NTA ने नेट जून, 2020 परीक्षा के साथ विभिन्न परीक्षाओं को स्थगित किया गया है। जिनकी जानकारी नीचे दिए गई नोटिफिकेशन में अंकित है।

4.यूजीसी नेट परीक्षा का आयोजन असिस्टेंट प्रोफेसर की पात्रता और जूनियर रिसर्च फैलोशिप के लिए होता है। उम्मीदवार इन दोनों के लिए एक साथ आवेदन कर सकते हैं।
5. नेट की परीक्षा 15 जून से 20 जून, 2020 तक आयोजित की जाएगी और इसका रिजल्ट अगस्त 2020 में आने की संभावना है। पिछले कुछ वर्षों से यह परीक्षा ऑनलाइन माध्यम से आयोजित की जा रही है। पहले यह परीक्षा ऑफलाइन माध्यम से ली जाती थी।

6.अब इस परीक्षा का आयोजन दो पालियों में किया जाता है। पहली पाली की परीक्षा सुबह 9:30 से दोपहर के 12:30 तक तथा दूसरी पाली की परीक्षा 2:30 से 5 बजे तक होती है।

7.इस परीक्षा में पहला पेपर सभी उम्मीदवारों के लिए समान होता है। पहले पेपर में 100 नंबर के कुल 50 प्रश्न पूछे जाते हैं। वहीं दूसरा पेपर उम्मीदवार के विषय से संबंधित होता है। इसमें 200 नंबर के कुल 100 प्रश्न होते हैं।
8. यह सभी प्रश्न बहुविकल्पीय होते हैं तथा निगेटिव मार्किंग नहीं होती।
सभी नेट परीक्षार्थियों के लिए अग्रिम शुभकामनाएं
हिंदी नेट परीक्षार्थियों के लिए यूट्यूब चैनल अब कैसे से जुड़े।
जिनके लिंक इस प्रकार से हैं।
हिंदी साहित्य को समर्पित चैनल
ab kese 
https://www.youtube.com/channel/UC0JCD4VSHenyRju2dwKkBlA

मातृभाषा निबंध

मातृभाषा निबंध
हिंदी मेरी पहचान
हिंदी मेरा अभिमान
भूमिका/प्रस्तावना--देश का विकास और राष्ट्र चरित्र मातृभाषा में सुरक्षित है इस संबंध में महापुरुषों ने मातृभाषा के महत्व को स्वीकार किया है स्वामी दयानंद सरस्वती विवेकानंद तिलक मदन मोहन मालवीय जी ने ही नहीं विदेशी विद्वान मैक्समूलर ने भी हिंदी की तारीफ के पुल बांधे हैं जापान चीन और रूस जैसे प्रगति मान देशों ने भी अपनी मातृभाषा को महत्व दिया है और निरंतर प्रगति मान है ना जाने क्यों भारत ही ऐसा देश है जहां के निवासियों को अपना कुछ अच्छा नहीं लगता अपितु उन्हें विदेशी वस्तु अच्छी लगती हैं उनकी संस्कृति आकर्षित करती है इतना ही नहीं विदेशी वस्तुओं को अपनाकर भारतीय गौरव महसूस करते हैं आज सहज सरल भाषा के प्रति घटती रुचि उनके इस सोच का ही परिणाम है।
मातृभाषा का इतिहास/प्रमुख कारण
1.जिस समय देश स्वतंत्र हुआ उस समय लोगों में अपनी मातृभाषा के लिए अच्छी भावनाएं थी इसलिए हिंदी के विकास के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए गए मात्रिभाषा के सुधार के लिए नीतियां बनाई गई।
2. राष्ट्रभाषा वह मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया गया ताकि अंग्रेजी के ज्ञान के बिना परेशानी नहीं होगी हिंदी भाषी प्रदेशों की आकांक्षा देखते हुए प्रिय भाषा पर आधारित राष्ट्रीय नीति बनाई गई।
3.अंग्रेजी का ज्ञान न रखने वाले शिक्षित लोग स्वयं को है समझने लगे।
4.लोगों के मन में यह भाव पनपने लगा कि वैश्वीकरण के कारण अंग्रेजी का ज्ञान ही उनकी प्रगति में सहायक हो सकता है।
5.इसी विचारधारा ने पब्लिक स्कूलों को हवा दी पब्लिक स्कूलों की संख्या बढ़ी और इतनी बड़ी कि कई गुना हो गई इन स्कूलों में संपन्न परिवारों के बच्चे प्रवेश पाने लगे इन्हें उच्च शिक्षा तथा उत्तम शिक्षा का केंद्र मानकर सामान्य जन भी येन केन प्रकारेण इन्हीं स्कूलों में अपने बच्चों को भेजने का प्रयास करने लगे।
6.इसके विपरीत सरकारी स्कूलों में केवल अति सामान्य परिवारों के बच्चे पढ़ने के लिए विवश लें और तड़प कर रह गए पब्लिक स्कूलों के प्रति आकर्षण को देख दूरदराज के क्षेत्रों में पब्लिक स्कूल खुल गए जिनमें हिंदी भाषा को कोई महत्व नहीं दिया जाता है।
7.इस तरह हिंदी या अन्य मात्री भाषाओं की दुर्दशा होती गई।
8.हिंदी भाषा के सुधार के स्थान पर अंग्रेजी को सवारने में युवा वर्ग लग गया।
9.हिंदी को है समझने लगे अब आज का छात्र अपनी प्रगति अपना उज्जवल भविष्य अंग्रेजी में ही देखता है।
10.वह विचार समाप्त हो गया कि अपनी मातृभाषा के द्वारा बच्चे का विकास संभव है उसके लिए भले ही वह रट्टू तोता की तरह अंग्रेजी के वाक्य रखने पड़े।
भले ही अपने देश में हम विदेशी कहे जाने लगे।
11.इसी तरह हमारी मातृभाषा का पत्र हमने स्वयं पथरीला कर लिया ऐसा करने से सरकार ने भी खूब सहयोग दिया भले ही इसमें उसकी व्यवस्था रही हो।
उप संहार
यद्यपि अंग्रेजी के महत्व को नकारा नहीं जा सकता तथापि अपनी मातृभाषा की ओर भी ध्यान देना चाहिए नहीं तो हम अपने ही देश में विदेशी हो जाएंगे इसका परिणाम सबसे अधिक अपनी संस्कृति पर पड़ेगा और पड़ रहा है अपनी सनातन संस्कृति का अस्तित्व न रहने पर हम विश्व स्तर पर लताड़ा जाएंगे यही कारण था महात्मा गांधी जैसे शुविक मातृभाषा के महत्व को नानकार सके उनका कहना था कि मातृभाषा को छोड़कर हम दूसरे के बीच लाग बन जाएंगे अब तो बस यही कह सकते हैं कि परमात्मा ही हमें सद्बुद्धि दे। कहा भी जाता है कि

अपनी माता का स्थान हम किसी भी चाची ताई यामोशी को नहीं दे सकते उसी प्रकार अपनी मातृभाषा का स्थान किसी अन्य विदेशी भाषा को नहीं दे सकते।

छुट्टियों का सदुपयोग निबंध

छुट्टियों का कैसे करें सदुपयोग निबंध
प्रस्तावना-समय सतत प्रवाह मान है जिसे रोका नहीं जा सकता मनुष्य जीवन की सार्थकता समय के सदुपयोग में है जिस व्यक्ति ने समय का सदुपयोग नहीं किया समय उसका सब कुछ नष्ट कर देता है क्षण क्षण मूल्यवान है क्षण क्षण का सदुपयोग करना उचित है समय की गति बड़ी विचित्र होती है मनुष्य चाहता कुछ और है होता कुछ और है।उतार और चढ़ाव जीवन के हिस्से यह स्वाभाविक भी है इसमें खुद को प्रभावित न होने दें परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को डालने की कोशिश करें ।
आज इसी विषय पर समय का सदुपयोग या छुट्टियों में समय हम कैसे बिताएं ।समय का उपयोग किस प्रकार से किया जा सकता है। छुट्टियों में समय का सदुपयोग पर निम्नलिखित बिंदुओं है।
क्या ना करें।

1.सबसे पहले आपको बिना किसी शर्त के खुद से प्रेम करना होगा पिछली गतिविधियों को सोच कर अपने आप को कोसने की बजाय अपनी कमजोरियों की बजाय अपनी ताकत पर ध्यान दीजिए कमजोरियों की सूची बनाइए अपने आप को अच्छी तरह से समझाइए कि क्या-क्या उपलब्धियां रही क्या क्या कमी आ रही।

2.उपलब्धिया चाहे जितनी छोटी क्यों ना हो उसे बड़ी मानी।
प्रत्येक सफलता को सेलिब्रेट करें और अपनी एनर्जी का उपयोग करते हुए पॉजिटिव बातें सोचे।

3.नेगेटिव सोच तथा नकारात्मक सोच से स्वयं को दूर रखें।
   अच्छी स्मृतियां बनाएं।

4.पूरा संसार संभावनाओं से भरा हुआ है खुद को संभावनाओं के संसार में उतारे अपनी इच्छाओं के बारे में विचार करें यह भूल जाए कि लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं कुछ रचनात्मक करें ।
5.अपने अंदर की आवाज सुनें।

6.अपनी कमजोरियों की लिस्ट बनाएं तथा इस समय का सदुपयोग करते हुए कमजोरियों पर काम करना शुरू करें।
7.मनुष्य में ना पड़े सबसे पहला नियम अनुशासन बद्ध तरीके से जी हैं जिसकी शुरुआत सुबह उठने से लेकर रात होने तक उसका पालन करें अगर उचित प्रकार से पालन ना उसके तो छोटी-छोटी सजा भी अपने आप को दें जैसे अपनी पसंद के गाने ना सुने ना पूरा दिन अपनी मनपसंद चीज ना खाना इत्यादि।
क्या करें इस समय में-
1.जो आपको आता है अपनी उस कला की पहचान करें।
कला की पहचान करने के पश्चात अपनी कला को निखारने की कोशिश करें जैसे चित्रकला जैसे ड्रॉइंग जैसे संगीत वादन इत्यादि।
2.कुछ रचनात्मक करें जो घर में फालतू सामान पड़ा है उनको इकट्ठा करें और उनसे कुछ नया बनाने की कोशिश करें जैसे चूड़ियां चूड़ियों से कुछ बनाना जैसे गत्तों से कुछ बनाना कपड़े से कुछ बनाना इत्यादि।
3सीमित साधनों में से ही नया कोई खेल निकालें।
पूरा परिवार इकट्ठा होकर किसी एक टोपी का को सुबह सेलेक्ट करें उस पर अपने मन के विचार लिखें तथा शाम को इकट्ठे होकर एक दूसरे के विचार सुने सम्मान करें उनका और कुछ मुख्य बिंदु उसमें से निकाली।
4.पूरा परिवार मिलकर के अंतरा अंताक्षरी खेले अंताक्षरी में यह नहीं है कि सिर्फ गीतों की अंताक्षरी हो यह अंताक्षरी स्थानों के नामों की राज्य राजधानियों के नाम इसके अलावा हिंदी शब्दकोश तथ इंग्लिश शब्दकोश से संबंधित हो सकती है।
5....30 तक पहाड़े याद करें टेबल्स को याद करें स्क्वेयर 20th की याद करें, इसको एक प्रतियोगिता के रूप में लें कि कौन कितना जल्दी याद कर सकता है।
कहानियां पड़े सुने जीवनी पढ़ें तथा उनका विश्लेषण करें अथवा समीक्षा करके लिखकर जरूर कि आपने क्या सीखा इसमें क्या सकारात्मक बात है और क्या नकारात्मक बात है।
6.प्रतिदिन की समाचार पड़े या सुनी उसके बाद शाम को समाचारों का विश्लेषण करें मुख्य पांच समाचारों का विश्लेषण करिए और अपने लेखन शैली का मूल्यांकन कीजिए कि आपके लिखने में कैसे शब्दों का प्रयोग कर पा रही हैं इससे आपकी लेखन कला में सुधार होना शुरू होगा था अपने अनुभव को अच्छे ढंग से आप लिख पाएंगे।
7.परिवार के सदस्य मिलकर विचार गोष्ठी का आयोजन करें।
8.बोलने की कला में सुधार करें भाषण कला में निपुणता हासिल करें।
9.अपने व्यक्तित्व को निखारने का भरसक प्रयास करें।
10.शारीरिक व्यायाम करें अपनी आंतरिक शक्तियों का विकास करें।
11.वर्तनी सुधार के लिए श्रुतलेख या फिर डिक्टेशन माता पिता बोले तथा वर्तनी सुधार प्रतियोगिता का आयोजन घर के बच्चों में ही करें तथा उसमें इनामी प्रतियोगिता करवाएं और फल स्वरुप इनाम भी प्रदान करें।
12.इस समय में अच्छी पुस्तकें पढ़ने का यह सर्वोत्तम समय है पढ़कर के छोड़िए नहीं उस पर की समीक्षा जरूर करें अच्छे और बुरे पॉइंट्स अलग अलग से लिखें।
13.डायरी लिखें तथा अलग-अलग विषय पर वर्गीकरण कीजिए अपने द्वारा कहानी कविता और अपने द्वारा निर्मित ही चुटकुले लिखें तथा जानकारी बढ़ाएं।
14.कोई   हस्तकला  सीखे।
15.दादा दादी के साथ समय व्यतीत करें उनके जीवन केअनुभव अश्विनी उनको लिखें अपनी अलग डायरी में तथा उनके हस्ताक्षर करवाएं या वह अनपढ़ हो तो उनका अगर अंगूठा जरूर लगवाएं जब वह नहीं होंगे तो उनकी यादें आप समेट कर रख सकते हैं।
16.अपनी वर्तनी में सुधार करें चाहे वह इंग्लिश की हो या हिंदी की व्याकरण संबंधी अशुद्धियों पर ध्यान दें।
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करें जैसे जीके रिजनिंग जर्नल मैप इत्यादि।
17.ऑनलाइन जीके क्वीज खेलें।
18.अपने अच्छे भविष्य के लिए इंग्लिश पर मजबूती या पकड़ बनाए कोई एक दिन ऐसा निश्चित करें जिसमें पूरा परिवार इंग्लिश बोले।
19.पेंटिंग करें।
20.स्पीकिंग कोर्स ज्वाइन करें।
21.प्रैक्टिकल नॉलेज भी हासिल करें जैसे बैंक में भरे जाने वाले फार्म कैश बुक चेक बुक बचत के क्या महत्व हैं कैसे पैसे जमा करवाए जाते हैं कैसे निकाले जाते हैं यह सब जाने।
22.अपने पैतृक गांव की जानकारी एकत्रित करें उस क्षेत्र विशेष की प्रमुख उपलब्धियां तथा उसमें से प्रमुख व्यक्तित्व जिन्होंने कुछ अच्छा किया है उसे सूचीबद्ध करें तथा नया रिसर्च पेपर लिखें ।
23अपनी परंपराओं और और संस्कारों की जानकारी इकट्ठा करें तथा मूल्यांकन करें कि वह आज के संदर्भ में कितनी सही हैं तो कितनी गलत हैं।
24.माताओं केके साथ रहकर पाक कला में निपुणता हासिल करें सलाद व स्नेक्स की ट्रेनिंग ले नई नई डिशेस बनाने की कोशिश करें।
25.घर को पुनः व्यवस्थित करें।
26.पूरे सामान को अच्छे से रखें अपने अलमारियों को विश व्यवस्थित करें।
27.विविध विषयों के शो लिखित निर्मित नोट्स तैयार करें आलेख व डायग्राम बनाएं।
28.15 अगस्त, 26 जनवरी, अध्यापक दिवस, अनुशासन ,प्रेम दिवस विविध विषयों पर शायरी लिखे या अन्य लेखकों की शायरी को एकत्रित करें और उन्हें स्मरण करने की कोशिश करें जिससे आपकी भाषण कला में काफी सुधार होगा
29इंटरनेट की जानकारी हासिल करें ग्राफिक डिजाइनिंग इन शार्ट टाइम कोर्स ज्वाइन करें ऑनलाइन बैठ कर के
30. कुछ न कुछ 
 स्किल डेवलपमेंट करें।
निष्कर्ष/उप संहार
निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि समय निरंतर गतिमान है इसे रोका नहीं जा सकता। यह किसी को क्षमा नहीं करता है जो इस समय की इज्जत नहीं करता है समय उसकी भी इज्जत नहीं करता है। राजा -रंक ,संत -असंत ,गरीब -अमीर आदि सभी समय की काल में समा जाते हैं ।इसलिए यह समय जो हमें मिला है उसमें ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करें,अभ्यास करें। ज्यादा से ज्यादा इसका सदुपयोग करें। करणी है नहीं तो अंत में पश्चाताप ही हाथ लगेगा महापुरुष संदेश देते हैं कि जीवन का बीता हुआ प्रत्येक शमशान की ओर ले जा रहा है इसे समझाते हुए एक कवि ने कहा है कि

गूंजते थे जिनके ढंग के से जमीन ओ आसमान
चुप पड़े हैं मकबरे में हूं हां कुछ भी नहीं है।

इसी संदर्भ में कवि ने और समय के महत्व को समझाया है-

रात बिताई सोय के ,दिवस बीता खाए 
हीरा जन्म अनमोल है, ऐसे बिताई जाए

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

बी .ए .हिंदी प्रथम वर्ष के वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तरी

बी .ए .हिंदी प्रथम वर्ष के वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तरी। विगत से पेपर में आए हुए प्रश्न-
इंदिरा गांधी यूनिवर्सिटी, मीरपुर ,हरियाणा
मई ,2019
प्रश्न संख्या 1: नाटक में खड़क धारणी कौन है ?
उत्तर :नाटक में खड़क धारणी नायक की बहन मंदाकिनी है।


प्रश्न संख्या 2: ध्रुवस्वामिनी नाटक के लेखक का नाम क्या है?
उत्तर:जयशंकर प्रसाद है।

प्रश्न संख्या 3 : सूरदास की प्रमुख रचनाओं का नाम
 क्या है?
उत्तर: सूरदास की प्रमुख तीन रचनाएं हैं-
1. सूरसागर
2. सूरसरावली
3. साहित्य लहरी।

प्रश्न संख्या 4 कबीर किस धारा के प्रमुख कवि हैं‌?
उत्तर        कबीर निर्गुण भक्ति धारा के कवि हैं।
प्रश्न संख्या 5  सम्राट राम के भाई का क्या नाम है।
उत्तर        चंद्रगुप्त

प्रश्न संख्या  6.अपने मुंह मियां मिट्ठू मुहावरे का क्या अर्थ है?
 उत्तर‌:     अपनी प्रशंसा स्वयं करना ।

प्रश्न संख्या 7    मिट्टी का माधो लोकोक्ति का अर्थ बताइए ।
    उत्तर           मिट्टी का माधो का अर्थ है निरा मूर्ख।

    प्रश्न संख्या 8.   चंद्रगुप्त के पिता का क्या नाम है ?
        उत्तर      चंद्रगुप्त के पिता का नाम समुद्रगुप्त है।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र
b.a. प्रथम वर्ष सेमेस्टर 2
सब्जेक्ट हिंदी पेपर में 2019
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक , हरियाणा
b.a. प्रथम वर्ष ,सेमेस्टर 2 , प्रश्न पत्र पेपर मई,2019
सब्जेक्ट- हिंदी अनिवार्य
1.ध्रुवस्वामिनी नाटक के लेखक का नाम लिखिए।        ---    जयशंकर प्रसाद।

2.लातों के भूत बातों से नहीं मानते मुहावरे का अर्थ         लिखिए।
   ---*बिना दंड के कार्य न करना।

3.विकट शब्द का अर्थ लिखिए।
  ---*  विकट शब्द का अर्थ है कठिन।

4.चंद्रगुप्त की दो विशेषताएं लिखिए।
  ---*1. ध्रुवस्वामिनी नाटक का नायक था।
    ---*2.   सुशासन ,सच्चा प्रेमी ,स्त्रियों का सम्मान                       करने वाला।

5.आंखों के तारा मुहावरे का अर्थ लिखिए।
   ---*  बहुत प्यारा।

6.राम गुप्त की दो विशेषताएं लिखिए।
  ---*    1.कायर , विलासी एवं कामुक।
  ----*     2.अदूरदर्शी एवं अविवेकी राजा

  7.ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
   ---*   ध्रुवस्वामिनी नाटक जयशंकर प्रसाद का स्त्री                 प्रधान    नाटक है ।कथावस्तु तीन भागों में                   विभाजित ,पात्रों की संख्या सीमित                            ,संकलनत्रय   की उपयुक्त, संवाद योजना                      पात्रानुकूल,   गीति           योजना                                सटीक,भाषा शैली सरल ,रंगमंच की दृष्टि                        से एक सफल नाटक है।

     8.     ध्रुवस्वामिनी किसकी वाग्दत्ता थी ।
    ---*    चंद्रगुप्त की





शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

तुलसीदास कृत रामचरितमानस के मुख्य बिंदु

तुलसीदास कृत रामचरितमानस के मुख्य बिंदु
1.रामचरितमानस भक्ति काल का सुप्रसिद्ध ग्रंथ है।
2.तुलसीदास की रामचरितमानस से सबसे प्रसिद्ध रचना है
3.यह अवधी भाषा में लिखी गई है।
4.यह एक प्रबंध काव्य है।
5.इसमें दोहा और चौपाई छंदों का प्रयोग किया गया है।
6.1074 दोहों का प्रयोग इसमें है।
7.मुख्य रस से इसमें भक्ति रस है।
8.रामचरितमानस की रचना संवत 1631 में चैत्र शुक्ल रामनवमी मंगलवार को हुआ।
9.इसकी रचना में कुल 2 वर्ष 7 महीने 26 दिन लगे।
10.मानस में सात कांड हैं जो इस प्रकार से हैं।
1.बालकांड ।
2.अयोध्या कांड 
3.अरण्य कांड 
4.किष्किंधा कांड
5. सुंदरकांड 
6.लंका कांड 
7.उत्तरकांड।
रामचरितमानस के विषय में विभिन्न विद्वानों के मत
1.आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रामचरितमानस को लोकमंगल की साधना अवस्था का काव्य माना है।
2.अयोध्या कांड को रामचरितमानस का हृदय स्थल कहा जाता है इस कांड की चित्रकूट सभा को आचार्य 3.रामचंद्र शुक्ल ने एक आध्यात्मिक घटना की संज्ञा दी है।
4.चित्रकूट सभा में वेद नीति लोक नीति एवं राजनीति तीनों का समन्वय दिखाई देता है।
5.रामचरितमानस की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्वायत्त सुखय के साथ-साथ लोकगीत एवं लोक मंगल के लिए किया है।
6.रामचरितमानस के मार्मिक स्थल निम्नलिखित हैं।
1.राम का अयोध्या का त्याग और पति के रूप में वन गमन
2चित्रकूट में राम और भरत का मिलन।
3.सबरी का आतिथ्य।
4.लक्ष्मण को शक्ति लगने पर राम का विलाप।
5.भरत की प्रतीक्षा।
7.आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है तुलसीदास का संपूर्ण काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।
8.रामचरितमानस पर सर्वाधिक प्रभाव अध्यात्म रामायण का पड़ा है।
9.तुलसीदास ने सर्वप्रथम मानस को रसखान को सुनाया था।
10.रामचरितमानसआज भी पूरे भारतवर्ष में सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ग्रंथ है।

सूफी की उत्पत्ति व सूफी संप्रदाय

आधुनिक काल में नई कविता

आधुनिक काल में नई कविता,ौ
१.नई कविता नाम अजय को दिया हुआ है अपनी एक रेडियो वार्ता में उन्होंने इस पद का सर्वप्रथम प्रयोग किया था जो बाद में नए पत्ते के जनवरी-फरवरी अंक 1953 में नई कविता शीर्षक से प्रकाशित हुई।
२.नई कविता का आरंभ सन 1954 में जगदीश गुप्त द्वारा संपादित नई कविता पत्रिका के प्रकाशन से माना जाता है।
३.बच्चन सिंह नई कविता का आरंभ सन 1951 से मानते हैं इनके अनुसार नई कविता प्रयोगवादी कविता का एक परिष्कृत रूप है।
४.मुक्तिबोध ने लिखा है नई कविता वैविध्य मां जीवन के प्रति आतम चेतन व्यक्ति की प्रतिक्रिया है नई कविता का स्वर एक नई विविध है।
५.डॉ धर्मवीर भारती ने लिखा है नई कविता प्रथम बार समस्त जीवन को व्यक्ति या समाज इस प्रकार से तंग विभाजन ओं के आधार पर मैं माफ कर मूल्यों की सापेक्ष स्थिति में व्यक्ति और समाज दोनों को मापने का प्रयास कर रही है।
६.डॉ रामस्वरूप चतुर्वेदी ने लिखा है नई कविता में समग्र मनुष्य की बात ही नहीं कही गई वरन मनुष्य की समग्र अनुभव खंडों का संयोजित किया गया है।
७.विजय नारायण साही ने नई कविता में लघु मानव की प्रतिष्ठा की है ‌।
९.नईकविता में दो प्रमुख तत्व हैं -
१.अनुभूति की प्रमाणिकता
२ बुद्धि मूलक यथार्थवादी दृष्टि 
१०.नई कविता में कैक्टस वाद का जन्म होता है नई कविता में कैक्टस प्रतीक रूप में अपनाया गया है जो अदम्य उत्साह जीवन आकांक्षा 1 घंटा का प्रतीक है। प्रमुख कवि --सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अजेय ,मलयज ,मुक्तिबोध ,शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता भवानी प्रसाद मिश्र ,केदारनाथ सिंह इत्यादि।
नई कविता :- महत्वपूर्ण आंदोलन

1.नयी कविता-"अज्ञेय"
2.नवगीत-"राजेन्द्र प्रसाद सिंह" (डॉ शम्भूनाथ सिंह)
3.साठोत्तरी  कविता -"जगदीश गुप्त"
4.ताजी कविता-"लक्ष्मीकांत वर्मा"
5.तट की कविता-"राम बचन राय"
6.अगीत-"रंगनाथ मिश्र"
7.बीट गीत -"राजकमल चौधरी"
8.अस्वीकृत कविता-"श्रीराम शुक्ल"
9.सहज कविता-"रविन्द्र भ्रमर"
10.सनातणी सूर्योदय कविता-'विरेन्द्र कुमार जैन"
11.कैप्सूल वाद-"डॉ ओमकार नाथ त्रिपाठी"
12. अकविता-"श्याम परमार"
13.आज की कविता-"हरीश मैदानी"
14.साम्प्रतिक कविता-"श्याम नारायण"
15.युयुत्शावादीकविता-"शलभ श्री राम सिंह"
16.निर्दिशांयामी कविता- "डॉ सत्यदेव राजहंस"
17.वाम/प्रतिबद्ध कविता-"डॉ परमानंद श्रीवास्तव'
18.नवप्रगतिशील-"नवलकिशोर" 


Haryanvi sahitya ,हरियाणवी साहित्य में कुछ वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तरी

प्रश्न नंबर 1 हरियाणवी साहित्य का इतिहास पुस्तक के लेखक का नाम बताइए|
उत्तर रघुवीर सिंह मथाना और डॉक्टर बाबूराम
प्रश्न दो हरियाणा को पश्चिमी हिंदी का प्रमुख उपभाषा मानी जाती है यह कथन किसका है|
उत्तर डॉक्टर नानक चंद शर्मा का
प्रश्न नंबर 3 हरियाणवी सॉन्ग परंपरा की शुरुआत कब हुई|
उत्तर 13वीं शताब्दी में
प्रश्न संख्या 4 किसे सागो का पितामह कहा जाता है|
उत्तर किशनलाल भाट
प्रश्न संख्या 5 मेवाती जन-जन कवि होने का गौरव किसे प्राप्त है|
उत्तर सादुल्लाह
प्रश्न संख्या 6 सादुल्ला ने मेवाती भाषा में महाभारत की रचना की उस रचना का नाम लिखिए।
उत्तर पांडवान का कड़ा
प्रश्न संख्या 7 सांग सम्राट किसे कहा जाता है।
उत्तर पंडित लख्मीचंद को।
प्रश्न संख्या 8 संत सिपाही महाकाव्य के रचयिता कौन है।
उत्तर उदयभानु हंस।
प्रश्न संख्या 9 हरियाणवी रामायण के रचयिता का नाम बताइए।
उत्तर रामेश्वर दयाल शास्त्री।
प्रश्न संख्या 10 हरियाणवी गीता के रचयिता का नाम बताइए।
उत्तर डॉक्टर नानक चंद।
प्रश्न संख्या 11 हरियाणा का प्रथम सफल उपन्यासकार किसे माना जाता है।
उत्तर मोहन चोपड़ा को।
प्रश्न संख्या 12 हरियाणवी गीतांजलि के रचयिता कौन हैं।
उत्तर भारत भूषण सांघीवाल

फैसला कहानी लेखिका मैत्रेयी पुष्पा

फैसला कहानी लेखिका मैत्रेयी पुष्पा

गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

फैसला कहानी लेखिका मैत्रेई पुष्पा के प्रमुख बिंदु

फैसला कहानी लेखिका मैत्रेई पुष्पा के प्रमुख बिंदु
फैसला कहानी हिंदी की प्रसिद्ध कहानीकार मैत्रेई पुष्पा की प्रसिद्ध कहानी है इसके प्रमुख पात्र वसुमति ,ईसुरिया, रणवीर है जिनकी निम्नलिखित विशेषताएं हैं।
वसुमति की चारित्रिक विशेषताएं
1. परंपरागत ग्राम वधू-हालांकि बसंती ग्राम प्रधान सुनी जाती है परंतु अपने रुतबे और दायित्वों का प्रयोग न करके एक घरेलू श्री पत्नी से अधिक नहीं बन पाती है क्योंकि उसके पद का रुतबा दायित्व तो उसका पति रणवीर ही निभाता है वह किसी रबड़ स्टैंप की तरह अपने पति द्वारा बताई गई जगह पर ही दस्तखत करती है वह अपने घरेलू दायित्वों को परंपरागत ग्राम वधू की बात ही निभाती है
2 पति से भयभीत-वसुमति पत्नी के रूप में अपने पति से डरती है यही कारण है कि जब उसका पति उसे पंचायत से ले आता तो चुपचाप चली आती हैं तथा फिर उसे पंचायत में न जाने को कहता है तो वह उसका विरोध भी नहीं करती।
3. ग्रामीण स्त्रियों के रोष का शिकार-ग्राम की स्त्रियों ने उसे इसलिए वोट दी थी कि वह एक स्त्री होकर स्त्री सशक्तिकरण पर काम करेगी परंतु उसके पति रणवीर ने उसको यह पद ढंग से संभालन नहीं दिया इसलिए गांव की औरतें उस पर ताना लगाती थी बली तुम प्रधान आपके द्वार पर तो पक्का खरंजा करा लिया अपनी गलती तो पत्रों से बनवा ली
 हमसे क्या बता बहन की कीचड़ में ही छोड़ दिए।
4.न्याय प्रिय बेशक वसुमति ग्रामीण स्त्रियों की उपेक्षा पर खरी नहीं उतरती और उनके ताने सुनती है परंतु वह न्याय प्रिय है वह पंचायत में हरदोई को उसके पति के साथ भेजने का न्याय पूर्ण निर्णय करती है इस अन्याय के लिए दोषी अपने पति को अपना ही वोट नहीं देती वह 1 वोट से ही चुनाव हार जाता है लेकिन मैं क्या करती अपने भीतर की ईसुरिया को नहीं मार सकती क्षमा करना।

ईसुरिया की चारित्रिक विशेषताएं-वसुमति के बाद फैसला कहानी की महत्वपूर्ण पात्र यह एक युवती आडंबर से मुक्त स्त्री पुरुष को समानता की दृष्टि से देखने वाली न्याय प्रिय वसुमति को सही रास्ता दिखाने वाली गडरिया की बहू स्पष्ट वादी व्यवहार कुशल निश्चल लेखिका को प्रभावित करने वाली स्त्री पात्र है।
रणबीर की चारित्रिक विशेषताएं-रणवीर फैसला कहानी का प्रमुख पात्र है कथानायका वसुमति के पति अपने कृत्यों के कारण कहानी का खलनायक कुशल राजनीतिज्ञ पुरुष प्रधान समाज पाई माहिती भ्रष्टाचारी षड्यंत्रकारी कुर्सी बचाने के लिए रिश्तो को ताक पर रखने वाला एक सच्चा राजनेता दिखाई पड़ता है।
निष्कर्ष- वसुमति चीर बंदिनी की मुख सभी को तोड़कर फैसले में निर्णायक भूमिका निभाने वाली तो वहीं इस रवया के माध्यम से लेखिका की प्रेरणा शक्ति बनने वाली स्त्री पात्र तथा आज की स्वतंत्र विचारधारा का नेतृत्व करने वाली नारी रणवीर के माध्यम से लेखिका ने राजनेताओं की षड्यंत्रकारी प्रवृत्ति के बारे में बताने की कोशिश की है कहानी की तत्वों के माध्यम से फैसला कहानी एक उद्देश्य पूर्ण तथा सक्षम कहानी है।

समझणिए की मर का संक्षिप्त परिचय

समझणिए की मर उपन्यास का संक्षिप्त परिचय
समझाने की मर - 
भूमिका-
यह उपन्यास डॉ श्याम सखा श्याम द्वारा रचित है डॉ श्याम सखा श्याम का जन्म 1948 में रोहतक के श्री रतिराम शास्त्री के यहां हुआ उन्होंने एम बी बी एस सी एलएलबी की उपाधि प्राप्त की यह हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित होने वाली पत्रिका हरी गंदा के मुख्य संपादक हैं वक्त उपन्यास के तरीके अब तक इनके एक टुकड़ा दर्द काव्य संकलन तथा एक कहानी संकलन प्रकाशित हो चुके हैं।
उपन्यास स्वार्थ केंद्रित राजनीति को अभिव्यक्त करता है 
उपन्यास का कथानक दो वक्ताओं द्वारा दो श्रोताओं को सुनाई गई बातचीत पर आधारित है।
 उपन्यास में संवादों की अद्भुत योजना है ।
संपूर्ण उपन्यास में हरियाणा की संस्कृति की झलक दिखाई देती है ।
लेखक व स्वार्थ पूर्ण राजनीति वह खुश होती जा रही पंचायत न्याय प्रणाली का यथार्थ एवं मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है।
 डॉ हरीश चंद्र वर्मा ने उपन्यास की आलोचना करते हुए लिखा है कि राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक चेतना से प्रेरित उपन्यासकार की दृष्टि से सबसे अधिक चिंताजनक पक्ष है भारत की राष्ट्रीयता से विमुख स्वार्थ केंद्रित राजनीति उपन्यास की कथा स्वार्थ केंद्रित राजनीति उपन्यास की कथा में समाहित कारगिल का युद्ध ऐसी ही स्वार्थ केंद्रित राजनीति का परिणाम था इसमें अनेक निर्दोष सैनिकों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी ।
पारिवारिक और सामाजिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार भी कथानक की चिंता का मुख्य विषय है कारगिल के युद्ध में शहीद हुए नफे सिंह की विधवा अमृता को मिलने वाली 10 लाख की राशि को हड़पने के लिए अमृता का ससुर रणसिंह अनेक प्रपंच रचता है किंतु अंत में सत्य की चीजें जीत होती है विधवा अमृता 10 लाख की राशि से कन्याओं के लिए एक तकनीकी स्कूल की स्थापना करती है ।
इस प्रकार उपन्यासकार ने नफे सिंह से उत्सर्ग और अमृता के त्याग और सेवा भाव के उधर उदाहरणों के माध्यम से देश भक्ति का उज्जवल आदर्श प्रस्तुत किया है।

हिंदी उपन्यास उद्भव और विकास

हिंदी उपन्यास उद्भव व विकास
भूमिका आधुनिक हिंदी साहित्य में उपन्यास नामक विद्या का जो रूप प्राप्त हुआ है वह प्राचीन संस्कृत साहित्य से किसी भी प्रकार से संबंधित नहीं माना जाता विधा का उपन्यास उद्भव और विकास यूरोप से हुआ है हिंदी का प्रथम उपन्यास इसे स्वीकार किया गया है इस संदर्भ में लाला श्रीनिवास द्वारा रचित परीक्षा गुरु इंशा अल्लाह का रचित रानी केतकी की कहानी और श्रद्धा राम फिल्लौरी कृत्य भागवती आदि आरंभिक उपन्यास है आजकल यह गद्य विधा काफी लोकप्रिय हो चुकी है सुविधा की दृष्टि से उपन्यास साहित्य को चार भागों में बांटा गया है।
1प्रेमचंद पूर्व .युग भारतेंदु से पूर्व शरदाराम सिलोरी ने भाग्यवंती नामक उपन्यास लिखा जिसमें बीज रूप से न्यास के सभी गुण दिखाई दिए हिंदी में बांग्ला उपन्यासों किया अनुकरण पर श्रीनिवास दास ने परीक्षा गुरु नामक उपन्यास लिखा आगे चलकर राधा कृष्ण दास ने निशा हिंदू बालकृष्ण भट्ट ने नूतन ब्रह्मचारी , एक अनजान एक सुजान उपन्यास लिखा लेकिन इस काल में अनुवाद की ओर अधिक ध्यान दिया गया द्विवेदी युग में उपन्यास लेखन जोर पकड़ने लगा अनुवाद की प्रवृत्ति तो अभी भी विद्यमान थी विशेषकर देवकीनंदन खत्री द्वारा रचित उपन्यास चंद्रकांता काफी लोकप्रिय हुआ लोगों ने इस उपन्यास को पढ़ने के लिए हिंदी कोशिका किशोरी लाल गोस्वामी ने तो इस प्रकार की जासूसी और पुलिस में उपन्यासों का ढेर लगा दिया अयोध्या सिंह उपाध्याय के दो उपन्यास हिंदी का ठाठ तथा अधिक लाभ फूल उपन्यास लिखें।
2.प्रेमचंद युग उपन्यास जगत में प्रेम प्रेमचंद का आगमन एक विशेष उपलब्धि मानी जाती है उन्होंने कि लक्ष्मी और जासूसी की पिटारी को बंद कर हिंदी उपन्यासों को मुक्त किया और सामान्य जनजीवन से उपन्यास को जोड़ा प्रेमचंद ने उपेक्षित नारी जाति तथा मजदूरों और किसानों की व्यथा कथा को यथार्थ रूप में वर्णन किया अब उपन्यासों की स्वस्थ परंपरा का प्रचलन होने लगा कथानक पात्र चरित्र चित्रण देशकाल भाषा की दृष्टि से उपन्यास लिखे जाने लगी सेवा सदन ,निर्मला ,प्रेमाश्रय, रंगभूमि, गवन ,कायाकल्प कर्मभूमि, गोदान आदि प्रेमचंद के उपन्यास हैं दहेज प्रथा ,वेश्यावृत्ति ,रिश्वतखोरी ,असहयोग आंदोलन ,किसानों पर भी प्रेमचंद ने अनेक उपन्यास। गोदान प्रेमचंद का ही नहीं अपितु हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है ।उपन्यासकार ने ग्राम जीवन के संदर्भ में जमीदारी प्रथा पर प्रकाश डाला है गोदान का होरी भारतीय किसान का प्रतिनिधि पात्र है उसी के द्वारा प्रेमचंद ने किसानों की स्थिति को दर्शाया है और उपन्यासकार विशंभर नाथ शर्मा ,,जयशंकर प्रसाद वृंदावनलाल वर्मा ,सिया शरण गुप्त आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं मां, करणी इरावती, कंकाल ,तितली, विराटा की पद्मिनी झांसी की रानी मृगनैनी इस समय की और उपन्यास है वर्मा जी ने सामाजिक उपन्यास लिखे हैं जयशंकर प्रसाद जी ने ऐतिहासिक उपन्यास लिखें।
प्रेमचंद्र उत्तर युग-इस युग में हिंदी उपन्यास का अत्यधिक विकसित विकास हुआ इसमें सामाजिक ऐतिहासिक मनोवैज्ञानिक आंचलिक उपन्यास काफी संख्या में लिखे गए आचार्य चतुरसेन शास्त्री इस युग के उल्लेखनीय उपन्यासकार हैं हृदय की प्यास दिल्ली का दलाल बुधवा की बेटी उनके प्रसिद्ध उपन्यास भगवतीचरण वर्मा ने चित्रलेखा उपन्यास लिख कर हिंदी उपन्यास साहित्य को एक नई दिशा प्रदान किए रास्ते भूले बिसरे चित्र सभी रावत राम गोसाई आदि इनके ऐतिहासिक उपन्यास है अब उपन्यासकार व्यक्ति विशेष के बारे में भी रुचि लेने लगे परिणाम स्वरुप मनोविश्लेषणात्मक की परंपरा का श्री गणेश हुआ।जोशी ने सन्यासी प्रेत और छाया ,की रानी निर्वाचित आदि उपन्यास लिखे इसी परंपरा को आगे बढ़ाकर जैनेंद्र कुमार ने भी सुनीता ,सुखदा, त्याग पत्र आदि उपन्यास लिखे इन के बाद में सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन द्वारा रचित शेखर एक जीवनी मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास है मार्क्सवादी चिंतन से प्रभावित लेखक यशपाल है।राहुल सांकृत्यायन के नाम गिनाए जा सकते हैं दादा कामरेड ,पार्टी कामरेड ,देशद्रोही, दिव्या यशपाल जी के प्रगतिवादी उपन्यास हैं। जिन पर मार्क्सवाद के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है ।वहीं यशपाल के उपन्यास झूठा सच ,स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता पश्चात के भारत का वर्णन करता है कहा जाए तो देश विभाजन की कथा इसके अंदर है राहुल जी के उपन्यास योद्धा सिंह, सेनापति, मधुर, स्वप्न, विस्मृत यात्री आदि उल्लेखनीय उपन्यास के अलावा उपेंद्र नाथ अश्क, राघव राय उपन्यासों के नाम गिनाए जा सकते हैं हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित बाणभट्ट की आत्मकथा और चा इन चंद्रलेखा ,2 सप्ताह से चंद हसीनों के ,बुधवा की बेटी घंटा ,सरकार तुम्हारी आंखों में आदि उपन्यास पंडित बेचन शर्मा उग्र के हैं इसके बाद आंचलिक उपन्यासों की परंपरा शुरू हुई । इस क्षेत्र में फणीश्वर नाथ रेणु ,नागार्जुन ,राघव उदय शंकर भट्ट अमृतलाल नागर देवेंद्र सत्यार्थी आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं मैला आंचल ,परी कथा आदि रेनू के प्रसिद्ध उपन्यास हैं वरुण के बेटे तथा बाबा बटेश्वर नाथ आदि आंचलिक उपन्यास में आधुनिक युग स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 
हिंदी उपन्यास लेखन में आशातीत वृद्धि हुई इस युग में नई पीढ़ी के उपन्यासकार सामने आए आधुनिक पीढ़ी के उपन्यास कारों में मोहन राकेश राजेंद्र यादव कमलेश्वर धर्मवीर भारती निर्मल वर्मा श्रीकांत श्री राम शुक्ला श्रीमती मन्नू भंडारी लक्ष्मीनारायण लाल आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं अंधेरे बंद कमरे में आधे अधूरे राकेश जी के उल्लेखनीय उपन्यास पढ़े हुए लोग काली आंधी कमलेश्वर के गुनाहों का देवता धर्मवीर भारती का सुप्रसिद्ध उपन्यास है राग दरबारी श्रीलाल शुक्ल आपका बंटी मन्नू भंडारी का
 प्रसिद्ध उपन्यास है हिंदी का वर्तमान उपन्यास साहित्य अनेक दिशाओं में अग्रसर है उपन्यास और कहानी पढ़ने में अधिक रुचि लेते हैं लेकिन कुछ उपन्यासकार अति यथार्थवादी तथा प्रयोग शीलता के नाम पर अश्लील और कामुक उपन्यास लिखने लगे हैं जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहे जा सकते फिर भी हम कह सकते हैं कि उपन्यासों का भविष्य काफी उज्जवल है।

ध्रुवस्वामिनी नाटक का उद्देश्य व समस्याएं

   ध्रुवस्वामिनी नाटक का उद्देश्य व समस्याएं
भूमिका- ध्रुवस्वामिनी एक उद्देश्य पूर्ण नाटक है जिसमें जयशंकर प्रसाद जी ने ऐतिहासिक कथानक लेते हुए अपने उद्देश्य को स्पष्ट किया है उसके अनुसार, मेरी इच्छा भारतीय इतिहास के अप्रकाशित अंश में से उन प्रकांड घटनाओं का दिग्दर्शन कराने से जिन्होंने हमारी वर्तमान स्थिति को पद दिलाने में बहुत प्रयत्न किया है। 
ध्रुवस्वामिनी नाटक का उद्देश्य -
1.साहसी राष्ट्राध्यक्ष 
2.नारी समस्या को उजागर करना
3. विवाह की समस्या 
4.त्याग और उदारता की भावना को बल 
5.प्रेम भावना का विस्तार 
6.अत्याचार एवं दुष्ट प्रवृत्तियों की समाप्ति
7. प्राचीन इतिहास की जानकारी
8. देशभक्ति की भावना जागृत करना।
1 प्रसाद जी ने इस नाटक के माध्यम से भारत देश में एक शक्तिशाली राष्ट्र अध्यक्ष की स्थापना करना चाहते थे इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने एक ऐतिहासिक कथा को नाटक रूप में पिरोया है नाटककार जिस प्रकार इस कथा में कायर मदद विलासी अयोग्य वनीत शासक रामगु प्चंद्रगुप्त जैसे साहसी वीर तथा योग्य व्यक्ति के हाथों में देश की बागडोर सौंप सकता है उसी प्रकार वह अपने समकालीन परिपेक्ष्य में अंग्रेजों के शासन को समाप्त कर चंद्रगुप्त के सम्मान शक्तिशाली तथा वीर भारतीय राष्ट्र अध्यक्ष की स्थापना करना चाहते हैं ।
नारी समस्या को उजागर करना- जयशंकर प्रसाद की ध्रुवस्वामिनी नाटक में लेखक ने तत्कालीन नारी समस्या को उजागर किया है लेखक के अनुसार भारतीय समाज एक पुरुष प्रधान समाज है जिसमें स्त्री अपनी सुरक्षा के लिए हमेशा पुरुषों पर आश्रित रही हैं पुरुष स्त्रियों को पुरुषों से अधिक कुछ नहीं समझता है वह स्त्रियों पर तरह तरह के अत्याचार करता तथा मनमाना शोषण करता है इस लेखक के माध्यम से ध्रुवस्वामिनी का सशक्त चरित्र का लेखक ने नारी की गरिमा को दिखाया है।
 नंबर 3- विवाह की समस्या लेखक ने नाटक के माध्यम से होने वाले विवाह के समय युवक-युवतियों की आपसी सहमति न होने की समस्या को उठाया है ध्रुवस्वामिनी कविता सम्राट समुद्रगुप्त को वीर शक्तिशाली जानकर उन्हें अपनी पुत्री को उल्लू बनाने के लिए समर्पित कर देते हैं राजा समुद्रगुप्त स्वामी का विवाह योग्य पुत्र करना चाहते हैं समुंदर गुप्त की मृत्यु के पश्चात परिवर्तन आता है तथा महामंत्री स्वामी कथा राम गुप्त की छल कपट के कारण राम गुप्त राजा नहीं बनता है प्रेम भी नहीं करती तब भी उसे उसकी पत्नी बनी स्वीकार करने पर समाज मजबूर करता है इस प्रकार से लेखक ने विवाह की समस्या को भी रूप से उठाया है ।
त्याग और उदारता की भावना को बैठक क माध्यम से लेखक लोगों को अपने त्याग और उदारता की भावना को विकसित करने की प्रेरणा देता हैइस नाटक में चंद्रगुप्त के त्याग और उसकी उदारता का परिचय देकर लेखक भी समाज में यही भावना बनना चाहता है प्रेम भावना का विस्तार लेखक नाटक के माध्यम से प्रेम भावना का विस्तार करना चाहता है लेखक के अनुसार मनुष्य का जीवन बहुत छोटा होता है उसमें भी युवावस्था तो और भी छोटी होती है लेखक ने मनुष्य को यह छोटा सा जीवन प्रेम में होने के लिए प्रेरित किया है ।
अत्याचार एवं दुष्ट प्रवृत्तियों की समाप्ति इस नाटक का उद्देश्य नाटक के माध्यम से तत्कालीन भारतीय समाज में फैले अत्याचारों एवं समाप्त करना चाहता है राम गुप्त व स्वामी के अत्याचार एवं बुराइयों को चंद्रगुप्त द्वारा समाप्त करवा कर एक शांतिप्रिय समाज की स्थापना पर बल दिया है वह वर्तमान भारतीय समाज को एक ऐसे समाज के रूप में देखना चाहते हैं जिसमें भाई का भाई से प्रेम हो और समाज में किसी प्रकार का कोई भी अत्याचार ना हो ।
प्राचीन इतिहास की जानकारी इस नाटक के माध्यम से लेखक प्राचीन इतिहास की जानकारी देना चाहता है इतिहास का वर्णन करता है इतिहास के स्वर्ण काल कहे जाने वाले गुप्त साम्राज्य की जानकारी इसमें देता है नाटक के रूप में लिखकर प्रस्तुत करता है और इससे समाज को सीख देने की कोशिश करता है ।
देशभक्ति की भावना जागृत करना इस नाटक का एक एक ऐतिहासिक और है भारतीय इतिहास की एक घटना को लेकर के भारतीय लोगों को जगाने की कोशिश की है देशभक्ति की कोशिश चंद्रगुप्त के माध्यम से की है ।
निष्कर्ष-
जिस प्रकार हम कह सकते हैं कि यह नाटक है प्राचीन इतिहास के नवीन प्रस्तुतीकरण के माध्यम से देशभक्त देशभक्ति राष्ट्रीयता नारी सम्मान तथा सामाजिक बुराइयों का अंत करने का संदेश दिया है।
 धन्यवाद